शुक्रवार, 18 फ़रवरी 2011

ऋतुराज वसन्त रिश्वत लेते पकड़े गये ---- ब्लॉग4वार्ता---- ललित शर्मा,

नमस्कार, गाँव के किसान जब फ़सल काट लेते हैं और अपनी कोठी में भर लेते हैं। तब मेलों का मौसम आ जाता है और मेलों की मौज शुरु हो जाती है। 17 फ़रवरी को प्रसिद्ध सिरपुर में तीन दिवसीय महोत्सव प्रारंभ हो चुका है। आज छत्तीसगढ में स्थित राजिम त्रिवेणी में मेला के रुप में राजिम अर्ध कुंभ प्रारंभ हो गया है, सांय 5 बजे शुभारंभ समारोह है। यह मेला 2 मार्च तक भरेगा। एक मार्च से बस्तर के विश्व प्रसिद्ध चित्रकोट जल प्रपात के निकट चित्रकोट उत्सव प्रारंभ हो रहा है। कल हमने भी राजिम कुंभ के शुभारंभ में सम्मिलित होने का मन बनाया है। अब चलते हैं आज की ब्लॉग4वार्ता पर.....

व्यंग्य चित्र देखिए इरफ़ान की तूलिका से --भारतीय मजबूर पार्टियाँ!

अब चलते हैं राजू बिन्दास के पास वे लिखते हैं-‘आओ फिर से खेलें ..’वैसे तो फरवरी पढ़ाई का महीना होता है. एग्जाम सिर पर होते हैं. लेकिन मौसम के लिहाज से फरवरी बोले तो फन. फरवरी में आता है बसन्त और बौर. इसी महीने वैलेन्टाइन्स डे भी पड़ता है. इस खुशनुमा मौसम में एक अजीब सी खुशबू रहती है कुछ-कुछ शरारती कुछ-कुछ संजीदा, कभी उमंग तो कभी उचाट सा रहता है मन. आइए बसन्त और बाबा वैलेंटाइन के मौसम में एक नए और नॉटी ब्लॉगर की बहकी-बहकी बातों का मजा लें।

राजु बिंदास एक नए ब्लॉग नीम चढा का जिक्र करते हुए कहते हैं कि -- एक पोस्ट है ‘हॉर्न ओके टाटा प्लीज’. इसमें एक फोटो और चार लाइन की फाइंडिग्स ने बड़े-बड़े सर्वे की वॉट लगा दी है. कुछ यूं हैं ये लाइंस...‘एक हजार लड़कियों पर रिसर्च करने के बाद मेरी आखें इस निष्कर्ष पर पहुंची हैं कि 90 प्रतिशत लड़कियां सिर्फ पीछे से अच्छी लगती हैं. और उन 90 प्रतिशत में से भी केवल 30 प्रतिशत ही उम्मीदों पर खरी उतरती हैं, यानी आगे से अच्छी निकलती हैं...’

अभी राजु बिंदास जी बता रहे हैं कि यह ब्लॉग (नीम चढा) ब्लॉगर की गलती से डिलिट हो गया

इन्दुपुरी जी ने एक गिद्ध पकड़ कर उसकी धुनाई की है -- वे लिखती हैं --एक दिन घूमने निकली.थोड़ी दूरी पर जाने पर एक परछाई पीछे आती दिखी. परछाई पास आते आते मेरी परछाई में लगभग गुम हो गई. यानी कोई मेरे एकदम पास चल रहा था.मैंने अपने चलने की रफ्तार धीमे कर दी. और...रुक गई.मैं पीछे मुडती तो निसंदेह उससे टकरा जाती. तभी अचानक मेरे पीछे से एक शख्स निकले और साइड से होते हुए तेजी से गुजर गये.मैंने उन्हें पहचान लिया.चूँकि कोलोनी गोलाकार बसी हुई है इसलिए मैं वापस पीछे मुड गई अब मेरे सामने से गुजरने वाले उस शख्स को हंड्रेड परसेंट मुझे फेस करता हुए ही निकलना था.मैं अपने शक को दूर करना चाहती थी और...कुछ और भी. हा हा हा 

मैं उनकी ओर चेहरा करके रास्ते के बीच खड़ी हो गई.वे जैसे ही पास से गुजरे ,मैंने रास्ता रोक लिया और कहा-' ओह! मिस्टर… वो आप थे? मैं पलट कर झापट मारने ही वाली थी (I was going to slap on your face ,but saw it was you?)'' इतना बड़ा आरोप सुनने के बाद भी वे एक पल नही रुके.उनकी रफ्तार तेज हो गई.मैं लगभग दौडती हुई उनके सामने आ गई-' मिस्टर...! आपने सुना मैं क्या कह रही हूँ???''जी मैं समझा नही आप क्या कह रही हैं.मैं वाक कर लू'-उनका जवाब था, वे और तेजी से चल दिए.मैं एंटी क्लोक वाइज़ चल कर आए जा कर खड़ी हो गई.इस बार उन्हें रुकना ही था।

बना रहे बनारस पर फ़ौजिया रियाज लि्खती है--नि:वस्त्र होता न्याय---कहते हैं शरीर नश्वर है, इसे मिट जाना है. शरीर पर लगे घाव भर जाते हैं. वहीं आत्मा को पहुंची चोट के निशान हमेशा उभरे रहते हैं. सभी धार्मिक ग्रंथों का यही मानना है कि आत्मा को दूषित होने से बचाया जाये, किसी के शरीर पर चोट करने से ज़्यादा क्रूर है किसी की आत्मा पर वार करना. पर चूँकि समाज अपने अनुसार हर महान विचार के साथ फ़ेर बदल करता रहा है तो ये कोई अनोखी बात नहीं कि नि:वस्त्र हो विरोध प्रदर्शन करती औरत को मानसिक रूप से असंतुलित बताया जाये. 

