सोमवार, 28 फ़रवरी 2011

गब्‍बर का चरित्र चित्रण .... अजी सुनते हो .. ब्‍लॉग4वार्ता .. संगीता पुरी

आप सबों को संगीता पुरी का नमस्‍कार , भौतिकी विशेषज्ञ सर सीवी रमन ने 28 फरवरी 1928 को ही  प्रकाश के प्रकीर्णन और रमन प्रभाव की खोज घोषणा की थी , जिसके लिए उन्‍हें 1939 में नोबेल पुरस्‍कार दिया गया था। वे एक ऐसे महान आविष्कारक थे, जो न सिर्फ लाखों भारतीयों के लिए बल्कि दुनियाभर के लोगों के लिए प्रेरणा स्रोत हैं। 'रमन प्रभाव' की खोज भारतीय भौतिक शास्त्री सर सीवी रमन द्वारा दुनिया को दिया गया विशिष्ट उपहार है। समाज में जागरूकता लाने और वैज्ञानिक सोच पैदा करने के उद्देश्य से राष्ट्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के तत्वावधान में हर साल 28 फरवरी को भारत में राष्ट्रीय विज्ञान दिवस मनाया जाता है। 28 फरवरी सन् 1928 को ने अपनी खोज की घोषणा की थी। इसी खोज के लिये उन्हे 1939 में नोबल पुरस्कार दिया गया था। हमलोगों को भी समाज से हर प्रकार की भ्रांतियों को दूर करने और वैज्ञानिक सिद्धांतों के प्रचार प्रसार के लिए कृतसंकल्‍प होना चाहिए। अब चलते हैं कुछ नए चिट्ठों की ण्‍लकियों के साथ आज की ब्‍लॉग4वार्ता पर ...

हीरेन बारभाया जी के ब्‍लॉग में पढिए ....गब्‍बर का चरित्र चित्रण ...
गब्बर सिंह का चरित्र चित्रण


1. सादा जीवनउच्च विचार: उसके जीने का ढंग बड़ा सरल था. पुराने और मैले कपड़े, बढ़ी हुई दाढ़ी, महीनों से जंग खाते दांत और पहाड़ों पर खानाबदोश जीवन. जैसे मध्यकालीन भारत का फकीर हो. जीवन में अपने लक्ष्य की ओर इतना समर्पित कि ऐशो-आराम और विलासिता के लिए एक पल की भी फुर्सत नहीं. और विचारों में उत्कृष्टता के क्या कहने! 'जो डर गया, सो मर गया' जैसे संवादों से उसने जीवन की क्षणभंगुरता पर प्रकाश डाला था.
२. दयालु प्रवृत्ति: ठाकुर ने उसे अपने हाथों से पकड़ा था. इसलिए उसने ठाकुर के सिर्फ हाथों को सज़ा दी. अगर वो चाहता तो गर्दन भी काट सकता था. पर उसके ममतापूर्ण और करुणामय ह्रदय ने उसे ऐसा करने से रोक दिया.

रामायण में भगवान श्रीराम के ऐसे ही सोलह गुण बताए गए हैं, जो आज भी लीडरशीप के अहम सूत्र हैं। जानते इन गुणों को आज के संदर्भ में


गुणवान (ज्ञानी व हुनरमंद)



- वीर्यवान (स्वस्थ्य, संयमी और हष्ट-पुष्ट)

- धर्मज्ञ (धर्म के साथ प्रेम, सेवा और मदद करने वाला)

- कृतज्ञ (विनम्रता और अपनत्व से भरा)

- सत्य (सच बोलने वाला, ईमानदार)

- दृढ़प्रतिज्ञ (मजबूत हौंसले वाला)

- सदाचारी (अच्छा व्यवहार, विचार)

सर्द राहो पे अरसे से चलते हुए,


जब मेरे विश्वास की ठिठुरन बढ़ी,
तभी होसलो की कोहरायी धूप ने
मुंडेर पे होले से दस्तक दी |
धूप देख, फिर से रूह  में 
अरमानो की बदली छाई,
शितिलता की चट्टानें तोड़,
हिम्मत की कुछ लहरें आई ।

अक्सर ये शब्द हमने अपने घरो में सुना है वे जिनकी शादी हो चुकी है या जो विवाह की दहलीज पर खड़े है ऐसे प्यार भरे लुभावने शब्द मन को गुदगुदाते है! जैसे की अजी सुनते हो,मुन्ने के पापा,जरा सुनियेगा इसी तरह पति का पत्नी के लिए संबोधन अरी ओ भागवान,करमा वालिये ये प्यार की मिठास लिए शब्द पति पत्नी के दैनिक दिनचर्या में हुई थकावट को गायब कर देते है!परन्तु वर्तमान परिवेश में आधुनिकता का समावेश लिए परिवारों में पति पत्निया इन शब्दों को भूलते जा रहे है! अब पति तो पति, पत्निया भी अपने पति को उसके नाम से संबोधित करती है! रिश्ते की बनावट और बुनावट किस पर निर्भर करती है!

प्रख्यात कथाकार श्री गिरिराज किशोर ने बांदा में देवेन्द्र नाथ खरे स्मृति व्याख्यान में बोलते हुए कहा अमेरिका वैश्वीकरण का जनक है. इसके मूल में एक देश का दूसरे देश के प्रति लालच है.अमेरिका सोचता है हम आप को अमुक वस्तु बेचते है तो आप हमें क्या देंगे, अमेरिका के पास इतने आग्नेय अस्त्र -शस्त्र है की वह दुनिया को दस बार नस्ट कर सकता है.हम लोग खेती पर निर्भर है अमेरिका यंत्रीकृत है.अमेरिका के लालच के कई देश शिकार है. हम अपने बच्चो को बड़े गर्व एंव खुश होकर अमेरिका भेज रहे है.हम अमेरिका की चाल को नहीं समझ पाते है.विश्व की आर्थिक मंदी का जनक अमेरिका ही है.मंदी के दौरान कुछ भारतीय परिवारों ने अमेरिका में त्रासदी झेली है वह अकल्पनीय है.
भारत में बुध हुए,गाँधी हुए,जैन हुए हम भारतीय अहिंसा को जितनी गहरे से समझ सकते है अन्य कोई नहीं. 




‘‘भारतभूमि विभिन्न धर्मों के लोगों को सहोदर के रूप में मानती है और उसी रूप में उनका लालन-पालन करती है‘‘
  आचार्य चाणक्य का यह वाक्य नैतिकता और विष्वबंधुत्वता की दृश्टि से बिल्कुल सत्य है। परंतु राजसत्ता को बचाने की चुनौती और उसके फलस्वरूप की जाने वाली सांप्रदायिक राजनीति विभिन्न मतों एवं धर्मों के बीच भेद का और राश्ट्र के विखण्डन का कारण बनती है। सांप्रदायिकता की इस राजनीति का इतिहास पुराना हैजिस पर दृश्टि डालना हमारे लिए आवष्यक है।
सांप्रदायिक राजनीति का प्रारंभ-
दो ध्रुवों को साधने की कला को ही सांप्रदायिक राजनीति भी कहा जा सकता है। चाणक्य के समय में जब भारत में नंद वंष का षासन चल रहा थातभी से इस प्रकार की राजनीति का प्रारंभ माना जाता है। 




डलहोजी की यात्रा की आज अंतिम किस्त हे --कल ही हम आए थे --वेसे तो हमारा २दिन का रूम बुक था पर हमारे पास समय थोडा हे --कल हमे वापस बाम्बे की गाडी पकडनी हे ---सुबह देर तक सोते रहे --ठंड बहुत थी --पर धर्मशाला में पर्याप्त रजाइयां थी |इसलिए कोई परेशानी नही हुई--चाय सुबह ही धर्मशाला के सेवक दे गए और नाश्ते के लिए बोल गए ---यहाँ बड़ी ठंडी हे ---हम सब रेडी होकर पहले माता के मन्दिर गए --दर्शन करके जेसे ही बाहर आए --वाह ! क्या समा था --देखकर तबियत खुश हो गई --मोसम एकदम साफ था --दूर तक धुप फेली हुई थी शिव जी की प्रतिमा धुप में खिल रही थी--दूर पहाड़ो पर बर्फ दिखाई दे रही थी --धुप में सोने की तरह चमक रही थी



