आप सबों को संगीता पुरी का नमस्कार , शारदीय नवरात्र इस बार आठ दिन का ही होगा। इस मौके पर घर-घर में शुभ मुहूर्त में घट स्थापना के साथ देवी मा दुर्गा की आराधना की जाएगी। पंडितों के अनुसार घट स्थापना का सर्वश्रेष्ठ समय सुबह 6.22 से 7.50 बजे तक रहेगा। 28 सितंबर को घटस्थापना के साथ नवरात्र की शुरुआत होगी ,नवरात्र की पहली तिथि प्रतिप्रदा दोपहर 12.47 बजे तक ही रहेगी। इसके बाद द्वितीया प्रारंभ हो जाएगी, जो गुरुवार को सुबह नौ बजे तक रहेगी, फिर तृतीया प्रारंभ हो जाएगी। इस कारण दूसरे दिन नवरात्र की द्वितीया और तृतीय एक साथ मनाई जाएगी , क्यूंकि तृतीया तिथि का क्षय हो रहा है। पांच अक्टूबर को नवमी के साथ यह महोत्सव विराम लेगा। नवरात्र के मौके पर शक्तिस्वरूपा मां दुर्गा की पूजा अर्चना पर पिछले कुछ वर्षों में हिंदी ब्लोगरों ने बहुत कुछ लिखा है , आज कुछ पुराने लिंकों पर आपको लिए चलती हूं ....
गणेशोत्सव के बाद नौ दिन तक चलने वाला शक्ति और भक्ति का
अनुपम उत्सव दुर्गोत्सव सर्वाधिक धूम-धाम से मनाया जाने वाला उत्सव है। अकेले मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में दुर्गा उत्सव के अवसर पर लगभग डेढ़ हजार स्थानों पर माँ दुर्गा की भव्य प्रतिमाएं आकर्षक साज-सज्जा के साथ स्थापित की जाती हैं। वहीँ दुर्गा मंदिरों में नौ दिन तक माता रानी की अखंड ज्योत जलाकर पूजा अर्चना, हवनादि होता रहता है। नवरात्र उत्सव का विशेष आकर्षण भव्यतम झाँकियाँ जो पौराणिक गाथाओं के साथ-साथ सामयिक सामाजिक व्यवस्थाओं को प्रदर्शित कर नव जागरण का सन्देश देती हैं, सभी जाति, धर्म सम्प्रदाय के लोगों को समान रूप से आकृष्ट करती है। शाम ढलते ही माँ दुर्गे की भव्य प्रतिमाओं और आकर्षक झाँकियों के दर्शन के लिए जन समूह एक साथ उमड़ पड़ता है। जगह-जगह नौ दिन तक हर दिन मेला लगा रहता है।
असुरो के अत्याचारों से देवता बड़े दुखी त्रसित थे. देवताओं को ब्रम्हा जी ने बताया की असुरराज की मृत्यु किसी कुँआरी कन्या के हाथो से होगी . समस्त देवताओं के शक्ति तेज प्रताप से जगतजननी की उत्पत्ति हुई. देवी का मुख भगवान शंकर के तेज से हुआ . यमराज के तेज से मस्तक और केश, विष्णु के तेज से भुजाये, चंद्रमा के तेज से स्तन, इन्द्र के तेज से कमर और वरुण के तेज से जंघा पृथ्वी के तेज से नितम्ब, ब्रम्हा के तेज से चरण, सूर्य के तेज से दोनों पोरों की अंगुलियां, प्रजापति के तेज से दांत, अग्नि के तेज से दोनों नेत्र, संध्या के तेज से भौहे, वायु के तेज से कान और देवताओं के तेज से देवी के भिन्न भिन्न अंग बने.
