शनिवार, 13 अक्तूबर 2012

जीना इसी का नाम है ...ब्लॉग 4 वार्ता... संध्या शर्मा

संध्या शर्मा का नमस्कार......केंद्र सरकार ने गुरुवार को जनसत्याग्रहियों की मांगें मान ली हैं. इसके बाद जल, जमीन, जंगल सत्याग्रह समाप्ति की घोषणा कर दी. सरकार और जनसत्याग्रहियों के बीच कुल दस मांगों पर समझौता हुआ है. इसमें राष्ट्रीय भूमि सुधार नीति पर समझौता, फास्ट ट्रैक कोर्ट पर भी समझौता हुआ है और अब भूमिहीनों को जमीन मिलेगी. इस आंदोलन के खत्म होती ही सत्याग्रहियों का दिल्ली मार्च अब समाप्त हो गया है... आइये हम चलते हैं ब्लॉग वार्ता पर..........

साँसों के सफ़र का उत्सव - भारतीय संस्कृति में उत्सव का बड़ा महत्व है उत्सव शब्द सुनते ही जहन में एक रोमांच भर जाता है , मन ख़ुशी की कल्पना से झूम उठता है और ऐसा लगता है जैसे सारा ... .ज़िन्दगी के कुछ कतरे ये भी हैं... - *जब भी मौका मिलता है कहीं न कहीं कुछ न कुछ लिखता ही रहता हूँ, आजकल डायरी से ज्यादा फेसबुक सब कुछ सहेजने का काम करता है.. ऐसे ही कुछ कतरे जो अलग अलग मूड मे....रफ़्तार देनी है - गिरे -बिखरे पत्थरों को समेट,* *गंतव्य को राह देनी है -* *अँधेरा कहीं तिरोहित हो चले ,* *हर हाथों में मशाल देनी है -* *न टूट सके आघातों से ह्रदय ,* *पत्थरों की दिवार देनी है-* *भंवर सामने है,डूबने से पहले ,* *नाव को पतवार देनी है-* * ******* * **हम उजड़ने नहीं देंगे गुलशन ,* *गुलों को एतबार देंगे,* *अगर खून से रंग निखरता है ,* *तो दानवीरों की कतार देनी है-....

सबक ... - सुनो, कुचल दो उसकी जुबान ... और, दफ़्न कर दो ... उसको - और उसकी आवाज को कहीं भी ... जहां से ... गर उसकी रूह भी चिल्लाना चाहे तो चिल्लाते रह...और ज़िन्दगी रूकती नहीं !!! - क्यूँ नहीं होता वह सब- जो हम खुली आँखों सपनाते हैं क्यूँ होता है वह -जो हम नहीं चाहते हैं ... कठिन प्रश्न-पत्र की तरह होनी हमेशा आगे खड़ी होती है सोच ... आखिरी सफर - ये जानते हुए कि मैं छोड़ी जा चुकी हूँ फिर भी एक इंतज़ार है कि तुम ....खुद से अपनी गलती स्वीकार करो ताकि मैं लौट सकूँ जहाँ से मैं आई हूँ पर मैं जानती...

सोलह में शादी की आजादी - देखिये साहब हमारा मुल्क रंगरंगीला परजातंतर है। इस बात को नित साबित करती खबरें हमारी मीडिया पेश करती रहती है। हालिया मामला है खाप पंचायत द्वारा लड़कियों क...  ....जीना इसी का नाम है - जीना इसी का नाम है  अँधेरे कमरे में बंद आँखों से खाते हुए ठोकरें वे चल रहे हैं और इसे जीना कहते हैं... बाहर उजाला है सुंदर रास्ते हैं ...कहे अनकहे रिश्ते - कहे अनकहे रिश्ते ..................................... जिन्दगी में तमाम कहे रिश्ते साथ चले सिर्फ नाम के लिए पिता था एक मेरी जिन्दगी में भाई था सिर्फ नाम...