गंगा के मैले होने की चर्चा गाहे-बगाहे होती रहती है। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद केंद्र की सत्ता में आए राजीव गांधी ने गंगा ऐक्शन प्लान शुरू किया था। उसका मकसद तो गंगा की सफाई थालेकिन कहा जाता है कि वह ऐक्शन प्लान नेता और इंजीनियरों का प्लान होकर रह गया। इसमें नौ सौ करोड़ रुपये बरबाद हो गए। गंगा की सफाई को लेकर एक बार फिर चर्चा जोरों पर है। दूरदर्शन ने भी विगत 26 दिसंबर को अपने स्टूडियों में गंगा पंचायत’ लगाई थी।
अकसर गंगा पर बातचीत का मतलब यही समझा जाता है कि यह हिंदुओं की धार्मिकता का मामला है। सामान्य-सी जानकारी दी जाती है कि नागर सभ्यता नदियों के किनारे बसी है। यदि गंगा क्रमश: मैली होती गईतो इसकी वजह नगर सभ्यता का पुराने अर्थों में विकराल होते जाना है। आंकड़े भी निकाले गए हैं कि गंगा में सबसे ज्यादा प्रदूषण नगरपालिका की नालियों से निकलने वाली गंदगी के कारण है। 


पोपटराव पवार हमारे युवा पीढ़ी के सबसे अग्रणी जल योद्धाओं में से एक हैं। वैसे तो पवार का मूल निवास स्थान महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले का हिवरे बाजार गाँव है, लेकिन इनकी शिक्षा पुणे शहर में हुई,जहां के विश्वविद्यालय से उन्होंने एम कॉम की परीक्षा उत्तीर्ण की। किस प्रकार पवार गांव के विकास और समृद्धि के लिए समर्पित हुए, यह भी एक मजेदार घटना है।

सन् 1972 से पहले तक उनका हिवरे बाजार गांव संपन्न और आत्मनिर्भर था, लेकिन सन् 1972 के सूखे और अकाल की स्थिति बनने से इस गांव का पतन होने लगा। यह स्थिति सन् 1989 तक बनी रही, क्योंकि यहां पेय जल और सिंचाई के जल के अभाव में लोगों को भरपेट खाना नहीं मिल पा रहा था। मवेशी मर रहे थे और लोग बाहर काम की तलाश में भटकते रहते थे। पवार का इसी गांव में एक फार्म हाउस है, जहां वे कुछ दिनों के लिए आए हुए थे। उन्हें गांव की स्थिति न देखी गई और फिर उन्होंने गांव के सुधार और विकास को अपने जीवन का मकसद बना लिया और गांववालों के अनुरोध पर सरपंच बने। 

पंछियों ने चहचहाना क्यूँ छोड़ दी है आजकल
शायद दरख्तों पर है धमाकों की गूँज आजकल

होली के दिनों में भी बंद हैं रंगों की फैक्ट्रियां
रंगों की जगह खून की बढ़ी है मांग आजकल

कभी बनारस , कभी दिल्ली तो कभी मुम्बई
हर जगह धमाकों की बरसात है आजकल

प्रयाग की रेती में हर साल माघ के महीने में देश विदेश से तथा कथित  श्रद्धालू अपने पाप धोने गंगा की गोद में आते है. सबके अपने अपने स्वार्थ है जिसके वशीभूत होकर वे गंगा में दुबकी लगा कर असीमित सुखों का जखीरा अपने नाम करने की उत्कट  लालसा रखते है. ये कैसी श्रद्धा है जो यह नहीं देखती कि जिस गंगा को हम माँ कहते है उसी को गन्दा करने पर तुले है. यह तो दोगलापन  हुआ. यह जड़ता का भी द्योतक है. मै गंगा के हालत का जायजा लेने कल ८ फ़रवरी को इलाहाबाद गया था

वो रिकार्ड जो होगें निशाने पर ....

-एक पारी में सर्वाधिक 17 चौके मारने का रिकॉर्ड भारत के सफलतम पूर्व कप्तान सौरव गांगुली के नाम है। उन्होंने 1999 में श्रीलंका के खिलाफ एक मैच में 17 चौके जड़े थे।
- रिकी पोंटिंग ने विश्व कप में सबसे ज्यादा 18 कैच लिए हैं।
- एक पारी में सबसे ज्यादा 8 छक्के मारने का रिकॉर्ड रिकी पोंटिंग के नाम दर्ज है। उन्होंने 2003 में भारत के खिलाफ फाइनल मैच में ये छक्के जड़े थे।
- सचिन के नाम विश्व कप में सर्वाधिक आठ बार मैन ऑफ द मैच पुरस्कार जीतने का रिकार्ड है।
- मौजूदा भारतीय कोच और दक्षिण अफ्रीकी बल्लेबाज गैरी कर्स्टन ने 1996 के वर्ल्ड कप में संयुक्त अरब अमीरात के खिलाफ नाबाद 188 रन बनाए थे। यह किसी भी बल्लेबाज का वर्ल्डकप में उच्चत्तम व्यक्तिगत स्कोर हे।
- एक पारी में सर्वाधिक 17 चौके मारने का रिकॉर्ड भारत के सफलतम पूर्व कप्तान सौरव गांगुली के नाम है। उन्होंने 1999 में श्रीलंका के खिलाफ एक मैच में 17 चौके जड़े थे।

संवादसेतु अर्थव्‍यवस्‍था ..
चवन्नी के बाद अब अठन्नी का नम्बर ....
सिक्के पिघलाकर जेवर बनाने वालों की खैर नहीं
सरकार सिक्के पिघलाने को संोय अपराध घोषित करने के साथ अपराधी को साल की सजा देने का प्रावधान करने जा रही
रोशन/एसएनबी नई दिल्ली। सिक्कों की लगातार हो रही कमी से परेशान सरकार दूरगामी निर्णय लेने जा रही है। सरकार धीरे-धीरे सिक्कों का चलन कम करेगी। इस सिलसिले मेंचवन्नी गायब हो चुकी है। अब सरकार अठन्नी को भी बाजार से वापस लेने पर विचार कर रही है। इसकी वजह है कि सिक्कों की धातु की कीमत उनके फेस वैल्यू से 60-70प्रतिशत अधिक है। जौहरी उन्हें पिघलाकर आर्टीफिशियल ज्यूलरी बना रहे हैं। सरकार सिक्का पिघलाने को संोय अपराध और अपराधी को साल तक सजा का प्रावधान करने जा रही है। प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में बृहस्पतिवार को होने वाली कैबिनेट की बैठक में दो महत्वपूर्ण निर्णय लिए जाने का प्रस्ताव है।


अनुराधा गोयल में पढिए .. गैजेट्स्‍ में भी छलके प्‍यार ...
ऋचा चाहती है कि वह अपने वेलेंटाइन के लिए कुछ अलग खरीदे। कार्डस, टेडी बीयर, गुलदस्ते और चॉकलेट्स आदि पारंपरिक गिफ्ट्स में उसकी रुचि नहीं है। वह कुछ ऐसा खोज रही है, जो उसके वेलेंटाइन को खुश करने के साथ इस मौके को कुछ नया और यादगार भी बना दे।
नए गैजेट्स में रुचि रखने वाले उसके वेलेंटाइन के लिए कोई गैजेट ही देने से बढ़िया उपहार क्या हो सकता! आप भी यदि ऋचा की स्थिति में खुद को देख रहे हैं, तो आपके लिए हमने कुछ ऐसे ही गैजेट्स की तलाश की जो उपयोगी होने के साथ बेहद आकर्षक भी हैं। इन सुंदर और रोमांटिक गैजेट्स को आप मॉल्स, इलेक्ट्रॉनिक शॉप्स और खासतौर पर ऑनलाइन शॉपिंग करके खरीद सकते हैं। गैजेट्स का चयन करते समय हमने आपके बजट को भी ध्यान रखा है-
अब इजाजत दीजिए ... मिलते हैं अगले सप्‍ताह पुन: कुछ नए चिट्ठों के साथ ...

