गुरुवार, 3 जनवरी 2013

घोंघा बसंत: बूड़ मरे नहकउनी दै …… ब्लॉग4वार्ता …… ललित शर्मा

ललित शर्मा का  नमस्कार, हिन्दुओं का धार्मिक पर कुंभ प्रारंभ होने को है, प्रशासन एवं धार्मिक गुरुओं में रस्साकसी के चलते कुंभ प्रभावित होने की आशंका व्यक्त की जा रही है। कुंभ में मेला प्रशासन की अव्यवस्था से क्षुब्ध होकर शंकराचार्य स्वामी स्वरुपानंद सरस्वती जी मेला क्षेत्र छोड़ कर वाराणासी प्रस्थान कर गए हैं। कुंभ के प्रति सरकार कतई गंभीर नजर नहीं आ रही है। प्रयाग में लगने वाला कुंभ मेला दुनिया का सबसे बड़ा आयोजन होता है। करोड़ों हिन्दुओं की धार्मिक आस्था से जुड़े हुए कुंभ पर्व की अनदेखी से श्रद्धलुओं में रोष व्याप्त है। सरकार को श्रद्धालुओं की धार्मिक आस्था को ध्यान में रखते हुए व्यवस्था करनी चाहिए। अब चलते हैं आज की वार्ता पर, प्रस्तुत हैं कुछ उम्दा चिट्ठों के लिंक्स …………।

कर्नल नाथू सिंह शेखावत : शख्सियत परिचयकर्नल नाथूसिंह शेखावत कर्नल नाथूसिंह शेखावत का जन्म 7 मार्च सन 1946 में राजस्थान के शेखावाटी आँचल में झुंझुनू जिले के गांव “ढाणी-बाढान” के ठाकुर श्री शाहजादसिंह के घर हुआ| ठाकुर शाहजादसिंह जी पंजाब रेजिमेंट के बहादुर सैनिक थे वे द्वितीय विश्व युद्ध में फ़्रांस, इटली व यूरोपीय क्षेत्र में बहादुरी के लिए अलंकरित किये गए थे| सन 1952 में दुर्भाग्यवश ठाकुर शाहजादसिंह काल-चक्र जनित मारक आपदाओं से घिर गए और उनकी आर्थिक सम्पन्नता विपन्नता में परिणित हो गयी| घर की आर्थिक स्थिति लड़खड़ाने के बावजूद कर्नल नाथूसिंह की माता जी श्रीमती शिवताज कुंवरी निरवाण अपने पुत्र की शिक्षा के लिए सजग रही| उन्हो... more »

