सोमवार, 1 अक्तूबर 2012

देश की आर्थिक नीति और क्या थे वादे...?.... ब्लॉग4वार्ता....संध्या शर्मा

 संध्या शर्मा का नमस्कार ....अब, मुफ्त में होगी फोन पर बात? टेलीकॉम मंत्री कपिल सिब्बल ने आज कहा कि सरकार आने वाले सालों में वॉयस कॉल फ्री करने पर विचार कर रही है... कितना ध्यान रखती है न हमारी सरकार अपनी जनता का... :)) लीजिये प्रस्तुत हैं आज की वार्ता कुछ चयनित लिंक्स के साथ...  

रंगभेद की पहली सीख - एदुआर्दो गालेआनो (जन्म उरुग्वे,1940- ) अभी के सबसे पढ़े जाने वाले लातिनी अमेरिकी लेखकों में शुमार किये जाते हैं। लेखन और व्यापक जनसरोकारों के संवाद के अपने अ..जागीर ... - हमने तो सुना था, कि - सिर्फ ..... सरकार उनकी है ? पर, यहाँ तो - सारा मुल्क ... उनके ... बाप की - जागीर हमको लग रहा है ?? .ज़रूरत है गांधी के स्त्रीविमर्श को समझने की - *-****डॉ. शरद सिंह*** *इसमें कोई दो मत नहीं कि महात्मा गांधी के विचार कालजयी हैं। दुख तो तब होता है कि गांधी के देश में कोई डी आई जी पद का अधिकारी कहता ...कहते हैं यहाँ ज्ञान मिलता है - दक्षिण के छोटे कस्बों, गाँव खेड़ों के हिन्दुओं का मंदिर जाकर देवी/देवताओं का दर्शन करना साधारणतया उनके दैनिक दिन चर्या का एक हिस्सा होता है. वहीँ शहरों या...

महबूब की बेवफाई - मैं सार्वजनिक उपक्रमों का पक्षधर हूँ। मेरी धारणा है कि ये हम सामान्य लोगों को निजी क्षेत्र की मनमानियों और शोषण से बचाते हैं। यह भी जानता हूँ ‘सरकारी’... यही रोज़गार बचा है मेरे पास - मेरे कंधे पर शाम की छतरी से टूट कर दफ़अतन गिरा एक लम्हा था। एक चादर थी, चाँद के नूर की और उसकी याद का एक टुकड़ा था। मैं उलटता रहा इंतज़ार की रेतघड़ी। ...देश की आर्थिक नीति - देश में आर्थिक सुधारों के जनक और आज के पीएम मनमोहन सिंह के अनुसार देश के लिए जो आर्थिक नीतियां बनाये जाने की आवश्यकता है उन्हें बनाने में वे... 

देखी होगी तुमने....... - देखी होगी तुमने........ मेरी सोती-जागती कल्पनाओं से, जन्म लेती हुई कविताओं को,प्रसव वेदना से मुक्त होते हुये, सुनी होगी........ उनकी पहली किलकारी, मेरी ... अंत - अंत sSj पहले से ही हताश हवा के चेहरे पर उड़ने लगी हैं हवाईयां. जीवन के अंत का आभास जो दिला रहे हैं उसके अनवरत बढते नाखून बचपन में सुना करती थी चूहों के लगात... क्या थे वादे ..... - * ** * * ** ** ** ** **क्या थे वादे , क्या निभाया * *क्या निभाना शेष है * *स्मृतियों का लोप होना ,* *विध्वंश का सन्देश ... 

विध्‍नविनाशक के भक्‍तों को बचाएं विध्‍न से... - दस दिनों तक उत्साह और उमंग का पर्याय रहे गणपति बप्पा की विदाई हो गई। विदाई भी पूरे जोशोखरोश के साथ हुई। जगह जगह जुलूस और झांकियां निकाली गईं और अगले बरस ...हम वीर भगत सिंह को शत शत शीश झुकाते हैं - लानत भेजो नेताओं को जो अपनी तोंद बढ़ाते हैं हर हालत में देखो इनको अपनी मौज बनाते हैं नालायकी की हद है देखो अपने शहीदों को बिसराते हैं अखबार के पहले पेज ... रूपये तो पेड़ों पर ही लगते हैं सरदार जी ! - चिल्हर संकट के कारण पैसा तो बाज़ार से कब का गायब हो चुका है . अब तो रूपए का जमाना है .इसलिए सरदार जी को कहना ही था तो कहते कि रूपए पेड़ पर नहीं लगते ,लेकिन ... 

