बुधवार, 27 अक्तूबर 2010

ई-पंडित जी के ब्लॉग से उपयोगी लिंक्स .. आह चांद वाह चांद .. ब्‍लॉग4वार्ता .. संगीता पुरी

पश्चिमी इंडोनेशिया में जबरदस्त भूकंप के बाद आई दस फीट ऊंची सुनामी ने भारी तबाही मचाई है। 
सुनामी की चपेट में आने से 113 लोगों की मौत हो गई जबकि आठ विदेशी पर्यटकों समेत सैकड़ों लापता हैं। अधिकारियों के मुताबिक, पानी में उठे जलजले ने कई गांवों को नुकसान पहुंचाया है जिसकी वजह से हजारों लोग बेघर हो गए हैं। मेंतावयी द्वीप में सोमवार को 7.7 तीव्रता वाला शक्तिशाली भूकंप आया था। भूकंप का केंद्र समुद्र में 20 किलोमीटर नीचे स्थित था।
इसके बाद मंगलवार को समुद्र में उठी लहर ने 10 गावों को अपनी चपेट में ले लिया। यह द्वीप विदेशी सैलानियों की पंसदीदा जगह हैं आैर यहां अक्सर लोग सर्फिंग का लुत्फ उठाने के लिए पहुंचते हैं। यही वजह है कि कई सैलानी भी सुनामी के बाद से लापता बताए जा रहे हैं। प्रकृति से छेडछाड का ये नतीजा हमें झेलना ही होगा , मुसीबत में पडे लोगों को इस मुसीबत पर भी विजय प्राप्‍त करने की शुभकामनाएं देते हुए चलते हैं, ब्‍लॉग4वार्ता की ओर .....

आज शेफाली पांडे तथा कुलवन्त हैप्पी का जनमदिन है

आज, 27 अक्टूबर को मास्टरनीनामा वाली 'कुमाऊँनी चेली' शेफाली पांडे और  युवा सोच युवा ख्यालात, खुली खिड़की वाले कुलवन्त हैप्पी का जनमदिन है। दोनो को बधाई व शुभकामनाएँ

प्रवीण त्रिवेदी जी लेकर आए है .. तकनीकी के मास्साब :-) इ-पंडित जी के ब्लॉग से उपयोगी लिंक्स.... 

उपयोगी लिंक्स की आज की कड़ी में पेश है ...पुराने तकनीकी के मास्साब :-) इ-पंडित जी के ब्लॉग से तकनीकी सहायता


लीक से हटकर सोंचने का कमाल बता रहे हैं खुशदीप सहगल जी .... ये किस्सा अरसा पहले एक भारतीय गांव का है...एक गरीब किसान को मजबूरी में गांव के साहूकार से कर्ज़ लेना पड़ा...साहूकार अधेड़ और बदसूरत होने के बावजूद किसान की खूबसूरत जवान लड़की पर बुरी नज़र रखता था

आह चाँद या वाह चाँद ......

कहते हैं आज के दिन चाँद को देखें तो चोरी का दाग लगता है।  जिस चाँद ने इतना दूर होकर भी अपना माना, उसे इस डर से न देखूँ कि मुझ पर चोरी का दाग लगेगा? हा हा हा........।  इल्ज़ाम कुछ छोटा नहीं लग रहा है यारों, कोई भारी सा इल्ज़ाम सोचना था?     आज तो जरूर देखूँगा कि आज और बहुत सारों से मुकाबला नहीं करना होगा मुझे।  सिर्फ़ मैं और मेरा चाँद होंगे, बहुत दूर लेकिन बहुत पास।  
और धर्म और समाज के ठेकेदारों, मुझ जैसे को  बरजना था तो यह कहा होता कि आज चाँद को देखोगे तो चाँद को छींक आ जायेगी, फ़िर नहीं देखता मैं।

रचनाकार में मंजरी शुक्ल की कविता – गए थे परदेस में रोटी कमाने…

गए थे परदेस में रोजी रोटी कमाने
चेहरे वहां  हजारों थे पर सभी अनजाने


दिन बीतते रहे महीने बनकर
अपने शहर से ही हुए बेगाने


गोल रोटी ने कुछ ऐसा चक्कर चलाया
कभी रहे घर तो कभी पहुंचे  थाने




 किसी से आपको अपने शारीरिक बल की तुलना करनी है, उसके द्वारा निचोड़े कपड़े को निचोड़ें, यदि कुछ जल निकले तो जान लीजिये कि आपका बल अधिक है। बचपन में यह एक साधन रहता था खेल का और बल नापने का। कुछ दिन पहले पुत्र महोदय को हमसे शक्ति प्रदर्शन की सूझी तो यह प्रकरण याद आया, साथ ही यह भी याद आया कि पहले अपने कपड़े हम स्वयं ही धोते थे।

भूखे-नंगे हिन्दुस्तान का नारा एक गाली की तरह है..... 

हमारे जैसे लोग, जो अरुंधति राय को उनके किताब को बुकर प्राइज मिलने को लेकर जानते थे, आज उनके सनकपन लिये बयान के लिए जानते हैं. कुछ बुद्धिजीवी, कुछ विचारक, कुछ ब्लागर और कुछ तथाकथित पत्रकार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर अरुंधति का समर्थन करते हैं. हमारे देश में प्रजातंत्र का खुला स्वरूप हर उस बागी तेवर को पसंद करता है, जो इसकी धार को कम करता है. हमारे यहां सीमा पार कर रहे विचारकों का स्वागत किया जाता है. हम उन्हें हीरो बनाने में पीछे नहीं हटते हैं.

मन का पाखी में पढिए .... चुभन, टूटते सपनो की किरचों की..... 

