रविवार, 29 जुलाई 2012

ज़िन्दगी आ रही हूँ मैं....ब्‍लॉग4वार्ता .. संगीता पुरी

आप सबों को संगीता पुरी  का नमस्‍कार , भ्रष्टाचार के खिलाफ टीम अन्ना के अनिश्चितकालीन अनशन के दौरान राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री पर हमला जारी रहा वहीं अन्ना हजारे ने लोकपाल के मुद्दे पर रविवार से आमरण अनशन की चेतावनी दी। इस बीच, शाम को जंतर मंतर पर समर्थक भारी संख्या में उमड़े।हजारे ने जहां रविवार से आमरण अनशन पर बैठने की बात कही, वहीं अरविंद केजरीवाल ने अन्ना से अपील की कि उनके प्राण देश के लिए जरूरी है और सेहत को देखते हुए उन्हें अनशन पर नहीं बैठना चाहिए। उन्होंने कहा, ‘आजादी के तुरंत बाद देश ने गांधी को खो दिया, संपूर्ण क्रांति आंदोलन के बाद देश ने जल्द ही जेपी (जयप्रकाश नारायण) को खो दिया और अब देश यह सहन नहीं कर पाएगा कि अन्ना की सेहत भी बिगड़ जाए।इस खास खबर के बाद आपको लिए चलते हैं आज की वार्ता पर .........
सुबह की चाय और अखबार *सुबह की चाय और अखबार की ताज़ा खबर दोनों साथ हों तो इसका अलग ही मज़ा हैं (कड़वा सा )| खुद से अखबार उठा कर लाना और चाय बनाना दोनों काम साथ ही होते हैं रोज़ चाय का पानी उबलता हैं!  तिलकराज कपूर की ग़ज़लें रचनाकार का वक्तव्य ------------------- तिलकराज कपूर ग़ज़ल कहने की मेरी प्रक्रिया और किसी अन्‍य की प्रक्रिया में शायद ही कुछ अंतर हो। बस यकायक कोई शेर बन जाता है,क्षणिकाएँ...एक जरा सी शुरूआत भी बला की तूफ़ान ले आती है फिर तो हलकी सी थपकी भी जोरदार चपत लगा जाती है . *** कोई कैसे बताये कि कौन किसपर भारी है हँस जीते या फिर बगुला सिक्का-उछालू खेल जारी है कैसे हाँ कहूँ ? जब ना कहना चाहता हूँ ? कैसे हाँ कहूँ ? जब ना कहना चाहता हूँ ? पर ना भी कैसे कहूँ? समझ नहीं पाता हूँ झंझावत में फंसा हूँ रिश्तों के बिगड़ने का खौफ दुश्मनी मोल लेने का डर मुझे ना कहने से रोकता है!