एकांत-रुदन... - ज़िन्दगी में दोस्तों का होना कितना ज़रूरी हो जाता है कभी-कभी... कोई फोर्मलिटी वाले दोस्त नहीं, दोस्त ऐसे जिन्हें दोस्ती की बातें पता हो... मोनाली की भाषा ... उस थाली में क्‍या था....? - *कीमती लोग कीमती भोग*** एक थाली पर कितना खर्चा है..आजकल इसकी बड़ी चर्चा है। पता नहीं क्‍यों ताकते हैं लोग दूसरे की थाली में....क्‍या क्‍या भरा थाली में... सांझ - ये सांझ .... बीतेगी कैसे... तुम ही कहो न. उस शाम , तुम्हारे बिछड़ने के उस पल से मेरी सुरमई आँखों में तैरती लाली तेरी आँखों में ठहर गयी है लाख जतन कर... 

चलते - चलते एक कार्टून 

आज के लिए बस इतना ही नमस्कार....

11 टिप्पणियाँ:

पैसे पेड़ों पर ही लगते हैं
पर क्या करें
सड़कों की चौड़ाई
बढ़ाने के लिये
सारे पेड़ ही कटवा दिये
अब अबाध गाड़ी दौड़ती है
डीज़ल/पेट्रोल बचता है
सच में मुझे लिखना नही आता
नहीं तो इसी चर्चा पर कविता लिख डालती
शुक्रिया संध्या दीदी... सुन्दर लिंक्स

लगभग दो महीनों से, अण्‍णा द्वारा दिएग गए सदमे से त्रस्‍त और प्रभावित रहा - लगभगत हताशा की स्थिति में। इस अवधि में लिखना और पढना बन्‍द ही रहा। धीरे-धीरे उबरने की कोशिश कर रहा हूँ। कल या परसों भी, अपने ब्‍लॉग का उल्‍लेख 'ब्‍लॉग4वार्ता' में देखा था और अच्‍छा लगा था।

आज भी अपने ब्‍लॉग को इस संक्षेपिका में देखकर अच्‍छा लग रहा है। लेकिन कुछ भी पढने का मन नहीं हो रहा। क्षमा कर दीजिएगा।

आभारी हूँ आप सबका कि आप कृपा बनाए हुए हैं।

आपने बहुत ठीक कहा पेड़ों पर र्पैसे नहीं उगते |मैंने भी एक बार गमले में एक पैसा बोया था रोज पानी दिया फिर भी आज तक उसमें अंकुर तक नही फूटा |तब सच्चाई से बहुत दूर कल्पना में जीती थी और अब यथार्थ -------|वार्ता बहुत अच्छी लिंक्स से सजी है |
आशा

सुप्रभात ....

बढ़िया वार्ता ...

बेहतरीन वार्ता के साथ उत्‍कृष्‍ट लिंक्‍स

वाह, आपने तो बहुत अच्छी महफिल जमा रखी है। मौका निकाल कर आता रहूंगा।

पैसे का पेड़
कौन कहता है की पैसा पेड़ पर नहीं उगता ,
पैसा तो मेहनत के पेड़ पर लगता है,
और सच्चाई और कर्तव्य से मिलता है,
इसे हम ईमानदारी का पेड़ कहते है,
इसे हम नेक कमाई कहते हैं
इसी के सहारे गरीब अपना,
जीवन निर्वाह करते हैं,
हाँ, एक पैसा और होता है,
यह पैसा तो पेड़ पर ही उगता है,
इस पेड़ का नाम है "भ्रष्टाचार" ,
खुदगर्जी की ज़मीन पर,
बईमानी के बीज में से यह उपजता है,
लालच की खाद और मजबूरी के खून से ,
सींच कर यह पौधा खूब पनपता है,
धीरे धेरे यह फलदार वृक्ष बन जाता है,
इसकी छाल इतनी मोटी है,
कोई फरियाद असर नहीं करती,
बस जिसकी चलती है,
बस उसी कि चलती है,
इसके फल तो "खास" आदमी ही पाता है,
आम आदमी तो बेचारा, मजबूरी का मारा ,
बस खून के आंसू, पीकर रह जाता है,
---जय प्रकाश भाटिया.

उत्‍कृष्‍ट लिंक्‍स............

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