रविवार, 27 फ़रवरी 2011

मर्दुमशुमारी-लम्बा चौड़ा हिसाब-कठिन परीक्षा की घड़ी -- ब्लॉग4वार्ता --- ललित शर्मा

ललित शर्मा का नमस्कार,आज मुकेश कुमार मिश्र, मस्तान सिंह का जनमदिन है इन्हे ढेर सारी मुबारकबाद।

 


शिव दर्शन बात उन दिनो की है जब मैं भी बाबा का अंधभक्त हुआ करता था। महाशिवरात्रि के पावन पर्व पर प्रस्तुत है एक संस्मरण जो अपने स्वभाव के अनुरूप व्यंग्यात्मक हो गया है।* ** महाशिवरात्रि का दिन, प्रातःकाल छः बज...पेग हो तो ऎसा !!नशा हो तो ऎसा जी नमस्कार आप सभी को , अगर आप को यहां दो लाईने ही दिख रही हे तो आप इस ब्लाग परिवार के टाईटल पर किल्क करे,या फ़िर Home पर किल्क करे तो आप को तीन लाईने दिखेगी, जी यहां तीन लाईने हे आप की नयी पोस्ट १, ,आप की न...

पिछले दिनों हुई मुलाकात कुछ ब्लॉगरों सेमित्रों ने बहुत शिकायत की कि कई दिनो से कुछ लिखा नहीं! दरअसल मंशा यह भी थीकि अब अपने ब्लॉगों को www.BSPABLA.com पर ले जाने के बाद ही कुछ लिखूँगा, किन्तु 11 वेबसाईट्स की योजना में इतना रम गया कि यह इरादा टलत...तंबाकू कंपनियां पचास वर्षों तक बेचती रहीं सफ़ेद झूठमुझे याद है कि सत्तर के दशक में मेरे जो रिश्तेदार उन दिनों 35-40 रूपये का सिगरेट का पैकेट पिया करते थे, सारे परिवार में उन का अच्छा खासा दबदबा हुआ करता था कि इन की इतनी हैसियत है कि ये अपनी सेहत के प्रति जाग...

सिंहावलोकन पर हो रही है मर्दुमशुमारी - उन्नीस सौ साठादि के दशक में पहली बार सुना- मर्दुमशुमारी। एकदम नये इस शब्द को कई दिनों दुहराता रहा। कुछ ऐसे शब्द होते हैं, खास कर जब वे आपके लिए नये हों,... कठिन परीक्षा की घड़ी - मौसम की जानकारी देने वाले ने अपने नक्शे को दिखाते हुए कहा "मुझे भय है कि स्थिति सुधरने से पहले और कठिन होगी।" उसकी यह भविष्यवाणी इस्त्राएल की प्रजा का चित...लम्बा चौड़ा हिसाब - दिन भर जिस्म की चक्की चली फिर गहराई लम्बी काली रात सरहाने रख चली गयी कुछ टूटे-फूटे ख्वाब कुछ गीलापन कुछ चमक सुनहरी सी इन आँखों के आस -पास पलकों...  

हर कोई अपनी सुरक्षा तलाशता है, ... साहित्य भी - मनुष्य ही है जो आज अपने लिए खाद्य का संग्रह करता है। लेकिन यह निश्चित है कि आरंभ में वह ऐसा नहीं रहा होगा। उस के पास न तो जानकारी थी कि खाद्य को संग्रह किय...  पत्र(लड़की की शादि के लिए) - कई बार आदमी किसी शादि समारोह में शामिल नहीं हो पाता और वहाँ कोई सन्देश भेजना चाहता है, लेकिन दिमाग में तुरन्त कोई विचार नहीं आता है। उस समस्या के समाधान के... नेता जी का फलसफा - *मेरी इस सरकार में सबको है यह छूट ;* *जनता है भोली बड़ी ,लूट सके तो लूट ,* *सच्चाई को छोड़कर बोलो मिलकर झूठ;* *गठबंधन पक्का रहे ,देखो जाये न टूट .* ... 

 उसने फिर से,.. गजल सुनाई हैं - जख्म अश्कों से, धो गया कोई ख्वाब आँखों मैं,, बो गया कोई उसके हाथों मैं,.. कारसाज़ी थी थपकियों मैं ही,.. सो गया कोई दिलकी खिड़की तो बंद कर लेते फिर न कहना ... अलमारी---- (कविता)---- मोनिका गुप्ता - कमरे मे माँ की अलमारी नही अलमारीनुमा पूरा कमरा है जिसमे मेरे लिए सूट है सामी के लिए खिलौना है इनके लिए परफ्यूम है मणि के लिए चाकलेट है एक जोडी चप्पल है सेल म... हर मोड़ पर दो राह मिलती हैं.. - कभी मिलती हैं मांगे से, कभी बिन चाह मिलती हैं, अजब है ज़िन्दगी, हर मोड़ पर दो राह मिलती हैं.. चलूं गर राह पर दिल की, तो मिलती ठोकरें हर दम, बढ़ाऊं होश से क... 

देखिये मेरा डांस ----ओ पिया , लेके डोली आ :) - आज आप सबको अपना पहला डांस वीडियो दिखा रही हूँ ....वैसे पहला डांस तो मैंने मंगलम गणेशं से शुरू किया था लेकिन यह पहला डांस है जो अच्छे से रिकार्ड किया गया . ... आज मेरी परदादी की पुण्यतिथि है - मेरी दादी आज मेरी दादी (माधव की परदादी )की पुण्यतिथि है . २५ फरवरी २००९ को उनका निधन हुआ था . उनकी मृत्यु के समय माधव करीब सवा साल का था .माधव को-- बदतमीजी और बेशर्मी की राजनीति से पीड़ित है समूचा देश - कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह कहते हैं बाबा रामदेव को राजनैतिक बातें नहीं करनी चाहिए , राजनीति करना ही है तो वे एक राजनैतिक पार्टी बनाना चाहते हैं , बना कर...  

छत्तीसगढ के साथ सौतेला व्यवहार -- रेल बजट - वर्तमान रेल बजट को देख कर लगता है कि यह देश का रेल बजट न होकर सिर्फ़ बंगाल के लिए ही है। बिलासपुर जोन से रेल्वे को सर्वाधिक कमाई होती है। लेकिन बजट के अवसर...कठिन परीक्षा की घड़ी - मौसम की जानकारी देने वाले ने अपने नक्शे को दिखाते हुए कहा "मुझे भय है कि स्थिति सुधरने से पहले और कठिन होगी।" उसकी यह भविष्यवाणी इस्त्राएल की प्रजा का चित...कविता : राम-राम हरे-हरे ( बोधिसत्त्व ) - कवि बोधिसत्व आज कवि बोधिसत्व कै कबिता आपके सामने रखत अहन। कविता है : “राम-राम हरे-हरे” ! यहि कबिता का अभय जी के बलाग से सादर लियत अही। अभय जी यहिकै अनुमति ...