यह ज़िन्दगी भी अज़ीब मेला है  वो कहां है, कैसा है, है भी कि नहीं, ख़ुदा के वास्ते न सोच बड़ा झमेला है कहीं पे राग-रंग कहीं पे ग़म का समन्दर, यार! यह ज़िन्दगी भी अज़ीब मेला है। ज़िन्दगी ने ठोकरें देकर जिसे सिखाया है,आयाम बिंधने के कभी कभी बिना बिंधे भी बिंध जाता है कहीं कुछ सूईं धागे की जरूरत ही नहीं होती शब्दों की मार तलवार के घाव से गहरी जो होती है मगर कभी कभी शब्दों की मार से भी परे कहीं कुछ बिंध जाता है और वो जो बिंधना होता है...सोच रहा हूँ *अभी अभी फेसबुक पर यह चित्र देखा ;इसे देख कर जो मेरे मन ने कहा ,वह प्रस्तुत है- * साभार : फेसबुक मन की कलम में बादलों की स्याही भर कर सोच रहा हूँ कुछ लिख दूँ देवालय से दुर्ग राणकपुर से कुम्भलगढ़.देवालय से दुर्ग की ओर.जैन मंदिर परिसर के विशाल काष्ठ-द्वार से प्रस्थान.पहाड़ों की विनम्र ऊंचाइयां और ढलानों का सौहार्द्र.अरावली यहाँ प्रार्थनाएं बुदबुदाता लगता है.
सुगम के माने सौ - सौ ग़म, यह मान लीजिये  * * *साथियों, इन दिनों मेरे शिक्षा विभाग में ट्रांसफर को लेकर बड़ी उथल पुथल मची हुई है, सुगम और दुर्गम को लेकर भारी बमचक मची है | दुर्गम में फंसे हुए अध्यापक सुगम में आने को बेकरार हैं। इस शहर में हर शख्स परेशां सा क्यूँ है 'अपना बिहार' दोड़े जा रहा है विकास की पटरी पर...बड़े-बड़े दावे ....बड़ी-बड़ी बातें...खूब बड़े आंकडे .....सब कहते है विकास हो रहा है...मै भी गर्व से भर जाती हूँ...अकड़ जाती है गर्दन.गंगा घर से बह रही हो तो कोई कैसे ना नहाए ?*पर कोई करे भी तो क्या, इन इच्छाओं, कामनाओं, लालसाओं से बचा भी तो नहीं जा सकता। अब हर कोई महात्मा गांधी या लाल बहादुर शास्त्री तो हो नहीं सकता !!!* महत्वाकांक्षा हर इंसान में होती है। होनी भी चाहिए  कोई दिन ... सावन अधछलके मेघ आँगन से उड़ गए बाट तकत नैन डयोढ़ी पर जड़ गए नभ रीता पंछियों से तितलियों से पात कुंज सूना कोयलों से जुगनुओं से रात ...
बहरा राजा ,गूंगी प्रजा तो यह बलिदान किसलिए? टी वी देख रही थी तो देखा बार -बार इसी बात पर चर्चा हो रही है या कहिये की आज का मुद्दा ही यही है चेनलों के पास कि अन्ना के अनशन में भीड़ नहीं दिख रही! लिजीये भीड़ हो तो समस्या .कहती है नैना हसूँ अब मैं कैसे."कहती है नैना, हसूँ अब मैं कैसे" बयाँ हाले दिल का करूँ अब मैं कैसे खलिश को छुपाकर रहूँ अब मैं कैसे बुझी कब ख्वाहिश नहीं इल्म मुझको है तन्हाइयाँ भी सहूँ अब मैं कैसे तुलसी रस का व्याधि में सर्वोत्तम उपयोग*कुँवर कुसुमेश * ज्वर-जुकाम-कृमि-नासिका,या हो खासी रोग. तुलसी रस का व्याधि में,सर्वोत्तम उपयोग. सर्वोत्तम उपयोग,बिना पैसे घर चंगा. निर्धनता भी डाल न पाए कोई अड़ंगा. क्यारी या गमले में तुलसी रखें Dदया Nनहीं Aआती ?*आज इन तमाम * *तपस्वी नर-नारायणों और * *अप्सरा उज्जलाओं को * *अगर खुदा ने रखा * *महफूज़ हर बला से !* * * *तो देखते जाओ, * *आगे-आगे होता है क्या, * *कितने और कलयुगी * *नाजायज बापों के * *डीएनए टेस्ट करता है।


स्वर्ग मही का भेदस्वर्ग का नाम आते ही उसके अस्तित्व पर प्रश्न खड़े होने लगते हैं, गुण और परिभाषा जानने के पहले ही। यद्यपि सारे धर्मों में यह संकल्पना है, पर उसके विस्तार में न जाते हुये मात्र उन गुणों को छूते हुये निकलने ज़िन्दगी आ रही हूँ मैं....!ज़िन्दगी आ रही हूँ मैं....! अब आप लोगों से 2 महीने तक शायद बात न हो पाए.... लेकिन फिर हमरा कोई भरोसा भी तो नहीं... शायद आपके बीच हम कहीं नज़र आ जायें :) बेल्जियम, दिल्ली, राँची , बनारस, कुनकुरी, कटक,  एक नन्हा जंगली फूलनन्हा फूल जो चुन लाया चैतन्य बच्चों के मन की संवेदनशीलता और सोच को आँक पाना हम बड़ों के लिए असंभव ही है । आमतौर पर बड़े बच्चों के विषय में सोचते रहते हैं कि उनके लिए क्या लायें....?मूठ / मुंशी प्रेमचंदइस महीने की 31 तारीख को प्रेमचन्द जी का जन्मदिन है और यह पूरा मास हम “राजभाषा हिंदी” ब्लॉग टीम की तरफ़ से प्रेमचन्द जी के व्यक्तित्व और कृतित्व के ऊपर कुछ पोस्ट ला रहे हैं।

