आज की वार्ता में संगीता स्वरूप का नमस्कार ---- एक विशेष सूचना --
भारतीय महिला पत्रकारों की संस्था, इंडियन वीमेन प्रेस कॉर्प वाणी प्रकाशन के साथ मिलकर हिंदी कहानी प्रतियोगिता का आयोजन करने जा रही है। इसके पहले अंग्रेजी में भी कहानी प्रतियोगिता का आयोजन किया गया था जिसे भरपूर सराहना मिली। इसी के मद्देनजर व्यापक हिंदी पट्टी को ध्यान में रखते हुए हिंदी कहानी प्रतियोगिता का आयोजन किया जा रहा है।
कहानी प्रतियोगिता की थीम है--समकालीन समाज में संबंधो की बदलती परिभाषा। कहानी की शब्द संख्या अधिकतम 3.000 हो। प्रतियोगिता में तीन कहानियों को पुरुस्कृत किया जाएगा। प्रथम पुरस्कार-11,000 रुपये,दूसरा एवं तीसरा पुरस्कार-7.000 रुपये। पुरस्कार के लिए कहानियों का चयन करेंगी देश की जानी मानी महिला कथाकारो की तीन सदस्यीय ज्यूरी चयनित करेगी। कहानी मौलिक एवं अप्रकाशित होनी चाहिए। किसी भी प्रतियोगिता में पुरस्कृत कहानी पर विचार नहीं किया जाएगा। इसका स्पष्ट उल्लेख एक पत्र में करें। बाद में चुनिंदा कहानियों का एक संकलन वाणी प्रकाशन से प्रकाशित किया जाएगा, जो अगले साल होने वाली विश्व पुस्तक मेले में धूमधाम से रिलीज होगी। यह प्रतियोगिता सभी महिला रचनाकारो के लिए खुली है सिर्फ हमारे क्लब की पदाधिकारी और मैनेजिंग कमिटि की सदस्य भाग नहीं ले सकतीं।
सभी रचनाकारो से अनुरोध है कि वे अपनी कहानी के दो टाइप प्रिंट इस पते पर भेजें--Indian Women's Press Corps, (Hindi Story Competition), 5 Windsor Place, New Delhi- 110001. कहानी के साथ आपका नाम, पता और मोबाइल न. साफ साफ लिखा होना चाहिए। साथ ही आप कहानी ईमेल पर भी भेजे। ईमेल पता है--iwpchindistory@gmail.com
कहानी सिर्फ यूनीकोड, चाणक्य और क्रुतिदेव फॉन्ट में टाइप हो- कहानी भेजने की अंतिम तारीख--15 नवंबर,2012 है। (प्रेस रिलीज)
नोट: समाचार4मीडिया देश के प्रतिष्ठित और नं.1 मीडियापोर्टल एक्सचेंज4मीडिया का उपक्रम है। समाचार4मीडिया.कॉम में हम आपकी राय और सुझावों की कद्र करते हैं। आप अपनी राय, सुझाव और ख़बरें हमें samachar4media@exchange4media.com पर भेज सकते हैं या 09899147504/ 09911612929 पर संपर्क कर सकते हैं।
चलिये चलते हैं आज की वार्ता पर ----
या कहूँ वसुन्धरा
अतल सिन्धु
कल- कल सरिता
भोर किरन
न शाम के साए,
एक सहज सा रस्ता,
न पिआउ, न टेक |
कि मैं सब कुछ जानता हूं
सब कुछ?
लेकिन तुम्हारी आँखों ने तो
कभी कुछ नहीं कहा
बस थोड़े से ही अक्षर हैं
कुछ और मैं कहना चाहूँ
पर भाव तो निरा निरक्षर है
मलाला युसुफजई
राख का ढेर समझा तुमने
जहाँ दबे पड़े थे शोले !
लो ,उड़ी एक चिंगारी ,
मलाला यूसुफ़ज़ई !
आखिर इतना मजबूत सीलेंडर लीक हुआ कैसे ?