वार्ता को देते हैं विराम--सभी को राम राम, मिलते  हैं ब्रेक के बाद
 

शनिवार, 26 फ़रवरी 2011

है यही पगले जवानी,डबरे पर सूरज का बिम्ब -- ब्लॉग4वार्ता---- ललित शर्मा

सभी को ललित शर्मा का नमस्कार, चलते हैं आज लेट लतीफ़ वार्ता पर,  जलवायु परिवर्तन तेजी से हो रहा है, इस पर चिंताए व्यक्त की जा रही हैं, कहते हैं 2020 तक हाहाकार मचा देगा जलवायु परिवर्तन जलवायु परिवर्तन का असर इसी दशक में इतने भयानक रूप में सामने आ सकता है कि दुनिया में हाहाकार मच सकता है. 2020 तक ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से पांच करोड़ से ज्यादा लोग बेघरबार   हो जाएंगे. अमेरिका के वॉशिंगटन में जारी एक साइंस कान्फ्रेंस में वैज्ञानिकों ने कहा कि ये पांच करोड़ लोग भूखे मरने की हालत में होंगे.  इन्हें अपने घर छोड़कर दुनिया के उत्तर की तरफ भागना होगा. साथ ही पढिए इनकम टैक्स छापा और वेवफ़ा मुर्गी

योगेन्द्र मौदगिल कह रहे हैं भाटिया जी निश्चिन्त रहें.खरगोन के कवि सम्मेलन के लिए आज रात हजरत निजाम्मुद्दीन से ट्रेन पकडूँगा. अंतर सोहिल भी साथ रहेंगे. खरगोन से लौटते हुए वापसी में इंदोर...... भाटिया जी के जर्मन लट्ठ ताई तक भिजवाने की जिम्मेवारी हमारी है....सोनल रस्तोगी कह रही हैं--मैं जितना पास आउंगी तुम उतना ज़ुल्म ढाओगेमुझे उम्मीद है तुमसे के मेरा दिल दुखाओगे मैं जितना पास आउंगी तुम उतना जुल्म ढाओगे मेरे सपने मेरी बातें तुम्हे फ़िज़ूल लगते है बिछा दूं फूल जितने भी तुम्हें बबूल लगते है मिलता है सुकूं तुमको बहे जो द..

धान के देश में! में पढिए प्राचीन भारत में परमाणु विस्फोटआदिकाल से प्रकृति सदैव सृजन का कार्य करती रही है और मानव विनाश का। मानव के द्वारा किए गए गए विनाश की भयावहता की कोई सीमा नहीं है। मनुष्य मनुष्य का विनाश करता है, भाई भाई का ही वध करता है। महाभारत का युद्ध ...मंडी हाउस की वो शाम,मैं,मेरी मैलिसा और...एक पत्रकार की अजब प्रेम की गजब कहानीमंडी हाउस की वो शाम कुछ सुहानी थी. मंडी हाउस मुझे पहले इतना खूबसूरत कभी नहीं लगा. मंडी हाउस ही क्यों? पूरी दिल्ली, दिल्ली ही क्यों? पूरी दुनिया भी मुझे कभी इतनी हसीन नहीं लगी. आज दुनिया की हर चीज मुझे खूब...

इन्द्रनील भट्टाचारजी मिला रहे हैं किनसे--आइये मिलते हैं इनसे ....मित्रगणों .... आइये आज आप सबको हम अपने देश का एक महान व्यक्तित्व से मिलाते हैं ... निमोक्त चरित्र चित्रण मैंने नहीं लिखा है .... यह मुझे मेरे एक दोस्त ने ईमेल द्वारा भेजा है ... मुझे यह चरित्र इतना अच्छा ल...उफ़ ! मेरी माशूक भी तनिक झूठी निकली !!खेत, खदान, कुआ, स्कूल, दुकान, आते-जाते लोग सबसे होती दुआ-सलाम, क्या खूब होती है गाँव की सब ! ... उफ़ ! एक लब्ज, 'मोहब्बत', जुबां से हटता नहीं बहुत कोशिश की, कोई दूजा शब्द जंचता नहीं ! ... अब क्या कहें, खुद क...

पढिए वाणी शर्मा जी की विशिष्ट पोस्ट हम मूरख तुम ज्ञानी .......दुनिया का चलन है ....हम जो है बस वही सही है , हम चतुर , सत्यवादी , निर्मल हृदय ,ईमानदार , कार्यकुशल , परोपकारी , ज्ञानी , ....जो हैं वो बस हम है ....*" तुम मूरख हम ज्ञानी "* कभी न कभी हम सब के मन में यह ख...शरद कोकास लिख रहे  हैं हमदर्द क़ातिल समय में दोहराते हैं -कुल्हाड़ी तो होगी ?आज *ग्वालियर* में पहला “ *कविता समय सम्मान *“ वरिष्ठ कवि *चन्द्रकांत देवताले *को दिया जा रहा है । इस सम्मान के लिये *चन्द्रकांत देवताले जी* को बधाई के साथ प्रस्तुत है इस क़ातिल समय की पहचान कराती 1996 की...

देखिए डबरे पर सूरज का बिम्ब ब्लाग जगत में कुछ साथियों द्वारा ब्लाग एवं साहित्य पर बहस चलायी जा रही है। उसी बहस के हेतु गजानन माधव 'मुक्तिबोध' का यह क्लासिक निबंध प्रस्तुत है। इस पोस्ट से शुरू 'क्लासिक निबंध' की यह शृंखला चलत....क्या ब्लॉगों को विदाई देने का वक्त सचमुच आ गया!?पिछले दिनों आई एक रिपोर्ट में यह दावा किया गया है कि 2006 के मुकाबले 2010 में ब्लॉगिंग के प्रति आकर्षण कम हुआ है। हालांकि यह इतनी बुरी खबर नहीं है क्योंकि इसी रिपोर्ट में कहा गया है कि 34 वर्ष कि आयु से ऊप...

पढिए नयी गजल है यही पगले जवानी.....जब कभी मचले जवानी * *दृश्य को बदले जवानी* *लड़खड़ाते हैं सभी पर* *जो यहाँ संभले जवानी* *आ रहा पीछे बुढ़ापा* *आज तू हँस ले जवानी* *मानती है बात किसकी* *है यही पगले जवानी* * * *है किधर जाना कहो तो* *कुछ पड़े प...ब्लॉगर-सर्वे : सहयोग की अपीलकुमार लव द्वारा ब्लागरों के संबंध में एक सर्वेक्षण किया जा रहा है. इस विषय में प्राप्त उनकी अपील सहयोग के अनुरोध के साथ यहाँ प्रकाशित की जा रही है. सभी ब्लॉगर मित्र सहयोग करने की कृपा करें. 

एक कंधा, सुबकने के लियेधरती को कैसा लगता होगा, जब कोई आँसू की बूँद उस पर गिरती होगी? निश्चय मानिये, यदि आप सुन सकते तो उसकी कराह आपको भी द्रवित कर देती। किस बात की पीड़ा हो उसे भला? दैवीय आपदाओं को कौन रोक पाया है और धरती ने न ज...तुरतुरिया के जंगलों में साहसिक खेलों का रोमांच घने जंगल में तीन सौ फीट की खाई के ऊपर पहाड़ी में एक छोर से दूसरे छोर में करीब पांच सौ फीट लंबी दो रस्सीयां लटकी हुई हैं। इन रस्सीयों पर लटक कर एक छोर से दूसरे छोर में जाने का काम लाइन लगाकर जांबाज लड़के और ..

वार्ता को देते हैं विराम, सभी को राम राम

शुक्रवार, 25 फ़रवरी 2011

ब्लॉगिंग को ललकारिए मत , ब्लॉगिंग ललकारेगी तो आप चित्कार कर उठेंगे..!!



