संध्या शर्मा का नमस्कार.....यादें...बड़े काम की चीज! *कुछ यादें तो होती है...बड़ी रंगीन... *** *इन्हें संजोकर रखना है बड़ा कठीन...*** *दिल के किसी कोने में दबा कर रखना...कभी कभी फुर्सत में इन्हें दिन का उजाला दिखलाना...या रात के अँधेरे में चाँद की रोशनी दिखलाना....कही दूर ना चली जाए इसलिए...सहलाना..बहलाना..थपथपाना.. प्रस्तुत है आज की वार्ता....
डल झील- जैसे महबूब को जी भर के देखना - 9 नवंबर सूरज की हथेली पर मानो किसी ने बर्फ का ढेला रख दिया हो. ठंडी सी गर्माहट थी उसके आने में. हमारे यहां आने के मकसद को बस अंतिम अंजाम मिलना बाकी था. ...उन्नति और सभ्यता... - अपनी स्कॉटलैंड यात्रा के दौरान एडिनबरा के एक महल को दिखाते हुए वहां की एक गाइड ने हमें बताया कि उस समय मल विसर्जन की वहां क्या व्यवस्था थी। महल में रहने. जब इश्क ही मेरा मज़हब बना ……… - आह! आज ना जाने क्या हुआ धडकनों ने आज इक राग गाया है बस इश्क इश्क इश्क ही फ़रमाया है जो जुनून बन मेरे दिलो दिमाग पर छाया है ये कोई असबाब या साया नहीं बस इश्क ...
डल झील- जैसे महबूब को जी भर के देखना - 9 नवंबर सूरज की हथेली पर मानो किसी ने बर्फ का ढेला रख दिया हो. ठंडी सी गर्माहट थी उसके आने में. हमारे यहां आने के मकसद को बस अंतिम अंजाम मिलना बाकी था. ...उन्नति और सभ्यता... - अपनी स्कॉटलैंड यात्रा के दौरान एडिनबरा के एक महल को दिखाते हुए वहां की एक गाइड ने हमें बताया कि उस समय मल विसर्जन की वहां क्या व्यवस्था थी। महल में रहने. जब इश्क ही मेरा मज़हब बना ……… - आह! आज ना जाने क्या हुआ धडकनों ने आज इक राग गाया है बस इश्क इश्क इश्क ही फ़रमाया है जो जुनून बन मेरे दिलो दिमाग पर छाया है ये कोई असबाब या साया नहीं बस इश्क ...
पाणिग्रहण संस्कार से तनिक आगे
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परसों, आठ दिसम्बर को मेरी पोती, नीरजा-गोर्की की बड़ी बेटी अभिसार का
पाणिग्रहण संस्कार सम्पन्न हुआ। गोर्की मेरा छोटा भतीजा है और नीरजा उसकी
उत्तमार्ध्द। ..आशिक ...
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लो, उन्ने.. फिर से उन्हें धो डाला
उफ़ ! क्या गजब की सफेदी है ??
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चवन्नी छापों को, सिक्कों के तमगे
क्या.... यही हिन्दी का साहित्य है ?
..ये तन्हाई मुझे उस भीड़ तक लाती है.. !!
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काटजू के कडवे पर सच्चे बोल
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अपने तेजतर्रार वक्तव्य और विवादास्पद विषयों पर बेखौफ बोलने के लिए जाने
जाने वाले भारतीय प्रेस परिषद के अध्यक्ष मार्कण्डेय काटजू के ताजा बयान पर
बवाल सा ...
जस्टिस काटजू का वर्गीकरण - देखिये तो आप किस श्रेणी में हैं
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जस्टिस काटजू का कहना है की भारत की जनता में 90% ईडियट हैं , लेकिन उन्होंने
यह नहीं स्पष्ट किया की वे कौन से लोग हैं ! अतः पाठकों की सुविधा के लिए कुछ ....अपनी बीबी के नाम से दे दे सेठ...दो दिन से कुछ मुर्गा...अंगूरी नही चखी है सेठ...
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यह सर्व विदित है कि ताऊ ने बहुत सारे काम धंधे किये पर किसी भी काम में
सफ़लता उससे इतनी ही दूरी रखती थी जितनी रामप्यारे के सर से सींग. ताऊ ने
चोरी, डकैती...
शादी की सालगिरह : जो कहूंगा सच कहूंगा
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खुशी का मौका हो और आप वहां मौंजूद ना हों, मुझे लगता है आप सबको इसका अहसास
होगा। कल यानि नौ दिसंबर को मेरे भांजे की शादी थी, बढिया रही। लेकिन मैं वहां ...
