शुक्रवार, 20 जुलाई 2012

माई डियर पुष्पा; हेssss, .... हेssssss पुष्पा ! क्या हुआ ? ब्लॉग4वार्ता ------ ललित शर्मा

ललित शर्मा का नमस्कार, गिरीश पंकज जी की व्यंग्य उपन्यास प्रकाशित हो रही है। वे फ़ेसबुक पर कहते हैं -अपनी एक खुशी में आपको शामिल करने का मोह संवरण नहीं कर पा रहा हूँ. देश के बड़े हिंदी प्रकाशन संस्थान ''प्रभात प्रकाशन'', नयी दिल्ली से मेरा व्यंग्य उपन्यास ''मीडियाय नमः'' छपने वाला है. यह मेरा पाँचवाँ उपन्यास है. ''मीडियाय नमः'' किताब तो कुछ महीने बाद ही छप कर आयेगी, क्योंकि किताब छपने में समय लगता है. लेकिन आज शाम ईमेल के जरिये अनुबध पत्र आ गया है. इस उपन्यास में मीडिया के बदलते चहरे और चरित्र पर शालीन-व्यंग्य-दृष्टि डालने की कोशिश की है. 'प्रभात प्रकाशन'' जैसे संस्थान से प्रकाशित होने के कारण किताब दूर-दूर तक जायेगी, इस बात का संतोष है.…… गिरीश जी को ढेर सारी शुभकामनाएं एवं बधाई…… अब चलते हैं आज की ब्लॉग4वार्ता पर…… प्रस्तुत हैं कुछ पोस्ट लिंक्स……

बदली और बारिश...मौसमों की राह नही तकती बदली मेरी पलकों में छुप जाती है जब भी उसका मन चाहे बिन मौसम ही बरस जाती है... पानी का मोल भी नहीं जानती कई बार प्यासी रह जाती हूँ सूने सपाट जीवन को ढोते इंद्रधनुषी रंगों को त...टाइम हो गया है, पैक अपमैंने पहली बार उन्हें एक फिल्म पत्रिका में देखा, शायद फिल्मफेयर थी। उन्होंने फिल्मफेयर-माधुरी प्रतियोगिता जीती थी, वो प्रतियोगिता जिसके लिए आने वाले साल में मैंने भी अप्लाई किया और रिजेक्ट कर दिया गया। .भारत का प्रधान मंत्री कांग्रेस में चिहाड़ मची है .ये अमरीकी तो साले हैं ही बदतमीज लोग .बेचारा सीधा सादा सा आदमी है .गऊ जैसा .कोई time magazine है इन साले अमरीकियों की .सुनते है की उसने कह...

बकरी का दूधबकरी का दूध हमारे आपके लिए कोई अनोखी चीज नहीं है ,लेकिन हम इसका प्रयोग बिलकुल नहीं करते।आखिर क्यों? हमारे राष्ट्रपिता बापू जी तो रोज बकरी का दूध पीते थे . अगर हम उनकी एक यही बात मान लें तो पूरा देश अनगिनत ...मेरी शब्द यात्रा..*आंसू एक बूंद* *आंसू की एक बूंद (चित्र _गूगल .कॉम)* *बूंद याने 'कतरा'. बूंद याने गोल आकृति सा दिखाई देने वाला द्रव्य. ये बूंद खून की भी हो सकती है या फिर पानी की या शराब की भी. पर एक बूंद है जो अमूल्य ..."आज हिन्दुस्तान के सामने कोई एजेंडा नहीं है"वर्तमान समय की पत्रकारिता के एतिहासिक परिपेक्ष्य में पुण्य प्रसून वाजपेयी की प्रो.इम्तियाज अहमद से बातचीत-* पुण्य प्रसून- प्रो.साहब क्या यह माना जाए कि वर्तमान समय में जो पत्रकारिता चल रही है, वह एक शू...

चला कहाँ बलखाते लश्कर सहाब काक्यों न कहूँ इसे मौसम की साहिरी, बूटे-बूटे में सब्ज़ की सावनी छटा है | चला कहाँ बलखाते लश्कर सहाब का, ऐसे लगे किसी की जुल्फों की घटा है | झील के सीने पर रवाँ हंस का जोड़ा, शायद एक - दूसरे पर मर मिटा ह...चलो किसी रोते हुए को हंसाया जाए यह पोस्ट कल प्रकाशित होनी थी . लेकिन अकस्मात काका -- राजेश खन्ना की मृत्यु का दुखद समाचार पढ़कर , उनके सम्मान में इसे स्थगित कर दिया था .* इस रविवार से हास्य का हमारा पसंदीदा कार्यक्रम आरंभ हुआ .हालाँकि ...27 अगस्त को होगा ब्लॉग संसार का फिर से धमालजी हाँ, गालिब की नगरी दिल्ली के बाद अब तहजीब की नगरी लखनऊ म...धुआँ उठता है थोड़ी दूर पर, क्या जला होगा...धुआँ उठता है थोड़ी दूर पर, क्या जला होगा... कोई इंसान, कोई घर या फिर बचपन जला होगा... फटे आँचल को ठंडी राख का तोहफा मिला है आज... ज़मीं को गोद में इंसान रखना अब ख़ला होगा... अंधेरा आज फिर बुझते हुए चाँदों...

