शुक्रवार, 19 अक्तूबर 2012

ब्लॉग जगत की नव देवियाँ- चतुर्थी...ब्लॉग 4 वार्ता... ललित शर्मा

ललित शर्मा का नमस्कार ... नवदेवियों  में चतुर्थ देवी कुष्मांडा का तेज सूर्य रूप सा व्यापक है ..
सुरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कुष्मांडा शुभदास्तु मे। 

नवरात्रि में चौथे दिन देवी को कुष्मांडा के रूप में पूजा जाता है। अपनी मंद, हल्की हंसी के द्वारा अण्ड यानी ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण इस देवी को कुष्मांडा नाम से अभिहित किया गया है। जब सृष्टि नहीं थी, चारों तरफ अंधकार ही अंधकार था, तब इसी देवी ने अपने ईषत्‌ हास्य से ब्रह्मांड की रचना की थी। इसीलिए इसे सृष्टि की आदि स्वरूपा या आदि शक्ति कहा गया है। .


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ब्लॉग जगत की आज की देवी हैं शिखा वार्ष्णेय जी ... London, United Kingdom से ब्लॉगिंग कर रही शिखा जी मार्च 2009 से ब्लॉग जगत में हैं..जानकी वल्लभ शास्त्री, साहित्य सम्मान, साहित्य निकेतन परिकल्पना सम्मान 2010- यात्रा वृत्तान्त के लिए श्रेष्ठ लेखिका सम्मान से सम्मानित . अपने बारे में लिखते हुए कहती हैं-

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"अपने बारे में कुछ कहना कुछ लोगों के लिए बहुत आसान होता है, तो कुछ के लिए बहुत ही मुश्किल और मेरे जैसों के लिए तो नामुमकिन फिर भी अब यहाँ कुछ न कुछ तो लिखना ही पड़ेगा न [:P].तो सुनिए. by qualification एक journalist हूँ moscow state university से गोल्ड मैडल के साथ T V Journalism में मास्टर्स करने के बाद कुछ समय एक टीवी चैनल में न्यूज़ प्रोड्यूसर के तौर पर काम किया, हिंदी भाषा के साथ ही अंग्रेज़ी,और रूसी भाषा पर भी समान अधिकार है परन्तु खास लगाव अपनी मातृभाषा से ही है.खैर कुछ समय पत्रकारिता की और उसके बाद गृहस्थ जीवन में ऐसे रमे की सारी डिग्री और पत्रकारिता उसमें डुबा डालीं ,वो कहते हैं न की जो करो शिद्दत से करो [:D].पर लेखन के कीड़े इतनी जल्दी शांत थोड़े ही न होते हैं तो गाहे बगाहे काटते रहे .और हम उन्हें एक डायरी में बंद करते रहे.फिर पहचान हुई इन्टरनेट से. यहाँ कुछ गुणी जनों ने उकसाया तो हमारे सुप्त पड़े कीड़े फिर कुलबुलाने लगे और भगवान की दया से सराहे भी जाने लगे. और जी फिर हमने शुरू कर दी स्वतंत्र पत्रकारिता..तो अब फुर्सत की घड़ियों में लिखा हुआ कुछ,हिंदी पत्र- पत्रिकाओं में छप जाता है और इस ब्लॉग के जरिये आप सब के आशीर्वचन मिल जाते हैं.और इस तरह हमारे अंदर की पत्रकार आत्मा तृप्त हो जाती है......."

इनकी प्रथम पोस्ट:

कौन

क्यों घिर जाता है आदमी,
अनचाहे- अनजाने से घेरों में,
क्यों नही चाह कर भी निकल पता ,
इन झमेलों से ?
क्यों नही होता आगाज़ किसी अंजाम का
,क्यों हर अंजाम के लिए नहीं होता तैयार पहले से?
ख़ुद से ही शायद दूर होता है हर कोई यहाँ,
इसलिए आईने में ख़ुद को पहचानना चाहता है,
पर जो दिखाता है आईना वो तो सच नही,
तो क्या नक़ाब ही लगे होते हैं हर चेहरे पे?
यूँ तो हर कोई छेड़ देता है तरन्नुम ए ज़िंदगी,
पर सही राग बजा पाते हैं कितने लोग?
और कोंन पहचान पता है उसके स्वरों को?
पर दावा करते हैं जेसे रग -रग पहचानते हैं वे,
ये दावा भी एक मुश्किल सा हुनर है,
सीख लिया तो आसान सी हो जाती है ज़िंदगी,
जो ना सीख पाए तो आलम क्या हो?
शायद अपने और बस अपने में ही सिमट जाते हैं वे
ओर भी ना जाने कितने मुश्किल से सवाल हैं ज़हन में,
जिनका जबाब चाह भी ना ढूँड पाए हम,
शायद यूँ ही कभी मिल जाएँ अपने आप ही,
रहे सलामत तो पलके बिछाएँगे उस मोड़ पे...