रूप संवारा नहीं,,,
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*रूप संवारा नहीं,*
कुहासों ने घूंघट उतारा नही है,
अभी मेरे प्रियतम का इशारा नहीं है!
किरणों का रथ लगता थम गया,
सूरज ने अभी पूरब निहारा नही है! ... नींद ने टुकड़ों-टुकड़ों मे आना शुरू कर दिया
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नींद ने टुकड़ों-टुकड़ों मे आना शुरू कर दिया
जब से आपने ख्वाबो मे कदम धर दिया
अब हालात संभाले नहीं संभलते
हमने आपका नाम छुपाना शुरू कर दिया
हाल-ए-दिल बयां ...
हो गई बोहनी!
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*मझली का परिवार:** *
बाप पेंटर, बड़का डरइवर
[पियक्कड़]
महतारी धोवे चुक्कड़।
छोटका बउका,
बड़की छुट्टा,
छोटकी खेले गुट्टा।
*मझली:** *
चौदह की उमर।...
अफ़ज़ल और संसद पर हमले की अजीबो-ग़रीब दास्तान – 2
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( कसाब की फांसी के बाद, अफ़ज़ल को भी जल्दी ही फांसी की मांग उठाए जाने की
पृष्ठभूमि में यह आलेख पढ़ने को मिला. 13 दिसम्बर, संसद पर हमले की तारीख़ की
आमद के ...जिन्हें नाज़ है हिंद पर वो यहां हैं..
दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है भारत...
लोकतंत्र का सबसे बड़ा मंदिर है संसद...
लेकिन देश की शान इसी संसद में एफडीआई जैसे गंभीर मुद्दे पर बहस के दौरान ये...
चिंताएँ कितनी उर्वरा होती है वह ज़मीन -
जहाँ बोते हैं हम बीज
चिंताओंके ---
बेटे की बेरोज़गारी -
घर की दाल रोटी-
बेटी की शादी -
रिश्तों में अविश्वास-
किस्म किस्म के बीज.....
देखते ही देखते
एक जंगल खड़ा हो जाता है -
एक घना जंगल-
चिंताओंका -
एक चलता फिरता जंगल-....
हम सब उस बोझ को ढोकर-
घूमते रहते हैं -
दिनों ..महीनों..सालों ... कहाँ ढूँढूँ तुझे ? कहाँ-कहाँ ढूँढूँ तुझे
कितने जतन करूँ,
किस रूप को ध्यान में धरूँ,
किस नाम से पुकारूँ,
मंदिर, मस्जिद,
गिरिजा, गुरुद्वारा
किस घर की कुण्डी खटखटाऊँ ?
किस पंडित, किस मौलवी,
किस गुरु के चरणों में
शीश झुकाऊँ
बता मेरे मौला
मैं कहाँ तुझे पाऊँ ?..शीत डाले ठंडी बोरियाँ *"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक - 26 के लिए लिखी रचना "हेमंत ऋतु" पर आधारित *
देख माथे की शिकन औ त्योरियाँ,
शीत डाले ढेर ठंडी बोरियाँ,
गोद में अपनी लिटाकर सूर्य को,
गुनगुनाती है सुनाती लोरियाँ,
धुंध को फैला रही है राह में,
बांधती है मुश्किलों की डोरियाँ,
बादलों के बाद रखती आसमां,
धूप की ऐसे करे है चोरियाँ,
सुरसुरी बहती पवन झकझोर दे. ...
11 टिप्पणियाँ:
बहुत बढ़िया वार्ता संध्या जी...
सभी लिंक्स शानदार...
शुक्रिया
अनु
एक बार पुन: आभार। आपका कृपा-प्रसाद मुझे विगलित कर रहा है। धन्यवाद।
बढ़िया वार्ता .... बहुत से लिंक्स नए मिले ।
बहुत सुन्दर वार्ता संध्या जी ! मेरी रचना को इसमें स्थान देने के लिए आपका ह्रदय से धन्यवाद एवं आभार !
बहुत ही सुन्दर सूत्र
बहुत सुंदर वार्ता ..
अच्छे अच्छे लिंक्स मिले !!
बहुत सुन्दर लिंक्स संजोये हैं ………बढिया वार्ता
बढिया वार्ता
मुझे शामिल करने के लिए आभार
बढ़िया लिंक्स , बहुत बढ़िया वार्ता.
अच्छी लिंक्स से सजी वार्ता |
आशा
आदरणीय संध्या दी बहुत ही बढ़िया वार्ता है मेरी रचना को स्थान दिया अनेक-2 धन्यवाद
अरुन शर्मा
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