बूड़ मरे नहकउनी दै इस छत्‍तीसगढ़ी लोकोकित का भावार्थ है दुहरी नुकसानी. इस लोकोक्ति में प्रयुक्‍त छत्‍तीसगढ़ी शब्‍द 'बूड़' और 'नहकउनी' का अर्थ जानने का प्रयास करते हैं. छत्‍तीसगढ़ी शब्‍द 'बूड़' से 'बुड़ना' बना है जिसका अर्थ है डूबना, अस्‍त होना. चांद, तारे, सूर्य आदि के अस्‍त होने को भी 'बुड़ना' कहा जाता है. सूर्य के अस्‍त होने संबंधी एक और शब्‍द छत्‍तीसगढ़ में प्रचलित है 'बुड़ती'. सूर्य के उदय की दिशा (पूर्व) को 'उत्‍ती' एवं सूर्य के अस्‍त होने की दिशा (पश्चिम) को 'बुड़ती' कहा जाता है. पानी या किसी दव्‍य में पदार्थ का अंदर चले जाने के भाव को भी 'बूड़ना' कहा जाता है. निर्धारित तिथि के उपरांत गिरवी रखी ... more »
हाउसवाइफ से वर्किंग वूमैन तक *मेरे घर में पिछली पीढ़ी में (मां-मौसी-चाची-मामी-बुआ) 99 % स्त्रियां हाउसवाइफ थीं। अगली जनरेशन में 99 लड़कियां वर्किंग हैं। उन्‍हें एजूकेशन मिली और घर से निकलकर नौकरी करने का मौका भी। लेकिन इन दो पीढि़यों की जिंदगी में आखिर बदला क्‍या?* 1- मेरी हाउसवाइफ मौसी सुबह सबसे पहले उठती थीं। मेरी नौकरीपेशा बहन सुबह सबसे पहले उठती है। 2- मेरी हाउसवाइफ मौसी उठते ही सबसे पहले किचन में घुसती थीं। मेरी नौकरीपेशा बहन उठते ही सबसे पहले किचन में घुसती है। 3- मेरी हाउसवाइफ मौसी चाय-नाश्‍ता बनाकर पति के हाथ में पकड़ाती थीं, मेरी नौकरीपेशा बहन चाय-नाश्‍ता बनाकर पति के हाथ में पकड़ाती है। 4- मेरी हाउसव... more »
दहशत, आक्रोश और एक जायज माँगदिल्ली गैंग रेप केस- इस घटना ने बहुत अन्दर तक डर बैठा दिया है- हम जैसों के मन में ,जो लम्बे समय से अपने जीवन में संघर्ष ही करते आए हैं। एक हादसा या दुर्घटना पूरे परिवार को तोड़ देती है ,ये वही जान सकता है ,जिसने उस दर्द या पीड़ा को जिया है.... न्यायमूर्ति वर्मा जी की समिती से हमारा निवेदन है कि इस और ऐसे अपराध के अपराधी/अपराधियों को तुरन्त सजा देने के निर्णय लिए जाएं जबकि सब कुछ साफ़ है/हो ... मैंने बलात्कार की इस घटना को लेकर अपने आसपास के लोगों से अपने मन में उठे विचार लिखने को कहा था,आज वही यहाँ प्रस्तुत कर रही हूँ--- 1) अस्मिता बचाने की लाचारी ने अस्तित्व को संकट में डाल दिया,... more »
घोंघा बसंत: आदर्श घुमक्कड़ घोंघा बसंत! हाँ गुरुजी यही कहते थे। पढाने के बाद भी अगर कोई विद्याथी उनके प्रश्न का जवाब नहीं दे या फ़िर सवाल हल करने में अक्षम रहे तो गुरुजी उसे सार्वजनिक रुप से घोंघा बसंत की उपाधि से नवाजकर सम्मानित करते थे। कक्षा में प्रतिवर्ष 2-4 घोंघा बसंत विरासत के तौर मिल जाते थे। हमारे सहपाठी घोंघा बसंत पिछली कक्षा में छूट जाते और अगली कक्षा में छूटे हुए मिल जाते। तब हमें यह न मालूम था कि गुरुजी ठस बुद्धि विद्याथियों को घोंघा बसंत क्यों कहते हैं। शंख जैसे छोटे से खोल में रहने वाला लिजलिजा प्राणी घोंघा कहलाता है यह हम जानते थे। हम आगे की कक्षाओं में बढते बढते इतने आगे बढ गए कि आज तक मुड़कर... more 
2012 यानी भ्रष्टाचार और बलात्कार का वर्ष - वर्ष 2012 विदा हो चुका है। 2013 अपनी पूरी मस्ती के साथ आ चुका है। यह साल कैसा होगा, यह अभी तो नहीं कहा जा सकता? पर इतना तय है कि पिछले वर्ष का अंत जिस तरह से हमारे सामने आया, उससे यही लगता है कि यह साल हम सबके लिए चुनौतीपूर्ण है? क्योंकि देश कई समस्याओं से जूझ रहा है। केंद्रीय सरकार हर मोर्चे पर विफल साबित हो रही है। भ्रष्टाचार बेलगाम है, अब बलात्कार की घटनाओं में अप्रत्याशित रूप से तेजी आ गई है। महंगाई अपना खेल खेल रही है। डीजल के दाम बढ़ने वाले हैं। कुल मिलाकर यही कहा जा सकता है कि 2013 कोई खुश खबरी लेकर नहीं आ रहा है। उसे तो आना ही है, वह आएगा भी। पर क्या हम उसका... more »
न जाने तुमने ऊपर वाले से क्या क्या कहा होगा *न जाने क्या हुआ है हादसा गमगीन मंज़र है * *शहर मे खौफ़ का पसरा हुआ एक मौन बंजर है * *फिजाँ मे घुट रहा ये मोमबत्ती का धुआँ कैसा * *बड़ा बेबस बहुत कातर सिसकता कौन अन्दर है* *सहम कर छुप गयी है शाम की रौनक घरोंदों मे * *चहकती क्यूँ नहीं बुलबुल ये कैसा डर परिंदों मे * *कुहासा शाम ढलते ही शहर को घेर लेता है * *समय से कुछ अगर पूछो तो नज़रें फेर लेता है * *चिराग अपनी ही परछाई से डर कर चौंक जाता है * *न जाने जहर से भीगी हवाएँ कौन लाता है* *ये सन्नाटा अचानक भभक कर क्यूँ जल उठा ऐसे* *ये किसकी सिसकियों ने आग भर दी है मशालों मे * *सड़क पर चल रह... more »
घातक शस्त्र को कवच में बदल दिया यह प्रसंग भाषा के चमत्कार का तो नहीं, भाषा के सुन्दर उपयोग का अवश्य है। सूझ-समझ हो तो, जो भाषा, धारादार और घातक औजार के रूप में आपके विरुद्ध प्रयुक्त की जा रही है, उसे ही आप अपना कवच कैसे बना सकते हैं, यह भी इस प्रसंग से समझा जा सकता है। भाषा तो वही होती है, बस! आवश्यकता होती है, उसे प्रयुक्त करने के कौशल की। यही कौशल, सामनेवाले द्वारा प्रयुक्त किए गए घातक-शस्त्र को बूमरेंग बनाकर, आक्रामक को लौटा सकता है, जिस पर वार किया गया है, वही इसे अपना कवच बना लेता है। कुछ इस अन्दाज में कि ‘कैसे तीरन्दाज हो? सीधा तो कर लो तीर को!’ बात 1980 की है। दादा मध्य प्रदेश सरकार में, स्वतन... more »