आश्विन शुक्ल प्रतिपदा अर्थात नवरात्री का पहला दिन। इसी दिन से ही आश्विनी नवरात्र का प्रारंभ होता हैं। जो अश्विन शुक्ल नवमी को समाप्त होते हैं, इन नौ दिनों देवि दुर्गा की विशेष आराधना करने का विधान हमारे शास्त्रो में बताया गया हैं। परंतु इस वर्ष तृतिया तिथी का क्षय होने के कारण नवरात्र नौ दिन की जगह आठ दिनो के होंगे। GURUTVA KARYALAY, GURUTVA JYOTISH,पारंपरिक पद्धति के अनुशास नवरात्रि के पहले दिन घट अर्थात कलश की स्थापना करने का विधान हैं। इस कलश में ज्वारे(अर्थात जौ और गेहूं ) बोया जाता है। GURUTVA KARYALAY, GURUTVA JYOTISH,
सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करने के लिए
नवरात्र के पावन पर्व में पूजी जाने वाली नौ दुर्गाओं में सर्व प्रथम भगवती शैलपुत्री का नाम आता है। पर्व के पहले दिन बैल पर सवार भगवती मां के पूजन-अर्चना का विधान है। मां के दाहिने हाथ में कमल पुष्प सुशोभित है। अपने पूर्वजन्म में ये दक्ष प्रजापति की कन्या के रूप में पैदा हुई थीं। उस समय इनका नाम सती रखा गया। इनका विवाह शंकर जी से हुआ था। शैलपुत्री देवी समस्त शक्तियों की स्वामिनी हैं। योगी और साधकजन नवरात्र के पहले दिन अपने मन को मूलाधार चक्र में स्थित करते हैं और योग साधना का यहीं से प्रारंभ होना कहा गया है।
नवरात्र एक हिंदू पर्व है। नवरात्र संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ होता है नौ रातें । यह पर्व साल में दो बार आता है। एक शरद नवरात्रि, दूसरा है बसन्त नवरात्रि। नवरात्रि के नौ रातो में तीन हिंदू देवियों - पार्वती, लक्ष्मी और सरस्वती के नौ स्वरुपों की पूजा होती है जिन्हे नवदुर्गा कहते हैं । शक्ति की उपासना का पर्व शारदेय नवरात्र प्रतिपदा से नवमी तक निश्चित नौ तिथि, नौ नक्षत्र, नौ शक्तियों की नवधा भक्ति के साथ सनातन काल से मनाया जा रहा है। सर्वप्रथम श्रीरामचंद्रजी ने इस शारदीय नवरात्रि पूजा का प्रारंभ समुद्र तट पर किया था और उसके बाद दसवें दिन लंका विजय के लिए प्रस्थान किया और विजय प्राप्त की । तब से असत्य पर सत्य और अधर्म पर धर्म की जीत का पर्व दशहरा मनाया जाने लगा। आदिशक्ति के हर रूप की नवरात्र के नौ दिनों में क्रमशः अलग-अलग पूजा की जाती है। माँ दुर्गा की नौवीं शक्ति का नाम सिद्धिदात्री है। ये सभी प्रकार की सिद्धियाँ देने वाली हैं। इनका वाहन सिंह है और कमल पुष्प पर ही आसीन होती हैं । नवरात्रि के नौवें दिन इनकी उपासना की जाती है।
शारदीय नवरात्र के पहले दिन घट स्थापन कर दुर्गा की प्रतिमा की स्थापना की जाती है और भक्त पूरे नौ दिन व्रत और दुर्गा सप्तशती का पाठ करते हैं। पूरे नवरात्र अखंड दीप जलाकर माँ की स्तुति की जाती है और उपवास रखा जाता है। नवरात्र के अंतिम दिन कन्याओं को भोजन कराकर यथेष्ट दक्षिणा देकर व्रत की समाप्ति की जाती है। साल में नवरात्र दो बार आते हैं। चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा से शुरू होने वाले नौ दिवसीय पर्व को वासंतिक नवरात्र कहा जाता है। नवरात्र में भगवती के नौ रूपों की पूजा-आराधना का विधान है। इन नव दुर्गाओं के स्वरूप की चर्चा करते हुए ब्रह्मा जी द्वारा महर्षि मार्कण्डेय के लिये इस क्रम में रचा है।
