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4:46 am
संध्या शर्मा
संध्या शर्मा का नमस्कार ...राजनीति साधू-संतों का काम नहीं है, जो राजनीति में जाता है उसकी आसक्ति राजभोग भोगने के प्रति हो जाती है. सत्ता के गलियारों में भव्यता होती है कंगाली नहीं. राजा और रंक के बीच पहले भी दूरी रही है और आज भी है, वे नदी के ऐसे दो समानान्तर किनारे हैं जो साथ होकर भी कभी नहीं मिलते...आइये अब चलते हैं आज की वार्ता पर ...
बच्चों के बापू... देश के प्यारे गाँधी बाबा,
बच्चों के बापू कहलाए।
सत्य-अहिंसा की नीति से,
देश को आजादी दिलवाए।
सूरज से चमकें बापू जी,
कभी न हिम्मत हारे थे।
अंग्रेजों को मार भगाया,
पीछे-पीछे सारे थे। बापू का चश्मा बापू...
हे बापू !
जम रही है धूल
तुम्हारे चश्में पर
छोड गए थे
तुम इसे
इस धरा पर
हमने रखा था
थाती समझकर
प्रेरित करता था ... शतश: प्रणाम ओ आज़ादी के दीवानों, ओ स्वातंत्र्य युद्ध के वीरों ,
ओ रणचण्डी के खप्पर को भरने वाले रणवीरों !
देकर तन मन धन की आहुति जीवन यज्ञ रचाने वालों,
अपने दृढ़ निश्चय के दीपक , जला पंथ दिखलाने वालों !
बने नींव के पत्थर पल क्षण , अपनी भेंट चढ़ाने वालों ,
विजय दुर्ग की प्राचीरों को , दृढ़ करने वाले मतवालों ...अहिंसा की सार्वभौम शक्ति -
आज वैश्विक अहिंसा दिवस है, भारत के लिए यह गौरव का प्रसंग है कि विश्व को
अहिंसा की इस अवधारणा का अर्पण किया। 15 जून 2007 को संयुक्त राष्ट्र संघ ने
राष्ट्रपि...
अतीत के गलियारे....मुझे प्रसन्नता है किआज मैं अपनी ६०१ वी रचना आप सब के साथ सांझा कर रही हूँ |
खामोशी तुम्हारी
कह जाती बहुत कुछ
नम होती आँखें जतातीं कुछ कुछ
अनायास बंद होती आँखें
ले जातीं अतीत के गलियारे में
वर्षा अश्रु जल की गर्द हटाती
धुंधली यादों की तस्वीरों से
पन्ने खुलते डायरी के
वे दिन भी क्या थे ?
......बंधक पिंजरे के पंछी
तू कितना बेबस लगता है..
जाने कैसे तू ,
यूँ घुट घुट के जीता है ??
कहाँ वो नीला आकाश
वो अनंत विस्तार...
कहाँ ये नन्हा सा पिंजरा,
बेशक सोने का बना है..
जहाँ तू अपने पंख तक नहीं पसार सकता.. तकरारे वफा तकरारे वफा वो कहता है , " मुझमे अब वो पहले जैसी कोई बात ही
नहीं | मैंने कहा , " तेरे दिल में मेरे लिए अब वो , ज़ज्बात ही नहीं | वो
कहता है , " मेरी कशिश में पहले जैसी खलिश ही नहीं | मैंने कहा , " तेरी चाहत
में अब वो बेइंतहा तड़प ही नहीं...
गिद्धों का तांडव *आह कोई ऐसा भाव नहीं जो दुख मेरा सहलाए *
*दुविधा बाँट मेरे मन की जो सुकून थोड़ा दे जाए.*
*वर्णों की माला के आंखर शब्दों में ना ढलने पायें *
*मन - संताप जो हर लें मेरा, पीड़ा कुछ तो कम हो जाए.*
*चार लाल हैं एक मात के, जिन्हें पेट काट कभी पाला *ये दोगलापन क्यों ?
-
हिन्दू बेटियों को जबरदस्ती लव जेहाद का शिकार बनाकर उनका धर्म परिवर्तन करके
उन्हें मुसलमान बना देते हैं , जबकि हिना और बिलावल के मध्य प्रेम होने पर
उन्हें ...रात भर जलता रहा है चाँद Raat bhar jalta raha hai Chand
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रात भर जलता रहा है चाँद, फिर भी,
उधार की रोशनी फीकी रही, फीकी रही।
चाहे उम्र भर बढती रही हो उम्र, फिर भी,
पल पल जिंदगी घटती रही, घटती रही।
पेट भर खा...
(लघुकथा) उड़ान
-
एक दिन, कभी न खुलने वाली एक खिड़की के बाहर पक्षियों का एक जोड़ा आ कर
बैठा. तिनका तिनका ला कर एक घोंसला बनाया उन्होंने, फिर उसमें दो अंडे
दिए. दो....है ना मजेदार चुटकला
-
इस दुनियां में भी । और second world के नाम से जानी जाने वाली इस इंटरनेट
दुनियां में भी । अक्सर लोगों के धार्मिक पागलपन को देखता हूँ । काश ! यह
धार्मिक चिंतन ..गाँधी जी का टूटा चश्मा जब चपरासी रामलाल जाले हटाता, धूल झाड़ता कबाड़घर के पिछले हिस्से में गाँधी जी
की मूर्ति को खोजता हुआ पहुँचा तो उड़ती धूल के मारे गाँधी जी की मूर्ति को
जोरो की छींक आ गई. अब छड़ी सँभाले कि चश्मा या इस बुढ़ापे में खुद को...