कौन सा जीवन याद करूँ...... -
 कहो आज मैं कैसा जीवन याद करूँ,
किससे अपने मन मंदिर की बात करूँ,
कौन है वो, जो समझेगा बातें मेरी,
कौन है जो कर दे उजली, राते मेरी, और

दो पाट्न के बीच में इस वसंत के बाद 
24 फरवरी को हिंदी का श्रृंगार , सरस पायस,
रवि मन वाले रावेंद्रकुमार रवि की
वैवाहिक वर्षगाँठ थी टीम की ओर से  बधाई व शुभकामनाएं
नजरिया
तरक्की का छौर - ब्लाग्स चहुँ और.  इस समय सब तरफ एक अंतहीन बहस 'साहित्य बनाम ब्लाग्स' पर लगातार चलते हुए दिख रही है । कहीं आमने-सामने की कुश्ति की लंगोटें कसी जा रही हैं तो कहीं ब्लाग्स के अस्तित्व को समाप्त करवा देने जैसी चेतावनीयुक्त  गीदडभभकी के दर्शन हो रहे हैं और कहीं तो ब्लागर्स V/s साहित्यकारों के बीच प्रथम विश्वयुद्ध छिडने जैसा रोमांचकारी माहौल भी बनते दिख रहा है । संभवतः ब्लाग माध्यम की चौतरफा बढ रही दिन दूनी-रात चौगुनी लोकप्रियता से कुढकर कुछ तथाकथित साहित्यकारों का एक वर्ग इस ब्लाग-विधा को निकृष्टतम श्रेणी में आंकने की कोशिशों में ही लगा दिख रहा है और लगभग सभी उल्लेखनीय ब्लाग्स व टिप्पणियों को पढते हुए जो कुछ मेरी समझ में आ रहा है मैं उसे यहाँ कलमबद्ध करने की कोशिश कर रहा हूँ...
मौत आती भी नहीं जां जाती भी नहीं
भंवर में फ़ंसे मांझी सी सांसें अटकी ही रहीं।
सात खून माफ फ‍िल्‍म से पूर्व मैंने फ‍िल्‍म निर्देशक विशाल भारद्वाज की शायद अब तक कोई फ‍िल्‍म नहीं देखी,
लेकिन फ‍िल्‍म समीक्षकों की समीक्षाएं अक्‍सर पढ़ी हैं, जो विशाल भारद्वाज की पीठ थपथपाती हुई ही मिली हैं।
ब्लॉगिंग को ललकारिए मत , ब्लॉगिंग ललकारेगी तो आप चित्कार कर उठेंगे -
ब्लॉगिंग को विशेषकर हिंदी ब्लॉगिंग को पांव पसारे
अभी ज्यादा समय बीता भी नहीं है कि उसे निशाने
पर लिया जाने लगा है ।
सटोरियों का वर्डकप
क्या हाऊस वाईफ का कोई अस्तित्व नहीं ? -
 *क्या हाऊस वाईफ का कोई अस्तित्व नहीं ?
 क्या उसे financial decision लेने का कोई अधिकार नहीं ?
क्या हाऊस वाईफ सिर्फ बच्चे पैदा करने और घर सँभालने के लिए हो..
मीत जी ने बजा फ़रमाया हज़ूर
अपने ब्लाग किससे कहें पर मखमली आवाज़ के निस्बत .
विवेक रस्तोगी जी लगा रहे हैं ताला - मेरी छोटी सी दुनिया
पर
बारास्ता बी एस पाबला 

नई दुनिया में ब्लॉगिंग पर एक फीचर
यश भारत में ‘उड़न तश्तरी’, ‘आपका पन्ना’, ‘एड़ी चोटी’
दैनिक जागरण में ‘प्रेम रस’, ‘निहितार्थ’, ‘सामाजिक मुद्दे’
दुनिया का डी.एन.ए.टेस्ट ज़रूरी: दैनिक जागरण में ‘ना जादू ना टोना’
कृष्ण बलदेव वैद का कथा आलोक: स्वाभिमान टाइम्स में ‘जानकी पुल’
हरिभूमि में ‘बस करो’, ‘दुनिया जहान’
व्यक्ति पूजा बहुत घातक: डेली न्यूज़ एक्टिविस्ट में ‘कुछ अलग सा’
परीक्षार्थियों की चांदी हो गई..रोहन परीक्षा दे रहा था, लेकिन हॉल में मौजूद परीक्षक लगातार घूम रही थी,और नकल कर पाने का मौका ही नहीं मिल रहा था...परेशान होकर रोहन ने एक चिट पर कुछ लिखकर परीक्षक के हाथ में थमा दिया...
परीक्षक ने चिट पढ़ी और चुपचाप जाकर कुर्सी पर शांत बैठ गई, परीक्षार्थियों की चांदी हो गई...सभी परीक्षार्थी हैरान हुए, लेकिन फटाफट एक-दूसरे की मदद से उत्तरपुस्तिका भरने लगे...
परीक्षा खत्म होने के बाहर निकलते ही बच्चों ने रोहन को घेर लिया, और पूछा,
"यार, तूने मैडम को क्या लिखकर दिया था पर्ची में...?"
रोहन ने शरारती मुस्कुराहट के साथ जवाब दिया,
जवाब इधर है 

एक पगली- सुविधि

C9azrV7m2Ox8V8S6yIrHPQ
आप लोग जानते है ना इसे?अरे सुविधि है ये.जो इसे मालूम पड गया कि
मैंने इसका परिचय अपने स्टाफ मेंबर के रूप में कराया है तो समझिए ….
देवी को माना पडेगा.बेहद ईर्ष्यालु किस्म की है ये.
बधाई का ठेला भेजिये ललित जी को 

अविनाश वाचस्पति बाज़ नहीं आते 
प्रवासी साहित्यकार सम्मेलन के
फ़ोटो यहां लगाते हैं
कईयों के सीने पर "सांप" ( इसे ज़रूर क्लिक कीजिये )
लोट वाते हैं....
इस ब्लाग पर होली आ ही गई कवि गण पधारें
नवगीत की पाठशाला




    गुरुवार, 24 फ़रवरी 2011

    ताऊ की अंतिम चेतावनी खाली खाली सा बसंत -- ब्लॉग4वार्ता

    ललित शर्मा का नमस्कार, चलते हैं अनवरत पर जहाँ दिनेश जी साहित्य के विषय में कह रहे हैं --दर्शन की पोथियों में एक क्रिया के साथ योग रहने को ही 'साहित्य' कहा गया है। अलंकार-शास्त्र में इसी अर्थ से मिलते-जुलते अर्थ में इस का प्रयोग हुआ है। वहाँ शब्द और अर्थ के साथ-साथ रहने के भाव (साहित्य) को 'काव्य' बताया गया है। परन्तु ऐसा तो कोई वाक्य हो नहीं सकता जिस में शब्द और अर्थ साथ-साथ न रहते हों। इसलिए 'साहित्य' शब्द को विशिष्ठ अर्थ में प्रयोग करने के लिए इतना और जोड़ दिया गया है कि "रमणीयता उत्पन्न करने में जब शब्द और अर्थ एक दूसरे से स्पर्धा करते हुए साथ-साथ आगे बढ़ते रहें, तो ऐसे 'परस्पर स्पर्धा' शब्द और अर्थ का जो साथ-साथ रहना होगा, वही साहित्य 'काव्य' कहा जा सकता है।"

    प्रवीण पाण्डेय जी लिख रहे हैं बहता समीर--यात्रायें कुछ न कुछ नया लेकर आती हैं, हर बार। कार यात्रा, ट्रेन यात्रा, जीवन यात्रा, सबमें एक अन्तर्निहित समानता है, एक को दूसरे से जोड़कर देखा जा सकता है। यही सशक्त पक्ष है पुस्तक का भी, यात्रा में कुछ न कुछ दिखता रहता है, उससे सम्बन्धित जीवन के तथ्य स्वतः उभर कर सामने आ जाते हैं। यह शैली अपनाकर दर्शन के तत्वों को भी सरलता उड़ेला जा सकता है। पर दो खतरे हैं इसमें। पहला, असम्बद्ध विषयों को जोड़ने का प्रयास बहुधा कृत्रिम सा लगने लगता है। दूसरा, हर विषय को जोड़ते रहने से पुस्तक का स्वरूप डायरीनुमा होने लगता है। इन दोनों खतरों को कुशलता से बचाते हुये दर्शन और जीवन का जो उत्कृष्ट मिश्रण समीरलालजी ने प्रस्तुत किया है, वह मात्र सुगढ़ चिन्तन और स्पष्ट चिन्तन-दिशा से ही सम्भव है।


    ताऊ की अंतिम चेतावनी पढिए --मैं ताऊ टीवी का होनहार खोजी संवाद दाता रामप्यारे आपका इस सुबह सबेरे के न्यूज बुलेटिन में स्वागत करता हूं. आज की मुख्य और बडी खबर ये है कि आज थक हार कर मिस समीरा टेढ़ी को उनकी स्लिम एवं जीरो साईज उपन्यासिका..एक भूल हुईना जाने कब उसे अपनी चाहत समझ बैठा , है वह कौन जान नहीं पाया | खिलते फूल सी मुस्कान भीड़ के बीच खोजना चाही खोजता ही रह गया नहीं जान पाया है वह कौन | कई पत्र लिखे लिख कर फाड़े कुछ भेजे, कुछ पड़े रहे उत्तर एक का भ...