इसका ज़वाब तो भ्रष्टाचार की पटरानी के पास भी नहीं है .यह वाड्रा को आगे करके रंग भूमि से जो खेल खेल रहीं थीं यही इस नाटक की सूत्र धार थीं
.अपना मंद मति बालक तो इतने पासे एक साथ फैंक ही नहीं सकता .उसमें इतनी अकल ही नहीं है .
तुम कठिन है
मुश्किलों का हल |
अब बताओ
किसे लाऊँ
फूल ,गंगाजल |
सातवाँ बहुत खूबसूरत है | महंगा तो अवश्य है ,परन्तु है, सब से हटकर | उसको लेने वाले भी अलग से दिखते हैं | मुझे लाइन में लग कर यह कहने में ही हीनता हो रही थी कि मेरा तो अभी तीसरा ही है | मैं शक्ल से दीन हीन तो लगता ही हूँ ,मेरे साथ मेरा सिलंडर भी शर्माते हुए जमीन में धंसा जा रहा था | सातवें और उससे अधिक वालों की लाइन एकदम अलग
जो तफ़सील से कह सकूँ
वो बात , वो फ़लसफ़ा
एक इल्तिज़ा, एक चाहत
एक ख्वाहिश, एक जुनून
मौसम ने फिर करवट ली है... सर्दी की ख़ुश्बू एक बार फिर फिज़ा में घुलती हुई सी महसूस होने लगी है... ठीक वैसे ही जैसे तुम्हारी ख़ुश्बू घुली हुई है मेरी साँसों में... कल ऑफिस से वापस आते वक़्त हवा में ठंडक थी... तुम्हें सोचते हुए जाने कब रास्ता कट गया तुम्हारे एहसास की गर्मी ने कितनी राहत पहुँचायी सारे रास्ते...
वर्तमान साहित्य में नारी पर पर्याप्त मात्रा में लेखन कार्य हो रहा है, पर कई बार यह लेखन एकांगी होता है। यथार्थ के धरातल पर आज भी नारी-जीवन संघर्ष की दास्तान है। नारी बहुत कुछ कहना चाहती है पर मर्यादाएं उसे रोकती हैं। कई बार ये अनकही भावनाएं डायरी के पन्नों पर उतरती हैं या साहित्य-सृजन के रूप में
मूरख मैं साबित हुआ, फक्कड़ मिला ख़िताब
घाटा सब मैंने भरा, ऐसे हुआ हिसाब
उम्मीद:
घिरते बादल शाम से, काले - लाल- सफ़ेद
शायद अब हो जायगा, आसमान में छेद
किताब में एक पन्ना था ,
पन्ने में हृदय को छू लेने वाले
भीगे भीगे से, बहुत कोमल,
बहुत अंतरंग, बहुत खूबसूरत से अहसास थे ।
इस भागती दौड़ती दुनिया में तनाव बड़ता ही जा रहा है, कुछ शारीरिक समस्याएँ वर्षों पहले कुछ उम्र के बाद होती थीं याने कि लगभग ५० वर्ष के बाद होती थीं । अब वे शारीरिक समस्याएँ तेजी से कम उम्र की अवस्था में होने लगी हैं।
सब कहते हैं कि स्वस्थ्य जीवन जीना चाहिये, सबकी इच्छा स्वस्थ्य जीवन जीने की होती है, परंतु या तो समय पास ना होने की लाचारी होती है या फ़िर आराम तलबी के कारण पसीना नहीं बहाने देने की लाचारी होती है।
ओ ... उड़ते हुए बादल |
सवालों में उलझे अनसुलझे ,
पहलुओं को सुलझा जा |
घटा मरण जिस घड़ी बीज का,
अंकुर भी तब लुप्त हुआ था
अस्तित्त्व में आया पौधा !
जो अशआर मे अश्क-ए-गम इजाद हुए हैं !
रहबर ने गर्दिश-ए- खाकसार बना दिया,
जैसे तूफां के झोकों से दरख्त बर्बाद हुए है !
हालाँकि, अनअपेक्षित रूप से एक पुरुष मित्र ने किसी दूसरे मित्र के कंधे पर बन्दूक रखकर लगभग हमारे चरित्र पर ही ट्रिगर दबा दिया . पता नहीं जिंदगी को इतने रूखेपन से क्यों जीते हैं लोग .