अद्यतन पोस्ट: बदल रहा है हिंदी सिनेमा...

आजकल लगता है हिंदी सिनेमा का स्वर्णिम समय चल रहा है।या यह कहिये की करवट ले रहा है।फिर से ऋषिकेश मुखर्जी सरीखी फ़िल्में देखने को मिल रही हैं। एक के बाद एक अच्छी फिल्म्स आ रही हैं। और ऐसे में हम जैसों के लिए बड़ी मुश्किल हो जाती है क्योंकि फिल्म देखना वाकई आजकल एक अभियान हो गया है.अच्छी खासी चपत लग जाती है। तो इस बार यह चपत जम कर लगी। लगातार 3 फिल्मे आई और तीनो जबरदस्त। अनुराग बासु की बर्फी का स्वाद तो हम 2 हफ्ते पहले ही ले आये थे कुछ (बहुत) नक़ल की गई बातों और कुछ ओवर एक्टिंग को छोड़कर फिल्म अच्छी ही लगी थी। कम से कम क्लास के नाम पर फूहड़पन नहीं था,द्विअर्थी संवाद नहीं थे, हिंसक दृश्य नहीं थे। और कहानी भी अच्छी थी ।गाने कमाल के थे। "इत्ती सी हंसी, इत्ती सी ख़ुशी इत्ता सा टुकड़ा चाँद का " वाह .. बोल पर ही पैसे वसूल हो सकते हैं। रणवीर कपूर ऐसे रोल में जंचते हैं और प्रियंका चोपड़ा ने कमाल किया है। यानि नक़ल भी कायदे से की गई है तो देखने के बाद मलाल नहीं हुआ।फिर आई OMG  और दिल दिमाग एकदम ताज़ा हो गया। परेश रावल और अक्षय कुमार द्वारा निर्मित इस कॉमेडी फिल्म का निर्देशन उमेश शुक्ला ने किया है। ज़माने बाद कोई लॉजिकल फिल्म देखी. होने को कुछ काल्पनिक बातें इसमें भी हैं परन्तु 
चुस्त पटकथा और करारे संवाद इन सब को नजरअंदाज कर देने को विवश कर देते हैं। परेश रावल पूरी फिल्म को अकेले अपने कन्धों पर उठाये रहते हैं और आपका मन हर दृश्य पर तालियाँ बजाने को करता है।जिस रोचक ढंग से धर्म के नाम पर लूटपाट और अंधविश्वास की कलई इस फिल्म में खोली गई है ऐसा मैंने इससे पहले किसी फिल्म में नहीं देखा।फिल्म में परेश रावल के अलावा अक्षय कुमार मुख्य भूमिका में हैं और मिथुन चक्रवर्ती,ओम पुरी की भी छोटी छोटी भूमिकाएं है जिसमें वह फिट नजर आते हैं।प्रभु देवा और सोनाक्षी सिन्हा पर एक गीत भी फिल्माया गया है।कुल मिलाकर हास्य व्यंग्य के तड़के  साथ बढ़िया फिल्म है।