दोष नहीं दे सकता कल को क्षुब्ध मनस का भार सहन है, दोष नहीं दे सकता कल को, गहरे जल के तल में बैठा, देख रहा हूँ बहते जल को। क्या आशायें, क्या इच्छायें, क्या जीवन की अभिलाषायें, अनुचित, उचित विचार निरन्तर, रच क्यों डाली परिभाषायें, सबने जकड़ जकड़ कर बाँधा, नहीं जिलाया व्यक्ति विकल को, दोष नहीं दे सकता कल को। यह सच है, जिसने जीवन को देखा, परखा, समझा है, आहुति बनकर स्वयं जलाया, यज्ञ उद्गमित रचना है, कैसे नहीं निर्णयों में वह लायेगा व्यक्तित्व सकल को, दोष नहीं दे सकता कल को। मैने जीवन की गति को अब स्थिर मन से देखा है, महाचित्र पर खिंचती जाती, कर्मक्षेत्र की रेखा है, ये रेखायें सतत बनातीं, योगदान फिर ... more »


वार्ता को देते हैं विराम ……… मिलते हैं अगली वार्ता में, राम राम

6 टिप्पणियाँ:

बढ़िया वार्ता ..चलता रहे यह सिलसिला ....!

इस अभियान को निरन्‍तर बनाए रखने का श्रम और इसे इस स्‍वरूप में प्रस्‍तुत करनेवाले ब्‍लॉगिया मित्रों की निष्‍ठा-भावना सचमुच में प्रणम्‍य है।

मेरे ब्‍लॉग को स्‍थान देने के लिए आभार और धन्‍यवाद। कृपा है आपकी।

बहुत बढ़िया वार्ता... आभार

बहुत ही सुन्दर सूत्रों का संकलन..

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