मित्रों आप सभी को देव बाबू की राम राम,
आज बस स्टाप पर दो लोगों की बात सुनी... सुन कर मन हैरान हो गया... और हिन्दुस्तानियों की सोच पर दांतों तले ऊँगली दबाने का मन हुआ... बोले तो मेरा भारत महान वाली फीलिंग उमड़ उमड़ कर आ रही थी.... दोनों लोग शक्ल से मजदूर कटेगरी के प्रतीत हो रहे थे.... उनमे से एक एकदम मरियल और मर-सिड्डे सा लग रहा था... तम्बाकू और बीडी पीने से उसकी हालत टी बी के मरीज जैसी लग रही थी.... वैसे उनकी बात चीत का मुद्दा था काला-पैसा.... दोनों ही लोग अखबार पढ़ रहे थे और साथ ही साथ सरकार को भी गरिया रहे थे.... उनमे से जो थोडा ठीक ठाक लग रहा था, उसने कहा की सारा वित्तीय लेन देन एकाउंट से एकाउंट होना चाहिए... वैसे तो दो मिनट की उनकी बातचीत (जो मैं सुन पाया) से मेरे मन में एक ही बात आ रही थी की मजदूर वर्ग भी आज कल जागरूक है... त्रस्त है.... काला पैसा.... काला धन.... वापस लाओ... इस काले पैसे को हिंदुस्तान के विकास में लगाओ.... मगर क्या आपको नहीं लगता की इसके पीछे होने वाली सरकारी कोशिशें नाकाफी हैं... "भारतीय गरीब है लेकिन भारत देश कभी गरीब नहीं रहा" ये कहना है स्विस बैंक के डाइरेक्टर का.... कम से कम इस दिशा में आज कल जो जागरूकता आई है उसके लिए मीडिया और सूचना तंत्र बहुत हद तक बधाई के पात्र हैं |
वैसे कहने को तो कुछ सरकारी कोशिशें भी हैं... जो केवल मीडिया की वजह से बाहर आयीं है.... अभी तक स्विस बैंक में काला धन रखनेवाले 18 में से 17 को नोटिस, एक तो भैया निपट लिया.... तो आशा है कानून अपना काम करेगा... और इस मामले में लीपापोती के आगे भी कुछ कार्यवाही होगी....
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चलिए आगे बढ़ते हैं और आज की वार्ता से आपको रूबरू करते हैं....
घर पर पॉपकार्न केवल कैटल कॉर्न :- शुरुआत ही भोजन से...
ओ तुझको चलना होगा...खुशदीप :- जी बिल्कुल...
कि ऐसे ज़ख्म से रिसता क्या है :- भावनाओं की उहापोह...
एयरटेल की नयी सुविधा एयरटेल मनी :- सही है भाई, अब मोबाईल शापिंग माल बन जाएगा.. देखते जाईए..
लीजिए भाई नन्हे कार्तिक को देखिए अपनें साथियों के संग डांस करते हुए.... भई वाह...
कभी-कभी विषय बदलकर पोस्ट लिखा करें :- बिलकुल सही जी... कुछ ऐसे ब्लोग्स को भी जानिए जो लम्बे समय से अप-डेटेड नहीं हैं...
पैसा रिश्तों में दरार नहीं डालता। पैसा तो असली रिश्तों की पहचान कराता है। अगर कोई आपके पैसे खा जाए तो समझ लीजिए कि वह आपका असली दोस्त कभी नहीं था। बस हेलो- हाय, बाय-बाय था। वैसे कहा बिलकुल सही है.... अपनी अपनी सोच है... मगर मेरा अनुभव तो बिलकुल ऐसा ही है भाई....
प्रायश्चित :- बहुत अच्छी लघु-कथा...
एक अकेली और उदास लड़की की ब्लॉग कथा :- रोचक लघु कथा....
और चलते चलते कुछ बातें कविता के बारे में – पहला भाग :- शिवराम :- रवि भैया, भाग-२ का इंतज़ार रहेगा...
तो फिर आज की वार्ता यही तक... फिर मिलेंगे...
जय हिंद
देव कुमार झा
5 टिप्पणियाँ:
अच्छी चर्चा,अच्छे लिंक,आभार.
बढिया वार्ता के लिए आभार
बहुत बढ़िया वार्ता लगाई है, देव भाई ... एक दम सही लिखे हो कि मजदूर वर्ग भी आज कल जागरूक है ... पर सरकार सोयी है क्या करें ... एक शेर याद आ रहा है ...
"मुझ से मेरे दिल की कहानी मत पूछ ऐ हमदम ... इस में कुछ पर्दा नशीनो के भी नाम आते है !"
सरकार भी कुछ इस तरह ही कहती है कि हम से घोटालो कि कहानी मत पूछ ऐ जनता ... इस में हमारे सालों के भी नाम आते है !
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सही कहा जी हमारा देश गरीब नही इन उल्लू के पट्टो ने हमारा हक मार मार कर विदेशो मै जमा कर लिया हे, लेकिन यह भी मरेगे सुयर की मोत ही, बहुत सुंदर चर्चा. राम राम
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