आप सभी पाठकों को मेरा नमस्कार ... बहुत तंग किया आज मुझे इंटरनेट ने , इसके बावजूद इस सप्ताह चिट्ठा जगत से जुडे नए चिट्ठों का ब्लॉग 4 वार्ता के मंच से स्वागत करते हुए मैं संगीता पुरी प्रस्तुत हूं , आपके लिए कुछ महत्वपूर्ण नए चिट्ठों के साथ ..............
शास्त्रो के मोती चुनचुनकर लाए जा रहे हैं ... इस लिंक पर
शास्त्रो के मोती चुनचुनकर लाए जा रहे हैं ... इस लिंक पर
अतो विमुक्त्यै प्रयतेत विद्वान
संन्यस्तबाह्यार्थसुखस्पृह: सन
सन्तं महान्तं समुपेत्य देशिकं
तेनोपदिष्टार्थसमाहितात्मा ||8||
संन्यस्तबाह्यार्थसुखस्पृह: सन
सन्तं महान्तं समुपेत्य देशिकं
तेनोपदिष्टार्थसमाहितात्मा ||8||
इसलिए विद्वान संपूर्ण बाह्य भोगों की इच्छा त्यागकर संत शिरोमणि गुरुदेव की शरण जाकर उनके उपदेश किए हुए विषय मे समाहित होकर मुक्ति के लिए प्रयत्न करे
मंत्रीजी, किराया तो आपने बढ़ा दिया लेकिन उन मुसाफिरों का क्या जिन्हें बीते पांच साल से आपने प्राईवेट बस वालों के हवाले कर रखा है? आपने उनकी चिंता की जिनका सफर इस प्रदेश में रामभरोसे चल रहा है? उनके साथ होने वाले दुव्र्यवहार के विषय में इन बस वालों से 'दो-टप्पीÓ बात की?
बिमल राय जब मुम्बई गये, 1951 में माँ फिल्म बनाने, उस समय विभाजन के बाद का सिनेमा का परिदृश्य नरम, साहित्य का परिदृश्य नरम, न्यू थिएटर्स वाले भी परेशानियों में थे। वे एक फिल्म बनाने के लिए बॉम्बे टॉकीज आये पर वो अपनी टीम लेकर आये जिसमें उनके साथ नबेन्दु घोष भी थे क्योंकि लेखन और साहित्य के काम उन्हीं के जिम्मे होते थे। उस समय बॉम्बे टॉकीज की भी हालत खराब थी। उस समय दस माह से लोगों को तनख्वाह नहीं मिली थी। उस समय एस. एच. मुंशी ने बाप-बेटी फिल्म बनायी।
पूनम का चांद निकला आसमान में
चांदनी फिसली पत्तों से जमीन पर
नदी में प्रतिबिम्ब नजर आया उनका
रातरानी पर मंडराते भंवर
कली शरमाई फूल बनने को तत्पर
दूधिया रोशनी में हवा सरसराई
ऐसा लगा मानो चांदनी ही खिलखिलाई
आपके प्यार के वो हसीन लम्हें हम भुलाए कैसें
दिल पे इतने जख्म हैं उन्हें दिखाए कैसें ।
आज भी ये दिल धड़कता है आपके लिए
आपको हम बताएं तो बताएं कैसे
गुजर गया वो जमाना जब हम साथ थे,
गमों से दूर और खूशी के पास थे।
हाथों से हाथ छूट गए,
दिल के रिश्ते टूट गए।
कुणाल किशोर भी एक सुंदर सा चिट्ठा लेकर आए है ..यहाँ दरख़्तों के साए में धूप लगती है चलो..
दिल पे इतने जख्म हैं उन्हें दिखाए कैसें ।
आज भी ये दिल धड़कता है आपके लिए
आपको हम बताएं तो बताएं कैसे
गुजर गया वो जमाना जब हम साथ थे,
गमों से दूर और खूशी के पास थे।
हाथों से हाथ छूट गए,
दिल के रिश्ते टूट गए।
कुणाल किशोर भी एक सुंदर सा चिट्ठा लेकर आए है ..यहाँ दरख़्तों के साए में धूप लगती है चलो..