    खाली खाली सा बसंत...यह मेरा उदास बसंत है. पेड़ों से जब पत्ते झरते हैं, तो लगता है कि मेरा मन भी झर रहा है. तो क्या किसी नई शुरुआत के लिए ऐसा हो रहा है. क्योंकि पेड़ों पर तो नई कोपलें फूट रही हैं. काश ऐसा सच होता है तो मैं इ...मेरा इश्क खुद गरज हे मेरा इश्क अब खुद गरज हो चला हे तुझे चाहते चाहते तुझे पालने की अब जिद हो जाने से तेरी तरह मेरा इश्क भी देख बेवफा हो चला हे ।बैंड.......बाजा........बंदूक .......किसी शादी या सांस्कृतिक समारोह में गोली चलना और किसी की जान जाना , ऐसी खबरें है जो आये दिन अखबारों की सुर्खियां बनती है। ऐसे समाचार जब भी पढने सुनने को मिलते हैं ना केवल अफसोस होता है बल्कि मन गुस्से से.
    जरूरी तो नहीं कि प्रत्येक पति जोरू का गुलाम होअब पत्नी चाहे अवधिया जी की हो, चाहे पात्रो जी की हो, चाहे गुप्ता जी की हो या चाहे किसी अन्य व्यक्ति की हो, सभी में एक समानता तो जरूर पाई जाती है। वे सभी चाहती हैं कि अपने पति को अपनी मुट्ठी में ही रखें। और...ये संसार प्यारी सी बगिया कोंन कहता है की इंसान... इंसान से प्यार नहीं करता | प्यार तो बहुत करता है पर इज़हार नहीं करता | हर एक... को तो अपने पहलु से बांधे फिरता है | पर फिर भी उसे कहने से हर दम ही वो डरता है | यूँ कहो की पुरान...

    पुस्तकें, साहित्य पढने का समय नहीं है बहुत सारे लोग पुस्तकें आदि यात्रा में ही पढते हैं। क्या कारण है? घर में एकांत नहीं मिलता या मूढ नहीं बनता है। या कोई पुस्तक या साहित्य आपने खरीदी है या भेंट में मिली है तो उसे यात्रा में ही पढेंगें। मुझे त...क्या हाऊस वाईफ का कोई अस्तित्व नहीं ?क्या हाऊस वाईफ का कोई अस्तित्व नहीं ? क्या उसे financial decision लेने का कोई अधिकार नहीं ? क्या हाऊस वाईफ सिर्फ बच्चे पैदा करने और घर सँभालने के लिए होती हैं ? क्या हाऊस वाईफ का परिवार , समाज और देश के...

    कुकूनइस नयी सड़क पर आज पहली बार आया हूँ। शहर से दूर दोनों और पेड़ों से आच्छादित शांत सी सड़क। बिना ट्राफिक के ....गाड़ी चलने का मजा तो यहाँ है। अब अगले ३-४ दिन रोज़ यहाँ आना है । रास्ते में चार स्कूली बच्चे पी...क्या अहम् है,खबर की जानकारी या फिर आपका स्वास्थ्य ? बहुत दिनों से सोच रहा था कि इस बाबत चंद लाइने लिखूं, और आखिरकार आज हिमाचल के कुल्लू गाँव की एक खबर ने कलम हाथ में थमा ही दी! एक खबर के मुताबिक़ कुल्लू के एक गाँव के लोगो ने सामूहिक फैसला लिया...

     चलते चलते व्यंग्य चित्र

     

    वार्ता को देते हैं विराम, राम राम, मिलते हैं ब्रेक के बाद-----

    बुधवार, 23 फ़रवरी 2011

    बांझ आम इस बार बहुत बौराया --- ब्लॉग4वार्ता --- ललित शर्मा

    नमस्कार, एक सप्ताह पहले नरेश सिंह जी से चैटिया रहे थे। उन्होने बताया की बगड़ में जोर की बारिश हो रही है। गलियाँ और रास्ते कीचड़ से भर गए हैं और ठंड भी बढ गयी। ठंड का मौसम जाते-जाते अपना रंग दिखा रहा है। परसों से मौसम हमारे यहाँ भी खराब चल रहा है। रविवार को तो दिन भर बारिश होते रही। सोमवार को सुबह ठंड बढ गयी थी। दोपहर में कुछ राहत मिली सुर्यनारायण के दर्शन होने से। इधर धरसीवाँ के बरतनारा में इंजिनिरिंग के छात्रों द्वारा वेलेन्टाईन डे की शाम को किए गए सामुहिक बलात्कार जैसे कुकृत्य ने जन मानस को हिला दिया। शहर में दरिन्दों से कब किसकी अस्मत तार-तार हो जाए उसका पता नहीं। इस पर कल मुझे संजीव तिवारी जी की पोस्ट ने मौन कर दिया। मौन इसलिए कि एक अकेला व्यक्ति संगठित  गिरोह से नहीं लड़ सकता। अफ़ीम की पिनक में पड़े हुए लोगों के बीच बहादुरी दिखाना आत्महत्या ही है।कहीं न कहीं सामाजिक उदासीनता भी अपराधियों के हौसले बुलंद करती है। कानून इन कूकर्मियों को मृत्यु दंड क्यों  नहीं देता? अपराध की प्रकृति के हिसाब से दंड भी तय होने चाहिए।


    पुलिस की नाकामी है कि अभी तक दरिंदे गिरफ़्तार नहीं हुए हैं। इधर खुशदीप भाई कहते हैं पुलिस जी, आओ ढोए तुम्हारी पालकी तफ्तीश के लिए पुलिस पहुंची... लेकिन ये देखकर ठिठक गई कि दोनों गांवों के बीच एक नाले जैसी पतली नदी बहती है...गांव वालों का ये रोज़ का रास्ता बेशक हो लेकिन पुलिस वाले साहब भला कैसे पानी में पैर रखें...जूते-पैंट भीगने का डर...वहीं सवाल करने लगे तो मृतक के परिजनों ने घटनास्थल तक चलने का अनुरोध किया....कोतवाल बीडी शर्मा और एएसआई सुरेंद्र सिंह बराच की हिचक देखकर गांववालों ने इल्तज़ा की कि हमारे कंधों पर चलिए हुजूर...और दोनों साहब भी तैयार हो गए...कौन कहता है कि देश को आज़ाद हुए 64 साल हो गए.... -- अंग्रेज चले गए लेकिन पुलिस अभी तक लोकतंत्र के कांधो पर सवार है और प्रजा इन्हे ढो रही है। कानून इनके हाथ में है जो चाहें कर दें। जिसे चाहें हवा खिला दें हवालात की।

