शुक्रवार, 11 फ़रवरी 2011

पिघलता अस्तित्‍व ..नगमें कुछ जिंदगानी के ..ब्‍लॉग4वार्ता .. संगीता पुरी

आप पाठकों को संगीता पुरी का नमस्‍कारएरो इंडिया 2011 के दूसरे दिन टाटा समूह के चेयरमैन रतन टाटा पर सभी की निगाह टिकी रहीं। भारतीय उद्योग जगत की इस दिग्गज शख्सियत ने आज बोइंग के एफ/ए-18 की सवारी करके सभी को हैरत में डाल दिया। इससे पहले वर्ष 2007 में भी रतन टाटा लड़ाकू विमान की सवारी कर चुके हैं।
एफ-18 की सवारी के बाद टाटा ने कहा, 'फाल्कन की तुलना में एफ-18 उड़ान में अधिक समय लेता है।' टाटा ने कहा, 'हमने हवा में कुछ कलाबाजियां भी खाईं और काफी ऊंचाई तक गए। मैं दुबारा इसकी सवारी करना पसंद करूंगा।' इस जहाज के पायलट माइक वालेस थे।

रतन टाटा को विमानों के प्रेमी के रूप में जाना जाता है और वह एरो इंडिया शो में आते रहते हैं। 2007 में उन्होंने वहां पर एफ-16 एवं एफ-18 की सवारी भी की थी। बॉलीवुड अभिनेता शाहिद कपूर संभवत: शनिवार को एरो इंडिया शो में लॉकहीड मार्टिन के एफ-16 विमान में उड़ान भरेंगे। इस खबर के बाद कुछ नए चिट्ठों की वार्ता ....









माँ ,




 वह सेतु है,
जिस पर चढ़ कर
बच्चे  विपत्तियों के सागर
पार कर जाते हैं औ'
माँ उनकी सलामती के लिए
ईश्वर से दुआ और सिर्फ दुआ माँगा करती है.
माँ वह सीढ़ी है,
जिस पर चढ़ कर
उसके बच्चे 
जमीन से आसमां तक 
चलते चले जाते हैं.


'समस्या पूर्ति' बहुत पुराना रिवाज रहा है हमारे देशी साहित्य का| इसके अनुसार, कवियों को किसी एक छंद की कोई एक पंक्ति दे दी जाती है और उस पर छंद आमंत्रित किए जाते हैं| कभी कभी कोई एक 'शब्द' दे दिया जाता है और उस पर कवियों को उन के मन के मुताबिक छंद प्रस्तुत करने की प्रार्थना की जाती है|
इसपर आधारित ब्‍लॉग लेकर उपस्थित है हमारे समक्ष नवीन सी चतुर्वेदी जी ....

भाई मृत्युंजय जी ने ब्रज से जुड़ी चौपाइयाँ भेजी हैं| उन से संपर्क न हो पाने के कारण, उन के बारे में विवरण देना सम्‍भव नहीं हो पा रहा| आप लोग उन के ब्लॉगhttp://mrityubodh.blogspot.com/ पर उन से मिल सकते हैं| तो आइए पढ़ते हैं उनकी चौपाइयाँ|




श्याम वर्ण, माथे पर टोपी|
नाचत रुन-झुन रुन-झुन गोपी|
हरित वस्त्र आभूषण पूरा|
ज्यों लड्डू पर छिटका बूरा|१|


HINDI IN AUSTRALIA WITH REKHA में पढिए 'पिघलता अस्तित्‍व ......

कंगारूओं के देश में




कभी-कभी
अस्तित्व पिघलता है
फूलों पर जमी
ओस की तरह
अलस्सुबह टपकता है ।

कन्धों पर उठा लेती हूँ मैं
गुज़रे हुए वक़्त की नदी
नदी के कच्चे किनारे
और नदी के किनारे उगा हुआ
पुराना विशाल बरगद ।
प्रयास करती हूँ निरर्थक
रोकने का उस सुनामी को







निसार मैं तेरी गलियों के ऐ वतन केः जहाँ
चली है रस्म केः कोई न सर उठाके चले
जो कोई चाहने वाला तवाफ को निकले
नजर चुरा के चले वो जिस्म-ओ-जाँ बचा के चले

आज मुल्क की हालत कमोबेश ऐसी ही है, जैसा फैज अपनी इस नज्म में बयान कर रहे हैं। करीब साठ साल पहले हमने संविधान लागू किया था। उसके कुछ मूलभूत आधार तय किये गये थे। लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता तथा समाजवाद की राह पर चलने का वायदा तथा इसी राह पर चलकर समतामूलक समाज बनाना लक्ष्य था। परन्तु इस संविधान में ऐसे भी कानून मौजूद थे तथा आजादी के बाद के सŸााधारियों ने लगातार ऐसे कानून बनाते चले गये जो हमारे लोकतंत्र की राह को तंग करने वाले थे। 


गर आओ तो आ जाना




मेरी मौत का जनाजा उठने से पहले
कर देना अर्पित मेरी अर्थी पर
अपने ही कोमल कर कमलों से
यह खुशबू में लहलहाते पुष्प
दे देना अर्थी को कांधा
गर याद कभी आ जाये तब


नहीं तेरे कदम मेरी बिंदिया से कम
नहीं तेरी सांसे मेरी धडकनों से कम
नहीं तेरे ज़ज्बे मेरी सोच से कम
नहीं तेरी निगाहें मेरे नयनो से कम
अब साथ तपन की लौ बन जाने दे !


