शुक्रवार, 22 अक्तूबर 2010

निठल्‍लों की मजलिस .. सच का बाजार .. ब्‍लॉग4वार्ता .. संगीता पुरी


आप सभी पाठकों को संगीता पुरी का नमस्‍कार , आज बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण में मिथिलांचल और कोसी सीमांचल क्षेत्र के 47 विधानसभा क्षेत्रों में गुरूवार को क़डी सुरक्षा के बीच हुए शांतिपूर्ण मतदान के दौरान 54 फीसदी से ज्यादा मतदाताओं ने अपने मताधिकार का उपयोग किया। इस तरह 52 महिलाओं सहित 631 उम्मीदवारों का राजनीतिक भविष्य इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों में बंद हो गया। चुनाव के पहले चरण में 47 सीटों के मतदान के दौरान चुनावी रंग सूबे में खूब दिखा।पूर्णिया में लोग गाजेबाजे के साथ वोट डालते देखे गये। उनका फलासफा था 'गीत गाता चल और वोट डालता चल' उन लोगों की ख्वाहिश मनपसंद सरकार लाने की है।

दूसरी तरफ मधुबनी में मतदाताओं ने अपनी मूलभूत सुविधाओं की मांग को लेकर वोटिंग का बहिष्कार किया और भीड़ के दरम्यान एक नारा गूंजता रहा...'अगर रोड नहीं तो वोट नहीं' अब तक चुनावों में विकास, स़डक निर्माण, सिंचाई सुविधा, बिजली आदि को मुद्दा बनते सुना गया होगा लेकिन बिहार विधानसभा चुनाव में इस बार सहरसा के लिए बंदर भी चुनावी मुद्दा बन गए हैं।सहरसा विधानसभा क्षेत्र के करीब 15 से 20 गांव के लोग बंदरों के आतंक से त्रस्त हैं। खेत-खलिहानों की कौन कहे घर के अंदर-बाहर बंदरों के उत्पात से लोग परेशान हैं। इस कारण यहां के लोगों ने तय किया है कि वे उसी प्रत्याशी को ही वोट देंगे जो इन बंदरों से उन्हें निजात दिला सके। बिहार के इस मुख्‍य समाचार के बाद अब बढते हैं इस सप्‍ताह हिंदी ब्‍लॉग जगत से जुडे कुछ नए चिट्ठों से , इन्‍हें पढकर आप भी इनका उत्‍साह बढाएं ......

रुपये जेब में आते ही मैं बैंक वाले दोस्त की उपेक्षा और घटियापन वाली कड़बड़ाहट भूल गया था. मैंने उसे आश्वस्त कर दिया था कि मेरी ताजा छपी कहानी के पैसे आने ही वाले हैं. यद्यपि दोस्त को मेरी इस बात पर ज्यादा यकीन नहीं आया पर उसने हिदायत दी कि मैं लेखन के चक्कर में न पड़कर कोई एग्जाम क्वालीफाई करूं और मैंने इस संबंध में आश्वासन भी दे दिया था.

दशहरे की परंपराओं के साथ यहां का 'गोम्बे हब्बा' (गुड़ियों का उत्सव) विशेष रूप से जुड़ा हुआ है। यह परंपरा मैसूरवासियों के लिए खासी महत्वपूर्ण रही है। यह उसी समय से चली आ रही है जिस समय वाडेयार राजघराने के शासक मैसूर की सत्ता पर आसीन थे। इस नजरिए से मैसूरवासियों की संवेदनाएं तथा बेहतर भावनाएं भी इस परंपरा के साथ काफी करीबी से जुड़ी हुई हैं।

शीत बीतती ठिठुराते ही,
अन्न नहीं जहां खाने को।
उन्हीं गरीबों के पैसों से,
खेल निराले होते हैं।
देश लूटते देश के दु्श्मन
कायर घर में सोते हैं।१