प्यार का मौसम है, आओ प्यार की बातें करें।।
नेह की लेकर मथानी, सिन्धु का मन्थन करें,
छोड़ कर छल-छद्म, कुछ उपकार की बातें करें।
चलती ये सर्द हवा कितनी खामोशी से।
कितने गुमसुदा और तन्हा हैं ये दरख्त खड़े,
हैं पूछते सवाल यूँ अपनी ही गुम परछाईं से ।।
बहुत सारी बुराइयाँ आ बैठीं मुझमे
और जितनी भी अच्छाइयाँ हैं मेरे अंदर
वह सब की सब तुम्हारी हैं
बात बात में टोकना तुम्हारा
मैं झुंझला जाता था भले प्रकट नहीं करता था
आज के लिए बस इतना ही .... अब आज्ञा दीजिये ... नमस्कार
भारतीय महिला पत्रकारों की संस्था, इंडियन वीमेन प्रेस कॉर्प वाणी प्रकाशन के साथ मिलकर हिंदी कहानी प्रतियोगिता का आयोजन करने जा रही है। इसके पहले अंग्रेजी में भी कहानी प्रतियोगिता का आयोजन किया गया था जिसे भरपूर सराहना मिली। इसी के मद्देनजर व्यापक हिंदी पट्टी को ध्यान में रखते हुए हिंदी कहानी प्रतियोगिता का आयोजन किया जा रहा है।
कहानी प्रतियोगिता की थीम है--समकालीन समाज में संबंधो की बदलती परिभाषा। कहानी की शब्द संख्या अधिकतम 3.000 हो। प्रतियोगिता में तीन कहानियों को पुरुस्कृत किया जाएगा। प्रथम पुरस्कार-11,000 रुपये,दूसरा एवं तीसरा पुरस्कार-7.000 रुपये। पुरस्कार के लिए कहानियों का चयन करेंगी देश की जानी मानी महिला कथाकारो की तीन सदस्यीय ज्यूरी चयनित करेगी। कहानी मौलिक एवं अप्रकाशित होनी चाहिए। किसी भी प्रतियोगिता में पुरस्कृत कहानी पर विचार नहीं किया जाएगा। इसका स्पष्ट उल्लेख एक पत्र में करें। बाद में चुनिंदा कहानियों का एक संकलन वाणी प्रकाशन से प्रकाशित किया जाएगा, जो अगले साल होने वाली विश्व पुस्तक मेले में धूमधाम से रिलीज होगी। यह प्रतियोगिता सभी महिला रचनाकारो के लिए खुली है सिर्फ हमारे क्लब की पदाधिकारी और मैनेजिंग कमिटि की सदस्य भाग नहीं ले सकतीं।
सभी रचनाकारो से अनुरोध है कि वे अपनी कहानी के दो टाइप प्रिंट इस पते पर भेजें--Indian Women's Press Corps, (Hindi Story Competition), 5 Windsor Place, New Delhi- 110001. कहानी के साथ आपका नाम, पता और मोबाइल न. साफ साफ लिखा होना चाहिए। साथ ही आप कहानी ईमेल पर भी भेजे। ईमेल पता है--iwpchindistory@gmail.com
कहानी सिर्फ यूनीकोड, चाणक्य और क्रुतिदेव फॉन्ट में टाइप हो- कहानी भेजने की अंतिम तारीख--15 नवंबर,2012 है। (प्रेस रिलीज)
नोट: समाचार4मीडिया देश के प्रतिष्ठित और नं.1 मीडियापोर्टल एक्सचेंज4मीडिया का उपक्रम है। समाचार4मीडिया.कॉम में हम आपकी राय और सुझावों की कद्र करते हैं। आप अपनी राय, सुझाव और ख़बरें हमें samachar4media@exchange4media.com पर भेज सकते हैं या 09899147504/ 09911612929 पर संपर्क कर सकते हैं।
चलिये चलते हैं आज की वार्ता पर ----
“उसके उड़ाये कौवे कभी डाल पर ना बैठे” : कहावत......मेरे सामने में भी अक्सर ऐसे लोग आते रहते है जो अपना काम निकलवाने के लिए अक्सर बड़ी बड़ी डींगे हांकते है, मुझे बड़े बड़े सब्ज बाग तक दिखा देते है,
बस इतना जानूँ
तुझे माँ कहूँया कहूँ वसुन्धरा
अतल सिन्धु
कल- कल सरिता
भोर किरन
सत्याग्रहियों का उत्साह बढ़ता गया.......8 अगस्त जनरल स्मट्स के आमंत्रण पर गांधी जी प्रिटोरिया पहुंचे। बोथा, स्मट्स और प्रोग्रेसिव पार्टी के सदस्यों ने वैलिडेशन बिल में संशोधन का प्रस्ताव पेश किया जिसमें यह कहा गया था कि TARA स्वेच्छा से पंजीकरण कराने वालों और बच्चों पर लागू नहीं होगा। 21 अगस्त ट्रांसवाल की विधान सभा में स्वैच्छिक पंजीकरण वैलिडेशन बिल को हटा लिया गया
मेरे कदम......