    संजीव तिवारी कहते हैं मुझे माफ कर मेरे हम सफरदीपक तुमने आज केवल छत्तीसगढ़ के गृहमंत्री को पत्र नहीं लिखा है, इसके मजमूनों में तुमने हमस सब को लपेटा है जो किसी ना किसी रूप में इस सिस्टम के मोहरें हैं ... पर क्या करें मेरे भाई, हमारे सामने हमारी बेटियॉं लुट रही हैं और हमारे मुह पर ‘पैरा बोजाया’ हुआ है। हम मजे से मुह में दबे पैरे को कोल्हू के बैल की तरह ‘पगुराए’ जा रहे हैं क्योंकि हममें सिर उठाकर ‘हुबेलने’ की हिम्मत नहीं है, क्योंकि हमारे पेट में दिनों से भूख ने सरकारी जमीन समझ कर एनक्रोचमेंट कर झोपड़ी बना लिया है। हमें शासन व पुलिस के कोडे और कूल्हे में चुभने वाले ‘तुतारी’ का भी भय है। हम चाहकर भी ‘मरकनहा बईला’ नहीं बन पा रहे हैं और सिर नवाए जुते जा रहे हैं।  

    तुमने मेरे ब्लॉगिंग को ललकार कर मेरी रही सही अस्तित्व पर भी कुल्हाड़ी चला दिया, भाई मैं ब्लॉगिंग अंग्रेजी ब्लॉगों की तरह किसी सार्वजनिक मुहिम के लिए नहीं करता किन्तु निजी मुहिम के लिए करता हूं, मुझे उन्हीं विषयों पर पोस्टे लिखना है जिनसे भेंड बकरियां मेमियाये और टिप्पणियों की बौछार लग जाए। मेरी ब्लॉगिंग भी एक प्रकार की राजनीति है जिसमें मैं जुगाड़ और चापलूसी तकनीकि का प्रयोग करता हूं। छत्तीसगढ़ की ग्रामीण असहाय बालिका के बलत्कार पर लिखने से मेरी पोस्टों को सत्ता के नुमाइंदे पढ़ना बंद कर देंगें, एसी पोस्टें चिट्ठा चर्चों में स्थान भी नहीं पायेंगी ... और मेरे ब्लॉग का रेंक भी बढ़ नहीं पायेगा और प्रदेश में मिलने वाले सम्मान या पुरस्कार जिसमें आजकल पुलिस प्रमुख ही मुख्य अतिथि होते हैं वे पुरस्कार व सम्मान भी मुझे नहीं मिल पायेंगें। सच मान मेरे भाई मुझे इस ब्लॉगिंग के सहारे नोबल पुरस्कार प्राप्त करने की लालसा है इसलिए तू मुझे उस असहाय निरीह बालिका के संबंध में लिखने को मत बोल।
     
    ज्योति डांग कहती हैं कि बाल विवाह या बचपन से खिलवाड़, कभी बाल विवाह करना इस समाज की मजबूरी थी। जब मुगलों के शासन में कुंवारी लड़कियों को बलात उठा कर ले जाया जाता था। परिणाम स्वरुप बाल विवाह प्रथा एवं घुंघट प्रथा का जन्म हुआ। अब यह स्थिति नहीं है पर परम्पराओं के नाम पर कुप्रथाओं  की जड़ें बहुत गहरी हो गयी हैं। वे लिखती हैं--भारतीय गांवों में आज भी बाल विवाह किये जाते है . कानून भी बने हुए हैं किन्तु यह कुप्रथा आज भी हमारे समाज में 'जस की तस ' चली आ रही है . क्यूँ माँ , बाप अपने बगीचे की नन्ही कलियों  के साथ ये खिलवाड़ करते हैं . उनको क्या मिलता होगा यह सब करके . कभी सोचा कि छोटे छोटे बच्चों को शादी के बंधन में  बाँध देते है  . उनको मालूम भी होगा शादी क्या होती है शादी कि मायने क्या हैं ?,उनका शरीर शादी  के लिए तैयार भी है ?वो नन्ही सी आयु शादी के बोझ  को झेल पायेगी?

    कुछ दिनों पहले नक्सलियों द्वारा 5 पुलिस वालों का अपहरण एवं रिहाई चर्चा का विषय बनी हुई थी। आशुतोष मिश्रा लिखते हैं --छतीसगढ़ संदर्भ - 2011प्रदेश का मौजूदा स्वरूप चिंता जनक है । यह प्रदेश के लोगों का मानना है लेकिन सरकार बड़ीही सहजता से इसे इंकार करती है । 18 जिलों वाले इस राज्य के सत्रह जिलों में नक्सलियों का सिकंजा कसा हुआ है - अच्छा नेटवर्क है , यह स्वंय प्रदेश सरकार कहती है , कब ? जबप्रदेश के मुख्यमंत्री , मुख्य सचिव , गृह सचिव और ऐसे ही महत्वपूर्ण पदों की शोभा बढ़ाने वाले नेता और अधिकारी नई दिल्ली में प्रधान मंत्री , गृह मंत्री की बैठकों में पैसा और पैकेज मांगने के लिए बोलते हैं । इन्हें प्रदेश के हर थाना क्षेत्र की सुरक्षा के लिए केंद्र से 200करोड़ रुपया चाहिए । राजनीति शास्त्र कहता है - " राज्य एक लोकतांत्रिक संस्था है। " लेकिन हमारे राज्य में आकर देखिए तो एहसास होगा यह एक वर्ग विशेष की बेहद नीजि सी संस्था है । यहाँ अमीरी और गरीबी की खाई बेहद तेजी से बढ़ रही है । गरीबों की जमीनें धनवानों को और अधिक धनवान बना रहीं हैं , वहीं गरीबों को न केवल गरीब वरन  आगे चल कर भूमिहीन और निकम्मा बनाने की बहुत ही सोची-समझी साजिश का आसान शिकार बना रहीं है।

    पवन धीमान कई महीनों के बाद ब्लॉग पर सक्रीय दिखे हैं लेकर  आए हैं अभिष्ट गीत मुझे अभिष्ट है ऐसा गीत, जो ज्वलंत प्रश्न उठाता है. सोच की पौध सींचता है जो, दाद भले नहीं पाता है. अब्दुल्ला और राम की कहता, संध्या और अजान की कहता, जो मस्जिद में खुदा और मंदिर में भगवान् बुल...-- यहाँ शिकायतों का अम्बार लगा है मुझे शिकायत हे, आप को शिकायत हे, सब को शिकायत हेजी हम सब को शिकायत हे इन आज के बकवास टी वी प्रोगरामो से, ओर हम सब बस मन मसोस कर रह जाते हे, या हमे पता ही नही होता कि हम अपने हक के लिये क्या करे, या हम सब के पास समय ही नही होता कि ढुडे कि इस की शिकायत कह...

    अरुण राय सरोकार पर लिख रहे हैं राजपथ पर गिलहरियाँराजपथ कभी इसका नाम था 'किंग्स वे' जरुरत नहीं समझाने को इसका अर्थ बदल दिया है जिसने पूरे राष्ट्र का चरित्र राजपथ के एक छोर पर है राष्ट्रपति भवन जहाँ निवास है सैकड़ों एकड़ में फैले दुनिया के निचले ...डॉ आर रामकुमार का गीत पढिए -बांझ आम इस बार बहुत बौराया ।कुदरत ने दिल खोल प्यार छलकाया बांझ आम इस बार बहुत बौराया ।। देख रहा हूं नीबू में कलियां ही कलियां । फूलों से भर गई नगर की उजड़ी गलियां। निकले करते गुनगुन भौंरे काले छलिया। उधर दबंग पलाशों ने भी अपना रंग दिख... पढिए शिखा जी की कविता यही होता है रोज

    बीबीसी रेडियो की हिंदी सेवा बंद करने का निर्णय दुर्भाग्यजनकबीबीसी रेडियो की हिंदी सेवा बंद करने का निर्णय अत्यंत ही दुर्भाग्यजनक है. बीबीसी वर्ल्ड सर्विस का यह निर्णय रेडियो श्रोताओं के लिए कुठाराघात से कम नहीं है. यह दुनिया जानती है कि बीबीसी रेडियो के कार्यक्र...अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस परसबका आपन मातरी भू , संसकिरिति अउर मातरी भासा केर सम्मान/बिकास करै क चही , यनहीते खुसियन/थई कै* * राह निसरत है--- वाणी जी की कविता पढिए मैं ..मैं ..मैं कई बार हास्य महज हंसने के लिए नहीं होता ...इसमें सहज सन्देश भी छिपा होता है ...अपने मैं को संतुष्ट करने के लिए हम क्या नहीं कहते , क्या नहीं करते ...जब अपने मुख से या किसी और के मुख से लगातार मैं -मैं सुना...