रोटी को जहां तरसे बचपन,
बिकता यौवन कोठे में,
प्यासे रहते गांव नीर बिन,
मधु हाला हम पीते हैं।
देश लूटते देश के दुश्मन,
कायर घर में सोते हैं।२
त्योहारों का मौसम शुरू हो गया है, पहले दशहरा फिर करवाचौथ और उसके बाद दिवाली। उत्सव के इस मौके पर घरों में मिठाइयां और पकवानों की बहार है। ज्यादातर घरों में अभी से तैयारियां भी शुरू हो गई हैं कि किस दिन, क्या बनेगा। दरअसल त्योहारों के दौरान जो पकवान खाते हैं, वे कैलॉरी से भरपूर होते हैं। आप अपने पकवानों को पकाने की विधि में थोड़ा फेर बदल करके फेस्टिव फूड का मजा दोगुना कर सकते हैं। आइए जानें कैसे-

ये माना है मुश्किल सफ़र ज़िन्दगी का,
मगर कम न हो हौसला आदमी का.

अंधरों से कोई भी डरने न पाए,
अंधरों पे कब्ज़ा रहे रोशनी का.

समझने को तैयार कोई नहीं है,
किसे फ़र्क समझाऊँ नेकी-बदी का.

दिल्ली से करीब 1300 किलोमीटर दूर, महाराष्ट्र के अहमदनगर ज़िले में बसा एक गांव…हिवरे बाज़ार…… जो की पोपट राव की कर्म भूमि रहा है।आज गांव का हर घर खुशहाल है। गांवके हर घर गुलाबी रंग में रंगा है। गांवकी गलियां हर वक्त इस तरह सज़ीरहती हैं मानो कोई त्यौहार मनाया जारहा है। गांव के सरकारी स्कूलों औरआंगनवाड़ी केंद्रों की हालत शहर केजाने माने प्राईवेट स्कूलों से बेहतर है।हालांकि ये खुशनुमा माहौल कोईपुरानी बात भी नहीं है।


बह रही नदी आज
सोई अलसाई सीरूचि कुछ अनमनी
पर छेड़ता है उसे
चंचल चपल वात
लहरें कुछ प्रगट हुईं
मन लहराया कुछ
ओढली नदी ने तभी
लहरदार .....चूनरी
उषाचुम्बित झिलमिली
सतरंगी ..... चूनरी
वही अनमनी रूचि
नृत्य करने लगी
लहरें सब दौड़ दौड़
क्रीडा करने लगी

वह समय का प्रवाह ही था
जिसने दिखाया था मुझे रास्ता
जिसने दी थी मुझे एक मंजिल
जिसमे मैंने छुआ था एक किनारा
वह समय का प्रवाह ही था कि...

अभी भी समय का ही प्रवाह है
मैं बहता जा रहा हूँ निरंतर
जैसे बहती हुई नदी
मिलती है समंदर से
लेती है बड़ी आकर
अपने अस्तित्व को खोकर
देती है उस समंदर को अपना सामर्थ्य
क्योंकि बहते रहने से ही
बनी रहती है उसकी सार्थकता
यह समय का ही प्रवाह है कि ...

आज अच्छा लगा.. दशहरा का पर्व है. जगह जगह रावन मारा गया. लोग खुश थे. दिन में माँ दुर्गा का विसर्जन हो रहा था. शाम में पतित रावन को मारा गया. मारने वाला खुश था. बेजान को मरते देखने वाले भी बहुत खुश थे. सभी खुश थे. पर शायद नहीं. सब खुश दिख जरुर रहे थे पर थे यह मै नहीं मानता. मै खुद भी खुश कहा था. लाखो की भीड़ लगी थी wrs मैदान पर. ये आंकड़ा मुख्यमंत्री जी का है. उन्होंने कहा था.. आयोजन समिति ये अनुमान नहीं लगा पा रही है की कितने लोग आये है. शायद २ लाख से भी ऊपर होंगे.खैर.. सभी आये थे बस एक चीज देखने. कैसी आतिशबाजी होती है. रावन इस बार कैसे अलग अंदाज में मरेगा. सभी की दिलचस्पी उस अनोखी आतिशबाजी में थी की कसे मैदान पर सूरज निकलता है और कैसे ग्लोबल वार्मिग का सन्देश लोगो को मिलेगा. ये सब पहले से तय था.