कहते हैं
आज भी जीवित है
बोधिवृक्ष
खड़ा है वैसे ही
सदियों के बाद भी
हम-तुम
रहेंगे-न रहेंगे
हमारा प्रेम रहेगा
बोधिवृक्ष की तरह।
आज भी जीवित है
बोधिवृक्ष
खड़ा है वैसे ही
सदियों के बाद भी
हम-तुम
रहेंगे-न रहेंगे
हमारा प्रेम रहेगा
बोधिवृक्ष की तरह।
१९४७ से २०१० कुल मिला कर हो गए ६३ साल हमे आजाद हुए। ६३ साल एक सफ़र की तरह शायद गुज़र गया भारत के इतिहास में। इतिहास के पन्नो पर इन ६३ सालों का विवरण लिख दिया गया होगा ठीक उसी तरह जिस तरह गुलाम भारत का विवरण आज हमे मिल जाता है अनदेखा अनजाना विवरण। जिसे हम एक कहानी समझ कर शायद पढ़ लेते है। एक कहानी जो हमे शायद ख़ुशी देती है। एक कहानी जो हमारा मनोरंजन करती है। एक कहानी जो इतिहास का विषय है और विद्यालयों में पढ़ा और पढाया जाने वाला पाठ भी।
संयुक्त राज्य अमेरिका में हिन्दी के एक प्रमुख कार्यकर्ता श्री राम चौधरी से हिन्दी से जुड़े विभिन्न आयामों पर हुई बातचीत के मुख्य अंश
प्रश्न- हिन्दी भारत की राष्ट्रभाषा है। संविधान के अनुसार वह भारत की राजभाषा है। साहित्य की भाषा तो वह एक हजार वर्षों से है ही। क्या आप मानते हैं कि वह संयुक्त राष्ट्र की छ: मान्य भाषाओं की बिरादरी में शामिल होने वाली सातवीं भाषा बन सकेगी?
उत्तर- इस समय राष्ट्रसंघ की छ: आधिकारिक भाषाएं हैं- इंग्लिश, प्रेफन्च, रूसी, चीनी, स्पेनिश तथा अरबी। बीस अन्य भारतीय भाषाओं की भांति हिन्दी भारत की राष्ट्र भाषा है। संविधान में हिन्दी को राजभाषा बनाने की बात कही गई थी। परन्तु उसे अभी तक इस पद पर आसीन नहीं किया जा सका है। यह दुर्भाग्यपूर्ण वास्तविकता है।
प्रश्न- हिन्दी भारत की राष्ट्रभाषा है। संविधान के अनुसार वह भारत की राजभाषा है। साहित्य की भाषा तो वह एक हजार वर्षों से है ही। क्या आप मानते हैं कि वह संयुक्त राष्ट्र की छ: मान्य भाषाओं की बिरादरी में शामिल होने वाली सातवीं भाषा बन सकेगी?
उत्तर- इस समय राष्ट्रसंघ की छ: आधिकारिक भाषाएं हैं- इंग्लिश, प्रेफन्च, रूसी, चीनी, स्पेनिश तथा अरबी। बीस अन्य भारतीय भाषाओं की भांति हिन्दी भारत की राष्ट्र भाषा है। संविधान में हिन्दी को राजभाषा बनाने की बात कही गई थी। परन्तु उसे अभी तक इस पद पर आसीन नहीं किया जा सका है। यह दुर्भाग्यपूर्ण वास्तविकता है।
चलिए! आज बात करते हैं हिंदी भाषा की, कहने को तो हिंदी हमारे देश की राजभाषा है. मगर आज हिंदी को उतना सम्मान नहीं मिल रहा है, जितने की हक़दार थीं. फिर भी आज जितनी हिंदी की पत्र-पत्रिकाये शुरू होती है, उतनी अंग्रेजी की नहीं. अच्छा अब इस बहस में नहीं पड़कर सीधे से अपने विषय पर आते हैं.
पाठकों/दोस्तों, वैसे हिंदी की टाइपिंग थोड़ी मुश्किल तो है, मगर इतनी मुश्किल भी नहीं है कि-हिंदी की टाइपिंग सीखी/ करी न जा सकें. फिर हिंदी की टाइपिंग कौन-सी असंभव चीज है, जो करी न जा सकें.
एक बार किसी ने कहा था कि वो ब्लोगिंग में कमाई के उद्देश्य से आये थे और वो हर महीने एक अच्छी रकम प्राप्त भी कर रहे हैं ।
ये जरुरी नहीं कि आपका भी मंतव्य यही हो पर अगर ब्लॉग्गिंग के साथ थोड़ी कमाई भी हो जाए तो ये तो बहुत अच्छी बात होगी ।
ये जरुरी नहीं कि आपका भी मंतव्य यही हो पर अगर ब्लॉग्गिंग के साथ थोड़ी कमाई भी हो जाए तो ये तो बहुत अच्छी बात होगी ।
पिछले दिनों हमने अपनी आज़ादी के ६२ साल पूरे कर लिए। हमें अपनी इस आज़ादी पर गर्व है और होना भी चाहिए, क्यूंकि आखिरकार इतनी लड़ाइयो और खून-खराबे के बाद हमे अंग्रेजी हुकूमत से आज़ादी जो मिली। लेकिन क्या सच में हम आज आज़ाद है ??? ये सोचने वाली बात है !