टिमटिमाता हुआ ... एक दिया .. जीवन की काल कोठरी में ....
मन की काल कोठारी में ....
कुछ प्रकाश तो था ...
क्षीर्ण होती आशाओं में ....
फिर भी विकीर्ण होता हुआ ..
कुछ उजास तो था ...!!
उठता है सतत ...
जो धुंआ इस लौ से ..
स्वयं की भीती से-
स्वयं ही लड़ता....
प्रज्ज्वल ..कांतिमय .. बडा जिद्दी है कमबख्त इसे समझाया नही जाता .बडा जिद्दी है कमबख्त इसे समझाया नही जाता
उस संगदील को यारों हमसे मगर भुलाया नही जाता
फुर्सत ही नही मैं लाख पुकारू,बुलाउं या मनाउं उसको
उस खुशनसीब का मगर हमें बुलाना जाया नही जाता
सब तो ले गया वो मुझसे वादे,वफा..न जाने क्यों ... ?अपनी ही कुछ बंदिश में न जाने क्यों
सीमित -दमित से ही रहते हैं कुछ लोग
इक छोटा -सा अपना ही आकाश लिए
क्यों भ्रमित-चकित रहते हैं कुछ लोग
चाँद -सूरज भी पल दो पल के लिए ही
रोज तो आते हैं पर यूँ ही चले जाते हैं
ख़ामोश -सी स्याह रात को ओढ़े लोग
अपनी जिक्र-फिक्र में ही भटक जाते हैं
उफ़....
क्या करता.... ??? तेरी बातों पे ऐतबार न करता,तो क्या करता ?
मरना था कई बार,जो इक बार मरता तो क्या मरता ?
कहकर ख़ुदा तुझको ख़ुदा से दुश्मनी ली,
ग़र यह नही करता,तो क्या करता ?
मिटाकर खुद को खुद से ही ढूँढे हैं निशाँ तेरे,
ग़र सज़दा नही करता,तो क्या करता ?... मुहब्बत की कारीगरी देखी तबियत अपनी - जब हरी देखी,
मुहब्बत की - - - कारीगरी देखी,
उठा चाहत का -- जब पर्दा, मैंने,
नमी आँखों में थी --- भरी देखी,
भुला दूँ तुझको -- याद या रक्खूं,
दर्द उलझन --- हालत बुरी देखी,
खफा है धड़कन - सांस अटकी है,
गले में हलचल ---- खुरदरी देखी,
सुर्ख रातें हैं ------ दिन बुझा सा है,
सुहानी शम्मा भी ------ मरी देखी ... टूटता सितारा देख रही हूँ मैं आकाश..
अविराम .
ढूंढ रही है नज़र ..
कि कोई तो सितारा टूटे
जिससे इतने सालों बाद
खुद से भी छुपाई
दिल की वो मुराद
मैं..मांग सकूँ.
वो जो कहीं बैठा है रूठ के
न जाने क्यूँ इतने बरसों से
वो मान जाए ,
लौट आये;
यह ख्वाहिश
उठा रही है सर
कहीं भीतर .
इसीलिए ,ताकती हूँ आसमान
बदलने की चाह में है
उसकी नाराजगी का फरमान .
...
चलते - चलते कार्टून :
कार्टून दो अक्टूबर का ...
.
लेते हैं एक ब्रेक अगली वार्ता तक के लिए नमस्कार ..........
11 टिप्पणियाँ:
संध्या जी, बड़े जतन से जुटाए हैं आपने इतने उपयोगी लिंक्स।
आभार, इन्हें पढवाने का।
गांधी एवं शास्त्री जयंती की हार्दिक शुभकामनाएं।
............
एफडीआई के दौर में खेती किसानी की परवाह।
बहुत आभार संध्या जी ...बहुत सुंदर और सार्थक चर्चा ...
सुबह का सूरज खिल गया आज अपनी पोस्ट यहाँ देख कर ....!!
बहुत रोचक वार्ता
बहुत सुन्दर वार्ता संध्या जी....
हमारी रचना को शामिल करने का शुक्रिया.
सस्नेह
अनु
बढ़िया वार्ता.
बहुत बढ़िया वार्ता संध्या जी ! 'उन्मना' से मेरी माँ की रचना 'शतश: प्रणाम' के चयन के लिये आपका धन्यवाद एवं आभार !
बहुत बढ़िया वार्ता ... सभी लिंक्स अच्छे चयन किए हैं ...
अच्छे लिंक्स
बढिया वार्ता
सभी लिंक्स अच्छे..............
रोचक और पठनीय ब्लॉग वार्ता..
BAHOOT ACCHI VARTA KE LIYE BADHAI..
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