और फिर आई इंग्लिश विन्ग्लिश और सबसे आगे निकल गई। एकदम सुलझा हुआ पर बेहद जरुरी विषय.बेहद सरलता से पानी सा बहता हुआ निर्देशन और साथ बैठकर बात करती सी सहज अदाकारी।एक ऐसी फिल्म जिसे हर किसी को पूरे परिवार के साथ बैठकर देखना चाहिए। एक फिल्म जिसके किसी न किसी किरदार से आप अपने आपको जरुर सम्बंधित पायेंगे। किसी को अपनी माँ याद आती है किसी को बहन की और कोई खुद अपने आपको ही उसमें पाता है। संवाद बेहद सरल और आम रोजमर्रा की जिन्दगी से जुड़े होते हुए भी जैसे सीधे मन की अंदरूनी सतह तक जाते हैं और आपकी आँखें गीली कर जाते हैं। गौरी शिंदे और "पा "और "चीनी कम" जैसी लीक से हट कर फिल्मों को बनाने वाले आर बाल्की की यह फिल्म एक सेकेण्ड को भी पलक झपकाने नहीं देती। दृश्य दर दृश्य इस तरह से चलते हैं कि दर्शक पॉप कॉर्न खाना तक भूल जाएँ। श्रीदेवी ने इस फिल्म में 14 साल बाद फिर से पदार्पण किया है और मुख्य भूमिका शानदार तरीके से निभाई है.सुना है फिल्म में श्रीदेवी का चरित्र गौरी शिंदे की माँ से प्रभावित है।हालाँकि यह भी सच है कि हर टीनएजर बच्चे की माँ को उसमे अपना अक्स दिखाई देगा।
फिल्म में छोटे छोटे कई पात्र हैं और सब अपनी अलग छाप छोड़ते हैं। एक छोटी सी भूमिका अमिताभ बच्चन ने भी निभाई है जो इतनी जानदार है कि फिल्म को एक खुबसूरत रंग और दे देती है।
फिल्म का सबसे सशक्त पहलू मुझे उसके संवाद लगे।बेहद सहजता से कहे गए छोटे छोटे सरल संवाद जैसे पूरी कहानी कह जाते हैं।फिल्म की लम्बाई कम है और गति सुन्दर अत: अगर यहाँ मैंने संवादों या कहानी का जिक्र कर दिया तो आपको फिल्म देखने की जरुरत नहीं पड़ेगी। इसलिए इतना ही कहती हूँ  कि अगर आपने यह फिल्म नहीं देखी है तो अगली फुर्सत में ही परिवार के साथ देख आइये।
आइटम सौंग , घटिया दृश्य , फूहड़ संवाद और मारधाड़- खून खराबे वाली फिल्मों के इस दौर में ऐसी फिल्मो का आना वास्तव में एक सकारात्मक ऊर्जा और सुकून दे जाता है.और इनकी सफलता उन निर्माता निर्देशकों के लिए एक सबक है, जिन्हें लगता है कि बिना मसालों के या हॉलीवुड टाइप के लटको झटको के, भारत में फिल्म नहीं चलती। उन्हें अब समझ लेना चाहिए भारत की जनता बेबकूफ नहीं है, उसे अच्छी चीज की कदर आज भी है।
.........

कल मिलिए ब्लॉग जगत की एक  अन्य देवी से, तब तक के लिए राम-राम ......

11 टिप्पणियाँ:

वाह, राह अभी और लम्बी चलती रहे।

बहुत बढिया परिचय रहा शिखा का …………आभार

आदि स्वरूपा, आदि शक्ति को प्रणाम... शिखाजी का परिचय बहुत अच्छा लगा, "श"अक्षर से नाम शुरू होने वाली देवियाँ भी खास प्रतिभावान होती हैं. शुभकामनायें...

नवरात्रि की शुभकामनाओं के बीच शिखा जी का परिचय एवं प्रस्‍तुति ... बहुत बढिया

dhany hai deviyan . kushmanda devi ko pranam.

अरे आज शिखा देवी....
:-)

बहुत सुन्दर...
अनु

chalo shikha devi se ashish len ya den. bahut achchha parichay raha. chunav bahut hi sateek hai.

शिखा जी की रचनाएं दिल के बहुत करीब लगती हैं ! उनके आलेख भी सामयिक व विचारोत्तेजक होते हैं ! उनका परिचय बहुत अच्छा लगा ! आपका धन्यवाद !

'विद्या समस्तास् तब देवि भेदः स्त्रियः समस्ता सकल जगत्सु,,त्वयैकया पूरितमम्बयैतत्...'
इस शृंखला मैं नवदेवियों के रूप में इन नव-रूपों और उनकी कला के प्रस्तुतीकरण से ऐसा लगा कि उपरोक्त कथ्य सम्मुख उपस्थित हो गया हो !
इनका का ब्लाग-मंच पर स्वागत और प्रस्तुतकर्ता को बधाई !

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