न वो चिनार के बुत,न शाम के साए,
एक सहज सा रस्ता,
न पिआउ, न टेक |
संवाद.........
तुम जानती हो?कि मैं सब कुछ जानता हूं
सब कुछ?
लेकिन तुम्हारी आँखों ने तो
कभी कुछ नहीं कहा
पर भाव तो निरा निरक्षर है...
वर्णमाला के बिखरे-बिखरेबस थोड़े से ही अक्षर हैं
कुछ और मैं कहना चाहूँ
पर भाव तो निरा निरक्षर है
मलाला युसुफजई
राख का ढेर समझा तुमने
जहाँ दबे पड़े थे शोले !
लो ,उड़ी एक चिंगारी ,
मलाला यूसुफ़ज़ई !
आखिर इतना मजबूत सीलेंडर लीक हुआ कैसे ?
इसका ज़वाब तो भ्रष्टाचार की पटरानी के पास भी नहीं है .यह वाड्रा को आगे करके रंग भूमि से जो खेल खेल रहीं थीं यही इस नाटक की सूत्र धार थीं
.अपना मंद मति बालक तो इतने पासे एक साथ फैंक ही नहीं सकता .उसमें इतनी अकल ही नहीं है .
एक गीत -माँ ! नहीं हो तुम
माँ !नहीं होतुम कठिन है
मुश्किलों का हल |
अब बताओ
किसे लाऊँ
फूल ,गंगाजल |
" हमारे यहाँ सातवाँ कब आयेगा......
सातवाँ बहुत खूबसूरत है | महंगा तो अवश्य है ,परन्तु है, सब से हटकर | उसको लेने वाले भी अलग से दिखते हैं | मुझे लाइन में लग कर यह कहने में ही हीनता हो रही थी कि मेरा तो अभी तीसरा ही है | मैं शक्ल से दीन हीन तो लगता ही हूँ ,मेरे साथ मेरा सिलंडर भी शर्माते हुए जमीन में धंसा जा रहा था | सातवें और उससे अधिक वालों की लाइन एकदम अलग
अधूरी हसरतों का ताजमहल
जो तफ़सील से सुन सकेजो तफ़सील से कह सकूँ
वो बात , वो फ़लसफ़ा
एक इल्तिज़ा, एक चाहत
एक ख्वाहिश, एक जुनून
आजा तेरे कोहरे में धूप बन के खो जाऊँ... तेरे भेस तेरे ही रूप जैसी हो जाऊँ
मौसम ने फिर करवट ली है... सर्दी की ख़ुश्बू एक बार फिर फिज़ा में घुलती हुई सी महसूस होने लगी है... ठीक वैसे ही जैसे तुम्हारी ख़ुश्बू घुली हुई है मेरी साँसों में... कल ऑफिस से वापस आते वक़्त हवा में ठंडक थी... तुम्हें सोचते हुए जाने कब रास्ता कट गया तुम्हारे एहसास की गर्मी ने कितनी राहत पहुँचायी सारे रास्ते...