हां! मैं बहुत शर्मीली हूंकिसे पता था कि आर्मी ज्वॉइन करने निकली एक लड़की बॉलीवुड पहुंचकर अभिनय की दुनिया में झंडा गाड़ेगी! इसे किस्मत कहें, करिश्मा या कर्म... जो भी है लेकिन माही गिल अभिनय की जंग में सशक्त सिपहसालार बनकर उभरी ह...डूब मरो समाज और कानून के ठेकेदारो....आईये “कपड़ा-फाड़”, फाइट में सब नंगे हो लें!**एक शिकार, कई शिकारी*संजीव चौहान अंधा बांटे रेवड़ी, बार-बार अपने को दे। कहावत सबने सुनी है। उस्ताद का जितना बड़ा या खास चेला होगा, उस्ताद अंधा होने के बाद भी,...अगस्‍त्‍य मुनि और दादाजीअगस्‍त्‍य मुनि.....अगस्‍त्‍य मुनि बुदबुदाने लगते थे वो बूढ़े होंठ जब भी आकाश में बादलों की गर्जन होती... बि‍जली और बरसात का संगम जब भी होता ओसारे पर एक बोरसी बिन कहे ही दादी सुलगा देती थी एक मोटी लोई ओढ़क...

आई हेट टेअर्स पुष्पा   माई डियर पुष्पा ; हे, .... हे पुष्पा ! क्या हुआ ? फिर तुम्हारी आँखे गीली ? ...... तुम्हे कितनी बार कहा है कि मुझसे तुम्हारे ये आंसू नहीं देखे जाते.........आई हेट टेअर्स पुष्पा... आई हेट टेअर्स ! दिल..  पुतलियां  कहां का रास्‍ता पूछते हैं कहां जा रहे हैं मल्‍हार अब वहां खामोश हें सारे राग कोई नहीं छेड़ता तान न कोई लेता आलाप कुछ मूर्तियां हैं खड़ी रहती हैं चुपचाप पुरातत्‍व के चौकीदार की नजर बचाकर ऊंघती हैं या...  मेरे हर गीत में प्रिय! तेरा अनुराग समाया है  सूरज चाँद सितारों में तुम्हे पाया है!! जिंदगी के हर रंग में तेरा ही साया है!! जिंदगी का हर रंग तुम ही हो मेरे प्रिय!! जिंदगी का हर रिश्ता तुम्ही में पाया है!! मैं धरती हूँ जीवन की ऐसा मैंने माना है अपना ज... 

उन्हें सिर्फ सत्ता चाहिएशायद ही कोई दिन ऐसा जाता हो जिस दिन देश के समाचार पत्रों और न्यूज चैनलों में किसी न किसी स्त्री के साथ दुर्व्यवहार का समाचार प्रकाशित न होता हो। घरों, कार्यस्थलों, विद्यालयों, रेलों, बसों, मनोरंजन स्थल...इग्नोर करनाइग्नोर करना भी अच्छा होता है... कभी न कभी इससे .. मैं भी सीख जाउंगी तुम्हारे प्रति उदासीन होना . तुम्हारा मुझे इग्नोर करना मुझे सिखा देगा कि कैसे तुमसे नफरत और प्यार किये बगैर ज़िंदा रहा जा सकता है . ..गीदड़ों वाला तालाबरामगढ़ सेठान" शेखावाटी का महत्तवपूर्ण व प्रमुख क़स्बा है यह क़स्बा बनियों (सेठों) द्वारा बसाया हुआ है, हालाँकि राजस्थान में एक कहावत प्रचलित है कि- "गांव बसावै बाणियो, पार पड़े जद जाणियौ" अब ये कहावत कब और क...

तुम्हारे बादतुम थी तो ये मकान भी एक घर था. तुम थी तो मैं भी था, अब ना जाने मेरा ‘मैं’ कहाँ खो गया है. तुम थी तो ये वाटिका गुलजार थी, अमलतास, गुलमोहर और गुलबहार एक साथ खिले रहते थे, इस सदाबहार को जैसे तुषार ने जला ड...क्यों झाँकना नज़र में ये, नक़ाब जैसा है...मिला जब वो प्यार से, तो गुलाब जैसा है आँखों में जब उतर गया, शराब जैसा है खामोशियाँ उसकी मगर, हसीन लग गईं  कहने पे जब वो आया तो, अज़ाब जैसा है करके नज़ारा चाँद का, वो ख़ुश बहुत हुआ  ख़बर उसे कहाँ...ट्रेन से भारत परिक्रमाइस पूरी यात्रा की सभी ट्रेनों का टाइमटेबल देखने के लिये यहां क्लिक करें। इस बार बडा ही धाकड प्रोग्राम बनाया है। अक्सर मेरी सोच ज्यादा लम्बी नहीं चलती, बस एक महीने आगे की ही सोच सकता हूं। जून का महीना जब चल ...

वार्ता को देते हैं विराम, मिलते हैं ब्रेक के बाद राम राम्…………

9 टिप्पणियाँ:

बेहतर लिंक्स से सजी वार्ता ...!

श्रम से उद्घाटित सूत्रों में समय बिताना सुहाता है..

गिरीश पंकज जी को बधाई..

वार्ता के इस अंक से ढेर सारे अच्‍छे लिंक्‍स मिले ..

बस पता नहीं चल पाया कि ये पुष्‍पा कौन है ?

गिरीश पंकज जी को बहुत-बहुत बधाई और शुभकामनायें...
बढ़िया लिंक्स मिले... शुक्रिया ललितजी

बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति ... आभार

अच्छी लिंक्स दी हैं गिरीश जी को बिना उपन्यास पढ़े हार्दिक बधाई एडवांस में |

अच्छे लिंक्स खोज के लाए हैं .

सुन्‍दर वार्ता। किन्‍तु जैसा कि मैं कुछ देर पहले ही कह चुका हूँ, इस बार सारे सन्‍दर्भ खंगालना मुमकिन नहीं हो सकेगा।

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