अजीब शख्स था अपना बना के छोड़ गया हरेक रिश्ता सवालों के साथ जोड़ गया अजीब शख्स था, अपना बना के छोड़ गया कुछ इस तरह से नज़ारों कि बात की उसने मैं खुद को छोड़ के उसके ही साथ दौड़ गया तिश्नगी तो न बुझायी गयी दुश्मन से मगर पकड़ के हाथ समंदर के पास छोड़ गया मेरी दो बूँद से ज्यादा कि नहीं कुव्वत थी सारे बादल मेरी आँखों में क्यों निचोड़ गया  ... इंतज़ार मेरे दिल - ए - जज़्बात मेरे प्यार ( अरविन्द कुमार जी ) के लिए हर लम्हा इंतजार करता है तेरा तू आये तो , वो ठहरे तुझसे कुछ पूछने को बेचैन हर पल ये घड़ियाँ रहती हैं मेरी ऑंखें दरवाज़े पर लगी हैं , कि आयेगा तू इक दिन हक से पूछेगा मुझसे तू ठीक तो है ? .. अस्थि कलश गंगा की लहरों पर तैरते अस्थि कलश को देख सहसा मन में विचार उमड़ पड़ते हैं ....... कैसे एक भरा - पूरा इन्सान अस्थियों में बदल कर एक छोटे से कलश में समा जाता है ........... ना जाने ये किस की अस्थियाँ होंगी .... शायद...!....
  
भारत या इंडिया...? सवाल बड़ा महत्वपूर्ण है। बरसों से लोगों के जेहन में यह सवाल कौंधता जरूर रहा होगा, लेकिन किसी ने अपनी जिज्ञासा को शांत करने की कोशिश नहीं की और अब जब एक सामाजिक कार्यकर्ता ने ऐसी कोशिश की है, सरकार के माथे पर पसीने निकल आए हैं। सरकार के पास किसी तरह की जानकारी न.. और मैं रिश्ते बोती रही मैं तो रिश्ते बोती रही पर ये कंटक कहाँ से उगते गए.. मेरे मन स्थिति से विपरीत ये मेरे फूल से अहसासों को छलनी करते रहे और मैं रिश्ते बोती रही स्नेह का खाद डाल प्यार से सिंचित करती रही रोज़ दुलारती सवाँरती पर ये गलत फहमी के फूल ... मेरा दिल है सनकी .मेरा दिल है पागल, मेरा दिल है सनकी, करता है हरदम ही, ये दिल अपने मन की, खतरा है दिल जैसे, दोस्ती है दुश्मन की, सूरत है तुझ जैसी, इस दिल में दुल्हन की, मेरा ये पागलपन, चाहत है धड़कन की, मज़बूरी में जीना, आदत है जीवन की,...

विक्रमार्क, चुनाव, वेताल - आ गए चुनाव वेताल को पेड़ पर लटका छोड़ चल दिया विक्रमार्क बैनर और पोस्टर टांगने समदर्शी होकर क्या फर्क पड़ता है अगर कहीं पंजा कमल को दबोचता है कही हाथी दोनों ..शिक्षा का अधिकार...........? - *हरेश कुमार* एक तरफ, सरकार गरीबों को सस्ती और सुलभ शिक्षा का वादा कर रही है और दूसरी तरफ, उसे शिक्षा से वंचित करने का हर स्तर पर प्रयास किया जा रहा है। ...वोट की ख़ातिर कुछ भी ? - देश के राजनैतिक नेताओं ने जिस तरह से आजकल बयान देने से पहले सोचना बंद ही कर दिया है उससे यही लगता है कि वोट पाने के लिए अब कुछ भी कह ...
चलते-चलते एक कार्टून 

   

अब इजाजत दीजिये नमस्कार .........

5 टिप्पणियाँ:

काफी लिंक्स मिले ....अच्छी वार्ता ।

रोचक सूत्र..पढ़ना इसी का नाम है।

बहुत बढ़िया वार्ता प्रस्तुति .आभार

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