हिन्दी ब्लागिंग को समृद्ध करती महिलाएं : आकांक्षा यादव
वर्तमान साहित्य में नारी पर पर्याप्त मात्रा में लेखन कार्य हो रहा है, पर कई बार यह लेखन एकांगी होता है। यथार्थ के धरातल पर आज भी नारी-जीवन संघर्ष की दास्तान है। नारी बहुत कुछ कहना चाहती है पर मर्यादाएं उसे रोकती हैं। कई बार ये अनकही भावनाएं डायरी के पन्नों पर उतरती हैं या साहित्य-सृजन के रूप में
नदी हुई नव-यौवना, बूढ़ा पुल बेचैन - म. न. नरहरि
ठेस;मूरख मैं साबित हुआ, फक्कड़ मिला ख़िताब
घाटा सब मैंने भरा, ऐसे हुआ हिसाब
उम्मीद:
घिरते बादल शाम से, काले - लाल- सफ़ेद
शायद अब हो जायगा, आसमान में छेद
किताब और किनारे
वह एक किताब थी ,किताब में एक पन्ना था ,
पन्ने में हृदय को छू लेने वाले
भीगे भीगे से, बहुत कोमल,
बहुत अंतरंग, बहुत खूबसूरत से अहसास थे ।
कम उम्र में मानसिक तनाव के कारण बढ़ रहीं शारीरिक समस्याएँ
इस भागती दौड़ती दुनिया में तनाव बड़ता ही जा रहा है, कुछ शारीरिक समस्याएँ वर्षों पहले कुछ उम्र के बाद होती थीं याने कि लगभग ५० वर्ष के बाद होती थीं । अब वे शारीरिक समस्याएँ तेजी से कम उम्र की अवस्था में होने लगी हैं।
सब कहते हैं कि स्वस्थ्य जीवन जीना चाहिये, सबकी इच्छा स्वस्थ्य जीवन जीने की होती है, परंतु या तो समय पास ना होने की लाचारी होती है या फ़िर आराम तलबी के कारण पसीना नहीं बहाने देने की लाचारी होती है।
कुछ अनसुलझे से पहलु
रुक ... थोडा ठहर |ओ ... उड़ते हुए बादल |
सवालों में उलझे अनसुलझे ,
पहलुओं को सुलझा जा |
नहीं अचानक मरता कोई
नव अंकुर ने खोली पलकेंघटा मरण जिस घड़ी बीज का,
अंकुर भी तब लुप्त हुआ था
अस्तित्त्व में आया पौधा !
अशआर मे अश्क-ए-गम इजाद हुए हैं
क्योँ ना सजा लूँ ग़म ए हस्ती अब्तर ,जो अशआर मे अश्क-ए-गम इजाद हुए हैं !
रहबर ने गर्दिश-ए- खाकसार बना दिया,
जैसे तूफां के झोकों से दरख्त बर्बाद हुए है !
ब्रह्मचर्य का पालन ही मनुष्य को सात्विक बनाता है ..
पिछली पोस्ट पर विषय अति संवेदनशील होने के कारण डिस्क्लेमर तो लगा दिया था लेकिन विश्वास भी था कि हमारे परिपक्व ब्लॉगर मित्र हल्के फुल्के अंदाज़ में भी विषय की गंभीरता को समझेंगे। यह देखकर आश्चर्य मिश्रित प्रसन्नता हुई कि लगभग सभी महिला और पुरुष मित्रों ने इसे स्पोर्ट्समेन स्पिरिट में लिया।हालाँकि, अनअपेक्षित रूप से एक पुरुष मित्र ने किसी दूसरे मित्र के कंधे पर बन्दूक रखकर लगभग हमारे चरित्र पर ही ट्रिगर दबा दिया . पता नहीं जिंदगी को इतने रूखेपन से क्यों जीते हैं लोग .
" कुछ प्यार की बातें करें" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
ज़िन्दगी के खेल में, कुछ प्यार की बातें करें।प्यार का मौसम है, आओ प्यार की बातें करें।।
नेह की लेकर मथानी, सिन्धु का मन्थन करें,
छोड़ कर छल-छद्म, कुछ उपकार की बातें करें।
वादियों के पीछे ही कहीं आफताब खोया है..