चांदपुर इलाके के राजा श्री कुवरसिंह जी बहुत अमीर थे। उन्हें किसी चीज़ की कमी नहीं थी, फिर भी उनका स्वास्थय अच्छा नहीं था । बीमारी के मारे वे हमेशा परेशां रहते थे, कई वैद्यो ने उनका इलाज़ किया लेकिन उनको कोई फायदा नहीं हुआ।
राजा की बीमारी बढ़ाते गई और धीरे धीरे यह बात सारे नगर में फैल गयी। तब एक वृद्ध ने राजा के पास आकर कहा , " राजा, आपका इलाज़ करने की मुझे आज्ञा दे , "
श्याम सांवरे पललो ओढ़े निकले एक नित्य विहार को
खग मृग का सौंदर्य निहारने इस कलयुग में संसार को
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सहसा पड़ी एक युवक पर दृष्टि नेत्र सजल कर रोता था
श्याम मूर्त नत मस्तक होकर राधे की राह को जोहता था
श्याम बड़े ही चिंतित होकर विकृत चिंतन में खो से गए
इस दुविधा का कारक है क्या यह सोच ज़रा वो सो से गए
खग मृग का सौंदर्य निहारने इस कलयुग में संसार को
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सहसा पड़ी एक युवक पर दृष्टि नेत्र सजल कर रोता था
श्याम मूर्त नत मस्तक होकर राधे की राह को जोहता था
श्याम बड़े ही चिंतित होकर विकृत चिंतन में खो से गए
इस दुविधा का कारक है क्या यह सोच ज़रा वो सो से गए
हाल ही में कर्नल अजित दत्त के शोधपूर्ण आलेखों का संग्रह 'कोसी की दग्ध अंतर-कथा' के नाम से संवदिया प्रकाशन, अररिया से प्रकाशित हुआ है। इस पुस्तक में कुल 16 लेख संकलित हैं, जिनमें कोसी नदी और अंचल से जुड़ी ऐतिहासिक, पौराणिक, मिथकीय और समसामयिक विषय-वस्तुओं और संदर्भों का रोचक प्रस्तुतीकरण किया गया है।
कैलाश सी शर्मा जी की प्रोएट्री पढें ......कशिश पर ....
पीड़ा का उपहार दिया क्यों तुमने मेरे प्यासे उर को,
माना तुमसे खुशियों का प्रतिदान नहीं माँगा था मैंने।
फूल नहीं खिलते हर तरु पर,
लेकिन सभी नहीं ज़लते हैं।
नहीं चांदनी मिलती सब को,
लेकिन दीप नहीं बुझते हैं।
कैलाश सी शर्मा जी की प्रोएट्री पढें ......कशिश पर ....
पीड़ा का उपहार दिया क्यों तुमने मेरे प्यासे उर को,
माना तुमसे खुशियों का प्रतिदान नहीं माँगा था मैंने।
फूल नहीं खिलते हर तरु पर,
लेकिन सभी नहीं ज़लते हैं।
नहीं चांदनी मिलती सब को,
लेकिन दीप नहीं बुझते हैं।
Win XP मैं 'Start' Button का नाम बदलना बहुत ही आसन कम है
अब विदा लेती हूं .. अगले सप्ताह फिर मिलूंगी ... इसी मंच पर पुन: नए चिट्ठों के साथ ...
18 टिप्पणियाँ:
संगीता जी, बहुत सुन्दर लिंक्स दिए हैं , आपका आभार !
संगीता जी नए चिट्ठों की उम्दा वार्ता के लिए आपका कोटिश आभार.
ढेर सारी शुभकामनाएं और बधाई.
nice
अच्छी वार्ता के लिए आभार!
बहुत सुन्दर लिंक्स दिए हैं...
आपका आभार...!
लाजवाब चर्चा
बहुत सुन्दर लिंक्स...
इस बेहद उम्दा ब्लॉग वार्ता के जरिये इन नए चिट्ठो से परिचय करवाने के लिए आपका बहुत बहुत आभार !
उम्दा ब्लॉग वार्ता संगीता जी !
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
ढेर सारी शुभकामनाएं और बधाई.
बिल्कुल सन्नाट चर्चा.
रामराम.
sngitaa ji khub gaagr me sagr bhr diya he alg alg fulon ko sjaa kr khud ke blog me khuburt guldstaa bnaa diyaa h aakhir men rmzaan ki mubarkbaad ne to bs khusbu bhr di he or ise sugndhit bnaa diya he lekin zraa bch ke kuch hen jo ultaa sochte hen khin ilzaam naa de de isse chidkr. akhtar khan akela kota rajsthan
आभार संगीता जी निबोली की चर्चा करने के लिए।
बहुत ही सुन्दर चर्चा, जिसके माध्यम से अच्छे लिंक भी मिल गये हैं, आभार ।
best collection of blogs. thanks.
संगीता जी को बहुत बहुत साधुवाद। नये चिट्ठों को इसी तरह स्थान देना अत्यावश्यक है।
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