    कौन कहता है कि नारी अबला होती है ? डॉ टी एस दराल  अंतर्मंथन -पर--कहने को तो वह अपनी दूर की रिश्तेदार है । वैसे बहुत करीबी रिश्तेदार की करीबी रिश्तेदार है । शायद रिश्तों की केमिस्ट्री ऐसी ही होती है । उससे पहली बार १३-१४ साल पहले मिला था । तब वह १७-१८ वर्ष की पतली दुबली...और नहीं बस और नहीं रविवार को अवसर था ताज महोत्सव में *आगरा *में संपन्न सूरसदन में आयोजित अखिल भारतीय कवि सम्मेलन का। सभागार खचाखच भरा था| बाकी कवि सम्मलेन जैसा ही यह कवि सम्मलेन हो जाता तो यहाँ लिखने की जरूरत नहीं पड़त...

    इशारों को देखिए !
                                              महलों को देखिए , मीनारों को देखिए ,
                                             सपनों  में मगन-मस्त सितारों को देखिए !

                                              कहते हैं वतन सबका इक प्यारा सा घर है,
                                              आंगन में रोज बनती दीवारों को देखिए !

                                              बूंदों के लिए तरस रही ये  वक्त की नदी ,
                                              लहरों से दूर  हुए   किनारों को देखिए !

                                              दौलत के दलालों की हर पल  यहाँ   दहशत ,
                                              इरादे भी खौफनाक ,  इशारों को देखिए  !
                                     
                                              गाँवों को मिटा कर वो बनाने लगे शहर ,
                                              काटते हरे जंगल-पहाड़ों को देखिए !


    सिंहावलोकन पर ज़िंदगीनामा है, राहूल सिंह कहते हैं --अमृता प्रीतम की पुस्तक 'हरदत्त का ज़िंदगीनामा' है और कृष्णा सोबती के जिस ज़िंदगीनामा पुस्तक को मैं याद कर पा रहा हूं, उस पर शीर्षक के साथ 'ज़िन्दा रूख' शब्द भी था। विवाद था कि ज़िंदगीनामा किसका शब्द है। अच्छा लगा कि शब्दों के लिए इतनी संजीदगी है लेकिन दूसरी तरफ यह भी सोचनीय है कि हमारे न्यायालय के मामलों की अधिकता में पूरे 26 बरस एक संख्‍या बढ़ाए रखने में यह मुकदमा भी रहा। 

    इसी तरह कहानी 'लटिया की छोकरी' का एक वाक्य है- ''बिलासपुर से उन्नीस मील दूर अक्लतरे में साबुन का कारखाना खोल दिया।'' यह साबुन कारखाना, लोगों की स्मृति में अब भी 'भाटिया सोप फैक्ट्री' के रूप में सुरक्षित है। अक्लतरे यानि अकलतरा और कहानी का लटियापारे, पास का गांव लटिया है। इन दोनों कहानियों के पात्र और घटनाओं की सचाई लोगों को अब भी याद हैं, लेकिन अफसाने को अफसाना ही रहने दें।  

    इस पोस्ट की कुछ टिप्पणियाँ

    rashmi ravija said...
    अमृता प्रीतम को तो खूब पढ़ा है.....रसीदी टिकट सहित, करीब करीब उनकी सारी रचनाएं पढ़ी हैं...कृष्णा सोबती का लिखा ज्यादा नहीं पढ़ा....उनकी रचनाओं के ऊपर आलेख....उनके बोल्ड संवादों की चर्चा सुनी है...जिंदगीनामा के उद्धृत अंश भी पढ़ने का अवसर मिला. पर इस विवाद की मुझे जानकारी नहीं थी...और २६ वर्ष लग गए कोर्ट को फैसल सुनाने में??.....और इन दोनों लेखिकाओं ने इसका इंतज़ार भी किया ...शब्द बदलने को राज़ी नहीं हुईं....आश्चर्य है... अमृता प्रीतम का छत्तीसगढ़ से भी सम्बन्ध था, यह भी मेरे लिए एक नई जानकारी है. ...मुझे तो वे पंजाब और दिल्ली की ही लगती थीं
    mahendra verma said...
    आज कृष्णा सोबती के 86वें जन्म दिन पर आपकी यह प्रस्तुति महत्वपूर्ण है। कृष्णा सोबती का ‘जिंदगीनामा‘ 1979 में प्रकाशित हुआ जिसके लिए उन्हें 1980 में साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला। 1984 में अमृता प्रीतम की पुस्तक ‘हरदत्त का ज़िदगीनामा‘ प्रकाशित होने के साथ ही कृष्णा जी ने मुकदमा दायर कर दिया कि ज़िंदगीनामा शब्द पर उनका कापीराइट है। खुशवंत सिंह ने अमृता जी के पक्ष में गवाही देते हुए कोर्ट में कहा कि कृष्णा सोबती के पहले भाई नंद लाल गोया द्वारा 1932 में प्रकाशित कृति में ज़िदगीनामा शब्द का उपयोग किया गया है। कोर्ट का निर्णय अमृता प्रीतम के पक्ष में रहा।
    swaarth said...
    मामले का दुखद पहलू है कि कोर्ट को इतने साधारण केस का फैसला देने में छब्बीस साल लग गये और जब अमृता प्रीतम के पक्ष मे फैसला आया तब तक वे दिवंगत हो चुकी थीं। उससे भी दुखद बात है कि कृष्णा सोबती जी ने ऐसा सोचा भी कि ’ज़िंदगीनामा’ शब्द पर उनका एकाधिकार हो सकता है। तब तो ज़िंदगी, जीवनी आदि शब्दों पर भी रचनाकार दूसरों को रोक लेते। पॉकेट बुक्स लिखने वाले कई लेखकों को विष्णु प्रभाकर जी के ऊपर मुकदमा कर देना चाहिये था कि वे कैसे आवारा शब्द का इस्तेमाल, शरत बाबू पर लिखी जीवनी के लिये कर सकते हैं। और नहीं तो राज कपूर ही कोर्ट चले जाते कि आवारा शब्द पर उनका कॉपीराइट है। कृष्णा सोबती जी को बालिग होने के बाद अपना नाम बदल लेना चाहिये था, आखिरकार उनसे पहले और बाद में लाखों कृष्णा भारत में जन्मी हैं। उन्हे कोई ऐसा नाम रखना चाहिये था जो किसी का न रहा हो और उनके बाद कोई और न रख सके, ऐसा इंतजाम वे नाम का पेटेंट लेकर कर सकती थीं। जज महोदय हंसे तो जरुर होंगे हिन्दी के लेखकों की ऐसी मानसिकता पर। कुछ और लड़ने को नहीं मिला तो शीर्षक पर हे लड़ लो।

    ज्ञानदत्त पाण्डेय Gyandutt Pandey said...
    वाह! जिन्दगीनामा पर जंग हो सकती है? वाह! ब्लॉगजगत में कई शब्द हैं, जिन्हें मैं क्वाइन किये जाने का दावा कर सकता हूं - जाने कितनी जंग लड़नी पड़ें मुझे!

    अब पहचानिए इन्हें जिनका बचपन लौट आया है। (चित्र पर क्लिक करें)

     बांचिए कुंभ लग्‍न की कुंडली और जानिए नेता की जान कहाँ अटकी है? वार्ता को देते हैं विराम, मिलते हैं ब्रेक के बाद राम राम

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