पिछ्ले दिनों मनिपुर में असम राइफ़ल्स के जवानों द्वारा एक लड़की का बलात्कार और फिर उसे उग्रवादी बताकर हत्या कर देने का मामला सामने आया था. इस घटना पर कुछ युवतियों ने कपडे फेंक कर असम राइफ़ल कार्यालय के सामने प्रदर्शन किया था. गुस्से में नारे लगाती युवतियों को वहां से हटाने में सेना को बड़ी मशक्कत हुई थी. आप किसी को अकेले में निःवस्त्र कर उसका बलात्कार कर उसकी हत्या करते हैं तो ये अपने आप में पूरी नारी जाति को निःवस्त्र कर उसकी हत्या करना होगा. 

ताऊ के घर  भोस बाबू वसूली के लिए आए और ताऊ भाग लिए--पढिए आगे मेरी कहानी में क्या नजारा है। ऋतुराज वसन्त भी रिश्वत लेते पकड़े गये अब जेल में हें इनके साथ भी कांग्रेस की मनमोहनी मजबूरी है। बस यह अंतिम प्रयास हो लेकिन जिसके घर में , कदम पड़ते ही देखिए मनुष्य कि स्मृति लौट आए और कहने लगे तुसी बस करो पाजी, अब और न बनाओ !। एक दिन तो दे्श की जनता को होश में आना ही पड़ेगा। नहीं तो बहुत देर हो जाएगी। मंहगाई डायन सब चट कर जाएगी। गरीबी मुंह ताकते  रह जाएगी। फ़िर कभी बसंत नहीं आएगा।

शिवम बाबु बता रहे हैं सौ साल का हो जायेगा एयरमेल चलो एयर मेल को भी निर्वाण के कगार पर पहुंचने के लिए बधाई दे देते हैं। वैसे भी दिन में 10-20 जगह तो दे ही आते हैं। कौन सा बधाई का खजाना रीत जाएगा। रश्मि रविजा पूछ रही हैं - टी.वी. देखना....महिलाओं का शौक या मजबूरी अब इसके विषय में श्रीमती से पूछ कर बताएगें तब तक आप अपनी, उनकी, सबकी बातें सुनिए।सोनिया बीबी को समझाओ मजबूर नहीं मजबूत प्रधानमंत्री लाओ, अरे! कोई तो ये बात सोनिया को समझाओ। काजल कुमार जी ने एक विरोध पोस्ट लिखी है। समझ लीजिए कितने गुस्से में है, एक कार्टुनिस्ट जब पोस्ट लिखने लग जाए।

एक पुरातत्ववेत्ता की डायरी  में लिख रहे हैं शरद कोकास आम पाठकों तक क्यों नहीं पहुँच पा रहा है ब्लॉग जगत ? पंहुचना तो चाहिए, रास्ता भी बताईए। अगर नहीं मालूम तो रविन्द्र प्रभात जी ने बता ही दिया है। अमल करके देखिए। मुझे प्यार नहीं चाहिए तुमने मुझे याद किया. मुझे बेहद खुशी हुई. कितना अच्छा है यह अहसास कि हम अपना श्रेष्ठतम यानी अपना मन दूसरे को देते हैं. उसे, जो हमें अच्छा लगता है. बदले में उसका मन लेते हैं. ऐसा लगे, कोई ख़्वाब अधूरा रह गया हो !!तन, मन, ह्रदय, आकर्षण, समर्पण सच ! सब मिल कर खिले है प्रेम-पुष्प ! ... लाख समझाने पर भी कोई मानता कहाँ है तेज भागे, सड़क पर यमदूत से जा भिड़े !

 

अब चलते हैं, वार्ता को देते हैं अल्प विराम, मिलते हैं ब्रेक के बाद, तब तक  कुंभ लग्‍नवालों से मिलिए।

8 टिप्पणियाँ:

सुबह की से एकाएक ज़बरज़स्त वार्ता मिली
वाह

bhai jana rituraaj apne milne vale hen unki rishvt ki baat pliz sbko mt btaao . akhtar khan akela kota rajsthan

ललित दादा ... आज की वार्ता भी मस्त रही ... मेरी पोस्ट को शामिल करने के लिए आपका बहुत बहुत आभार !

कार्टून जान हैं आज की वार्ता के ..बढ़िया वार्ता.

ताऊ के घर भोस बाबू वसूली के लिए आए और ताऊ भाग लिए--पढिए आगे मेरी कहानी में क्या नजारा है। ऋतुराज वसन्त भी रिश्वत लेते पकड़े गये अब जेल में हें इनके साथ भी कांग्रेस की मनमोहनी मजबूरी है। बस यह अंतिम प्रयास हो लेकिन जिसके घर में , कदम पड़ते ही देखिए मनुष्य कि स्मृति लौट आए और कहने लगे तुसी बस करो पाजी, अब और न बनाओ !। एक दिन तो दे्श की जनता को होश में आना ही पड़ेगा। नहीं तो बहुत देर हो जाएगी। मंहगाई डायन सब चट कर जाएगी। गरीबी मुंह ताकते रह जाएगी। फ़िर कभी बसंत नहीं आएगा।

बड़े ही लगन और खूबसूरती से जोड़ा है , आभार !

बहुत सुंदर चर्चा जी राम राम

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