अहंकार में डूबा हुआ व्यक्ति अपने से बड़ों का सम्मान करना भूल जाता है.अभाव में जीवन जीते-जीते जब उसे अपनी योग्यता से अधिक अचानक कुछ मिलने लगता है तब वह दम्भी हो जाता है.ज्यादातर यह समाज के शोषित और उपेच्छित लोगों में अधिक होता है.बहुत कम लोग ऐसे होते हैं जो इससे अपने आप को बचा ले जाते हैं,मेरी नज़र में वो विरले होते हैं.अपने लिए अधिक से अधिक भौतिक सुख-सुविधाओं के साधन एकत्रित करना और अच्छे वस्त्र पहनने में ही वे अपना बड़प्पन समझते हैं.उनके अनुसार इन सब चीजों से आत्मविश्वास बढता है.बेचारे गांधीजी,आजीवन एक धोती में अपना जीवन कैसे गुजारे होंगे?

इन बक्सों में बंद हैं कुछ किताबें !
मैं सोच रहा था,सीढ़ी से नीचे उतरते वक़्त
शायद इसे बिखर जाना चाहिए था ,

बिखर तो इसलिए भी जाना चाहिए था,
कि किताबों के हर पन्ने पर
तुम्हारे चेहरे की भंगिमा
कुछ और भी, लिख और कह गई है!
उन शब्दों से तुमने अपने भीतर भी झाँक लिया था,
जो तुम्हारी आज़ादी के दरवाज़े पर
ताले की तरह लटक रहे थे!
दुनिया के रंग बदलते मैंने देखे है इन आँखों से !

देख रहा अतीत आज मैं वर्तमान की सलाखों से!!
रहा गुफाओं मैं घर मेरा,पत्थर से आग जलाता था !

अपनी भूख तृप्त करने ,जिन्दे खग को खा जाता था !
ना भाषा थी ना शब्द कोई बस इशारों में बतियाता था !

ज्ञान समझ कोई चीज़ ना थी बस जीकर मरना होता था!!

वार्ता को देते हैं विराम ,मिलते हैं एक ब्रेक के बाद....

16 टिप्पणियाँ:

इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

कुछ लिंक्स बहुत अच्छी लगीं |बाकी दोपहर में पढूंगी |अच्छी चर्चा
के लिए बधाई
आशा

अच्छे लिंक्स ...
आभार ...!

सुंदर संकलन है ...अच्छी चर्चा

धन्यवाद लिंक्स के लिए.

बढ़िया वार्ता--धन्यवाद

नए चिट्ठों की जानकारी आपसे मिल जाती है।

बेहद उम्दा वार्ता ...संगीता दीदी ! इस ब्लॉग जगत में जहाँ हर कोई अपनी पोस्ट और अपने जान पहेचान वाले की पोस्ट तक सिमित हो रह जाता है वहाँ आप का हर बार नए लोगो से परिचय करवाना निश्चित तौर पर आपको साधुवाद का पात्र बनाता है ! बहुत बहुत आभार !

काफ़ी अच्छे लिंक्स लगाये हैं कुछ पढ लिये हैं बाकी बाद मे पढती हूँ………………बहुत सुन्दर चर्चा।

काफी लिंक्स मिले बढ़िया वार्ता संगीता जी

देख रहा अतीत आज मैं वर्तमान की सलाखों से!!
रहा गुफाओं मैं घर मेरा,पत्थर से आग जलाता था !

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