एक प्यारी सी गुडिया थी तू मेरी




हर पल में इठलाती मुशकुराती गुडिया थी तू मेरी
हर इंसानी रिश्तो से ऊपर मेरी प्यारी गुडिया थी तू मेरी
हर इंसानी रिश्तो से ऊपर दुलारी गुडिया थी तू मेरी
हाँ एक प्यारी गुडिया थी तू मेरी

जब जब तू मुशकुराती
हर रोज़ एक नए नाम से बुलाती थी
नखरो से भरे इठलाती थी
हर दर्द मैं भूल जाता था
तेरे बचपने में मैं भी बच्चा बन जाता था
तेरे संग मैं भी गुनगुनाता था

प्यार एक खूबसूरत बंधन है जो जिंदगी के हर मोड़ पर साथ निभाने का भरोसा दिलाती है। प्यार विश्वास का वो रास्ता है जिस पर जिंदगी का सफ़र आप अपने साथी के साथ आँख मूंद कर भी तय करना चाहते हैं। पर यह प्यार आज के ज़माने का न होकर पिताजी के ज़माने का हो गया है। आज के प्यार में वो सादगी और सच्चाई नहीं रही। आज तो मोहब्बत बाजारू नज़र आती है।
जानती हो न जाने क्यूँ आज भी कभी कभी बिन कहे तुम्हारी यादें मेरे मन को झकझोरने लगती है और न चाहते हुए भी मुझे अपने साथ घुमा लाती है,उन बीतें पलों में जो हमारे प्यार का बड़ा ही दिलकश अतीत था।फिर मै कही बैठा बैठा सोचने लगता हूँ तुम और तुम्हारे प्यार के बारे में।तुम्हारी केशुएँ मेरा सारा चेहरा ढ़ँक देती है,और उनकी भींगी भींगी खुशबु मेरे पूरे जेहन में एक गजब सा रोमांच पैदा करने लगती है।तुम्हारे हँसी की वो खनक मेरे कानों में किसी मंत्रमुग्ध संगीत सा बजने लगती है और तुम्हारा स्पर्श मुझे एहसास कराता है मेरे स्वयं के होने का।

आज मैं एक ऐसे विषय पर लिखने जा रहा हूं जिस पर यदि अमल कर लिया जाए तो भूकंप जैसी त्रासदी को नियंत्रित किया जा सकता है। मैं बात कर रहा हूं उस झटके की जिसने हम सभी को हिलाकर रख दिया था...फिजिकली भी और दिमाग़ी तौर पर भी... 






मैं आफिस से 18 जनवरी की रात को चलकर तक़रीबन 1.30 बजे घर पहुंचा...हाथ पैर धोकर सोने जा ही रहा था कि ऊपर पंखा झूलने लगा। नीचे बैड हिलने लगा। सभी को घबराहट में जगाया। मैं खुद भी  घबराया हुआ था। अक्सर देखा गया है कि एक बड़े भूकंप के कुछ देर बाद भूकंप का दूसरा झटका भी आता है....लेकिन ऐसा हुआ नहीं।


मृदु भावों के अंगूरों की आज बना लाया हाला,




प्रियतम, अपने ही हाथों से आज पिलाऊँगा प्याला,
पहले भोग लगा लूँ तेरा फिर प्रसाद जग पाएगा,
सबसे पहले तेरा स्वागत करती मेरी मधुशाला।।१।
प्यास तुझे तो, विश्व तपाकर पूर्ण निकालूँगा हाला,
एक पाँव से साकी बनकर नाचूँगा लेकर प्याला,
जीवन की मधुता तो तेरे ऊपर कब का वार चुका,
आज निछावर कर दूँगा मैं तुझ पर जग की मधुशाला।।२।
प्रियतम, तू मेरी हाला है, मैं तेरा प्यासा प्याला,
अपने को मुझमें भरकर तू बनता है पीनेवाला,
मैं तुझको छक छलका करता, मस्त मुझे पी तू होता,
एक दूसरे की हम दोनों आज परस्पर मधुशाला।।३।
भावुकता अंगूर लता से खींच कल्पना की हाला,
कवि साकी बनकर आया है भरकर कविता का प्याला,
कभी न कण-भर खाली होगा लाख पिएँ, दो लाख पिएँ!
पाठकगण हैं पीनेवाले, पुस्तक मेरी मधुशाला।।४।

11 टिप्पणियाँ:

इस बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।

अपने ब्लॉग का लोगो बनाये
http://mayankaircel.blogspot.com/2011/02/blog-post_09.html

बहुत सुन्दर वार्ता!

नमस्कार संगीता जी........बहुत ही सुंदर है आज की वार्ता...मै आपका तहे दिल से शुक्रगुजार हूँ,कि आपने मेरी रचना "गुजरा हुआ अनोखा एहसास" को यहाँ स्थान दिया.......धन्यवाद।

संगीता दीदी, आपकी महेनत को सलाम नए चिट्ठो का खूब बढ़िया स्वागत किया आपने ... आभार !

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