अपना तकिया,अपना बिस्तर अपनी  दीवारें...और अपना खाली-खाली  सा कमरा...जिसने पूरे चौबीस साल तक उसकी हंसी-ख़ुशी-गम -आँसू सब देखे थे. उसके ग़मज़दा होने पर  कभी पुचकार कर अंक में भर लेता , कभी शिकायत करता ,इतना बेतरतीब क्यूँ रखा है तो कभी सजाने संवारने पर मुस्कुरा उठता . पिछले पांच बरस से जब-जब अपने कमरे में आती है लगता है ,जैसे शिकायत  कर रही हो दीवारें...इतने दिनों बाद सुध ली? तकिये पर सर रखते ही लगा,उसी पुरानी खुशबू ने अपनी गिरफ्त में ले लिया है. पलकें मुंदने लगी थीं.

 

त्यौहार सामने है और मेरी उत्तमार्द्ध, दोनों बेटे और बहू, चारों के चारों मुझसे खिन्न हैं। मजे की बात यह है कि ये चारों मेरी प्रत्येक बात से सहमत हैं फिर भी चाहते हैं कि मैं अपनी बातें एक तरफ सरका कर उनकी बात मान लूँ - बिना कुछ बोले। आँखें मूँद कर। 

कविताओं में प्रतीक शब्दों में नए सूक्ष्म अर्थ भरता है .. मनोज कुमार जी ....

यर्थाथ के धरातल पर हम अगर चीजों को देखें तो लगता है कि हमारे संप्रेषण में एक जड़ता सी आ गई है। यदि हमारी अनुभूतियां, हमारी संवेदनाएं, यर्थाथपरक भाषा में संप्रेषित हो तो बड़ा ही सपाट लगेगा। शायद वह संवेदना जिसे हम संप्रेषित करना चाहते हैं, संप्रेषित हो भी नहीं। अच्‍छा लगा” और मन भींग गया” में से जो बाद की अभिव्‍यक्ति है, वह हमारी कोमल अनुभूति को दर्शाती है। अतींद्रिय या अगोचर अनुभवों को अभिव्‍यक्ति के लिए भाषा भी सूक्ष्‍म, व्‍यंजनापूर्ण तथा गहन अर्थों का वहन करने वाली होनी चाहिए। भाषा में ये गुण प्रतींकों के माध्‍यम से आते हैं।

स्‍वप्‍न मेरे में दिगंबर नासवा जी को पढिए .. कहने को दिल वाले हैं ...

छीने हुवे निवाले हैं
कहने को दिल वाले हैं


जिसने दुर्गम पर्वत नापे
पग में उन के छाले हैं


अक्षर की जो सेवा करते
रोटी के फिर लाले हैं


खादी की चादर के पीछे
बरछी चाकू भाले हैं


तन पर जिनके उजले कपड़े
मन से उतने काले हैं 
बात तब की है जब खदेरन की फुलमतिया जी से शादी नहीं हुई थी।से बगल के मोहल्ले की एक लड़की पसंद आ गई। दो-चार दिन खदेरन उसके आगे-पीछे घूमा।  लड़की ने भी उसे देख कर हंस मुस्कुरा दिया। खदेरन उस पर फ़िदा हो गया। यार-दोस्तों से सलाह-मशवरा किया उसने। 

१७ नवम्बर २००७ .....निवार्क एयरपोर्ट से आज शाम हम मुंबई के लिए उड़ान भरने वाले है . मैं बहुत ख़ुशी ख़ुशी ममा के  साथ तैयार हो कर बाहर निकली .....मुझे बाहर घूमना बहुत पसंद है, सर्दी भी अब बड़ चुकी है. पापा हम लोगो के साथ एयरपोर्ट आए. मुझे तो यह पता ही  नहीं था कि पापा हमारे साथ नहीं जारहे इसलिए सेक्योरिटी चेक के बाद ही मैं पापा को खोजने लगी .....प्लेन में एयर प्रेशर के कारण मैं थोड़ा रोई भी लेकिन ममा की सबसे बड़ी उलझन तो यह थी कि अभी ८-१० दिन ही हुए थे जो मैंने घुटने चलना शुरू किया था अब मैं बेसिनेट मैं १८ घंटे कैसे चुप चाप बैठूं !!

नन्‍हें सुमन में .. “सेवों का मौसम है आया!”....

देख-देख मन ललचाया है 
सेवों का मौसम आया है ।
कितना सुन्दर रूप तुम्हारा।
लाल रंग है प्यारा-प्यारा।।

अंत में कार्टूनिस्‍ट सुरेश जी की पेशकश .. चुनावी लहर (कार्टून धमाका)...... 

 फिर मिलते हैं .. दो चार दिनों बाद नए चिट्ठों के साथ

13 टिप्पणियाँ:

ब्लॉग4वार्ता पर बहुत ही अच्छे लिंक दिये हैं आपने!

उपयोगी लिंक मिले इस वार्ता में।

अच्छे लिंक दिए आपने ! आभार

इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

संगीता जी,
मेरी पोस्ट का जिक्र करने के लिये आपका व इस मंच का बहुत बहुत आभार।

अच्छे लिंक्स मिले आभार.

सुन्दर लिंक्स के साथ सार्थक चर्चा।

नये ओर उपयोगी लिकंओ से सजी आप की यह सुंदर चर्चा. धन्यवाद

अच्छे लिंक्स मिले आभार.

बहुत अच्छी वार्ता रही !
____________
फिर से हरियाली की ओर........support Nuclear Power

सुंदर चर्चा. धन्यवाद

जानकर खुशी हुयी कि सक्रियता कम होने के बावजूद हमारा लिखा अब भी किसी के काम आ रहा है। धन्यवाद हमारे ब्लॉग का जिक्र करने के लिये।

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