उदास शाम की आँख हैं नम ओस की बूँदों से,चलती ये सर्द हवा कितनी खामोशी से।
कितने गुमसुदा और तन्हा हैं ये दरख्त खड़े,
हैं पूछते सवाल यूँ अपनी ही गुम परछाईं से ।।
आँसू और सुगंध ...
तुम से मिली उपेक्षा से चिढ़करबहुत सारी बुराइयाँ आ बैठीं मुझमे
और जितनी भी अच्छाइयाँ हैं मेरे अंदर
वह सब की सब तुम्हारी हैं
बात बात में टोकना तुम्हारा
मैं झुंझला जाता था भले प्रकट नहीं करता था
आज के लिए बस इतना ही .... अब आज्ञा दीजिये ... नमस्कार
22 टिप्पणियाँ:
बहुत ही प्रभावी सूत्र..
बहुत बढ़िया लिंक्स के साथ बढ़िया चर्चा
सुंदर व प्रभावी चर्चा श्रृंखला। इसमें मेरे ब्लाग की एक कड़ी जोड़ने हेतु आभार।
अमित भाई बहुत समय के बाद इतना धारदार व्यंग्य विनोद ,तंज़ पढने को मिला .मन सातवाँ सिलिंडर सा हो गया .
दिखा जो चाँद तो रात का दिल हुलसा है,
चंद पल का नहीं ताउम्र का जो मसला है।
किसी के गिरने की जो आयी है धीमी आहट,
ओस की बूदों पर चाँदनी का पैर फिसला है ।।
बहुत खूब लिखते हो ,अपनी उदासी शाम के सर मढ़ते हो .
अरे ! आज हम शीर्ष पर | संगीता जी बहुत बहुत आभार | सभी बहुत सुन्दर एवं प्रभावी रचनाएं पढने को मिली | आभार |
श्री वीरेंद्र साहब , बहुत बहुत शुक्रिया , आपकी हौसलाफजाई के लिए |
सुन्दर चर्चा.
कहानी सिर्फ महिलाओं के लिए ही क्यों ?
वाह! विशिष्ट सूत्रों के साथ गुंथी हुई वार्ता प्रभावित कर रहा है . आपका आभार..
डा0 दराल साहब ,
यह तो कहानी प्रतियोगिता का आयोजन करने वाले जाने .... मैंने तो मात्र सूचित किया है :)
वार्ता में मेरी पोस्ट का लिंक शामिल करने के लिए आभार!
बढिया लिंक्स
बहुत सुन्दर वार्ता सजाई है संगीता जी ! मेरी रचना को इसमें स्थान दिया आभारी हूँ !
बहुत ही सु्न्दर लिंक्स संजोये हैं।
vaah kya baat hai
खूबसूरत मोतियों से पिरोई खूबसूरत माला बेहद सराहनीय काम आपके इस खूबसूरत प्रयास के लिए मैं आपको बधाई देती हूँ और इस माला में मेरी रचना का मोती पिरोने का तहे दिल से शुक्रिया अदा करती हूँ बहुत २ शुक्रिया दीदी |
बहुत सुन्दर वार्ता दी....
कहानी लिखने की तैयारी है....
:-)
आभार
अनु
बहुत सुन्दर लिंक्स से सजी वार्ता के लिए बधाई संगीता जी कहानी सिर्फ महिलाएं ही क्यूँ लिखें कारण समझ नहीं आया |
आशा
सुन्दर लिंक्स से सजी वार्ता के लिए बधाई संगीता जी...
संगीता दी,
रचना को स्थान देने हेतु आभार!
डॉ. दराल ! जी हाँ यह कहानी प्रितियोगिता सिर्फ महिलाओं के लिए ही है.
प्रभावी वार्ता.
यहाँ आकर मन प्रसन्न हो गया |यह बिलकुल अलग ढंग और अलग रंग लिए है |संगीता जी आपका बहुत -बहुत आभार |
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