मोदी की छवि चमकाने वालों से समाजवादी पार्टी ने पल्ला झाड़ा दिल्ली एक उर्दू साप्ताहिक अखबार के संपादक के साथ गुजरात के मुख्य मंत्री नरेंद्र मोदी का इंटरव्यू आज यहाँ ज़बरदस्त चर्चा में है. मौत को अपने साथ लिए चलता हूं मैं मौत को अपने साथ लिए चलता हूं मैं गैरों से नहीं अपनों से ही डरता हूं मैं शिकारी बैठे हैं ताक में यहां यही सोच के बहुत ऊँचा उड़ता हूं मैं मुझे है अपनी मंजिल की तलाश उसे ही हर पल ढूंडता हूं।  आखिर ये दंगे होते ही क्यों है1948 के बाद भारत में पहला सांप्रदायिक दंगा 1961 में मध्यप्रदेश के जबलपुर शहर में हुआ ! उसके बाद से अब तक सांप्रदायिक दंगो की झड़ी सी लग गयी ! बात चाहे 1969 में गुजरात के दंगो की हो!

बूढ़े पे हंस रहे हैं ?  कुछ लोग खुश हैं, नाच-गा रहे हैं जीत के भ्रम में हैं ... जश्न मना रहे है ! 'उदय' ये कैंसे लोग हैं, जो - बूढ़े पे हंस रहे हैं ? यह कहकर, यह सोचकर कि - मर गया ... आंदोलन ! नहींशरण में उसकी आना होगा जिसका* मन स्थिर नहीं है, वह क्षण-क्षण में रुष्ट-तुष्ट होता है, और ऐसे मन का विश्वास नहीं किया जा सकता. हम स्थिर मना बनें यही साधना का लक्ष्य है. भगवद् गीता का मूल उपदेश भी यही है. इसका उपाय भी...अल्लाह पे भरोसा कर!निकला जैसे ही- अपने घर से आफताब, आ, रौशनी खड़ी हुई- गुलाब की कली पर. मुकम्मिल नहीं थे, रंग, जिसके अभी तक. फिर- जाग गयीं फौरन, ओस की वो बूँदें. और, चलने लगीं नीचे- Bolte Vichar 61 अंतिम तिथि और अनुशासन  अंतिम तिथि और अनुशासन आलेख- डॉ.रमेश चंद्र महरोत्रा स्‍वर - संज्ञा टंडन किसी भी तरह के आवेदन आदि की पहुँच के लिए ‘अंतिम तिथि’ क्यों दी जाती है ? आप हँस सकते हैं। 
 आज के लिए बस इतना ही .. मिलते हैं एक ब्रेक के बाद ......

13 टिप्पणियाँ:

वार्ता में प्रस्तुत बेहतरीन सूत्र..

बहुत बढ़िया वार्ता संगीता जी, अब हम जा रहे हैं, चतुरगढ़. मिलते हैं दो दिनों के बाद.....शुभकामनाये.

अच्छी वार्ता....
लिंक्स अब देखती हूँ...
शुक्रिया संगीता जी...

अनु

bahut acche links Sangeeta ji,
aur ab aa rahi hun aapse milne..:)
dhanywaad.!

बढ़िया लिनक्स मिले.... आभार शामिल करने का

बहुत सुदर वार्ता
अच्छे लिंक्स

बहुत बढ़िया वार्ता... सुन्दर लिंक संकलन के लिए आभार संगीता जी...

अच्छे लिंक्स
अच्छी वार्ता :-)

आज बहुत देर से सिस्‍टम खोला। ढेर सारे सूत्र दिए हैं आपने पढने के लिए। देखता हूँ, क्‍या-कुछ पढ पाता हूँ। आपकी मेहनत को सलाम।

बहुत अच्छा लगा आज की लिंक्स पढ़ कर |
आशा

संगीता जी,,,बेहतरीन वार्ता सुन्दर लिंक्स के लिए बधाई,,,,,,

एक टिप्पणी भेजें

टिप्पणी में किसी भी तरह का लिंक न लगाएं।
लिंक लगाने पर आपकी टिप्पणी हटा दी जाएगी।

Twitter Delicious Facebook Digg Stumbleupon Favorites More