प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।
तृतीयं चन्द्रघंटेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम् ।।
पंचमं स्क्न्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च ।
सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम् ।।
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गाः प्रकीर्तिताः ।।
नवरात्रि अर्थात नौ पावन, दुर्लभ,दिव्य व शुभ रातें । नवरात्रि संस्कृत शब्द है | मुख्यत: यह पर्व वर्ष में दो बार मनाया जाता है। शक्ति की उपासना का पर्व शारदिय नवरात्र प्रतिपदा से नवमी तक निश्चित नौ तिथि, नौ नक्षत्र, नौ शक्तियों की नवधा भक्ति के साथ सनातन काल से मनाया जाता रहा है। शास्त्र का मत है " कलि चण्डी विनायको " अर्थात कलयुग में माँ चंडी अर्थात दुर्गा और विनायक अर्थात विघ्न विनाशक भगवान गणेश जी का सबसे जादा प्रभाव है | इस कारन नवरात्री का महात्यम और विशेष हो जाता है | शास्त्रानुसार यह पर्व वर्ष में चार बार आता है, शाक्त ग्रंथो के अनुसार वर्ष में पड़ने वाली चार नवरात्रियाँ वासंतिक, आषाढ़ीय, शारदीय, माघीय है । जिनमे से दो ज्यादा प्रचलित,प्रभावी व लाभकारी है, एक है शारदीय नवरात्रि, दूसरा है चैत्रीय अर्थात वासन्तिक नवरात्रि । बाकि दो को गुप्त नवरात्र कहते है, क्यूंकि उनका विधान या उनकी जानकारी या प्रचलन आम जनमानस में कम ही है जिस कारण यह "गुप्त" कहा गया है | इसी आधार पर शाक्ततंत्रों ने तुला संक्रांति के आस पास से आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से शारदीय नवरात्रि और हिन्दू वर्ष के आरम्भ में मेष संक्रांति के आस पास अर्थात चैत्र माह के शुक्ल पक्ष के प्रथम दिवस से वासन्तिक नवरात्रि मनाई जाती है
नवरात्र- नौ दिनों तक
देवी उपासना का महापर्व है। गांव और शहरों में जगह जगह शक्ति स्वरूपा मां दुर्गा की आकर्षक प्रतिमा भव्य पंडालों में स्थापित कर उसकी पूजा-अर्चना की जाती है। ग्राम देवी, देवी मंदिरों और ठाकुरदिया में जवारा बोई जाती है, मनोकामना ज्योति प्रज्वलित की जाती है .. हजारों लीटर तेल और घी इसमें खप जाता है। लोगों का विश्वास है कि मनोकामना ज्योति जलाने से उनकी कामना पूरी होती है और उन्हें मानसिक शांति मिलती है। इस अवसर पर देवी मंदिरों तक आने-आने के लिए विशेष बस और ट्रेन चलायी जाती है। इसके बावजूद दर्शनार्थियों की अपार भीड़ सम्हाले नहीं सम्हलता, मेला जैसा दृश्य होता है। कहीं कहीं नवरात्र मेला लगता है। गांव में तो नौ दिनों तक धार्मिक उत्सव का माहौल होता है।
इस व्रत में
उपवास या फलाहार आदि का कोई विशेष नियम नहीं। प्रातः काल उठकर स्नान करके, मन्दिर में जाकर या घर पर ही नवरात्रों में दुर्गा जी का ध्यान करके यह कथा पढ़नी चाहिए। कन्याओं के लिए यह व्रत विशेष फलदायक है। श्री जगदम्बा की कृपा से सब विघ्न दूर होते हैं। कथा के अन्त में बारम्बार ‘दुर्गा माता तेरी सदा ही जय हो’ का उच्चारण करें।
आज से नवरात्र शुरू हो रहा है -
शक्ति पूजा का एक बड़ा अनुष्ठान ! मेरे मन में एक सवाल उमड़ घुमड़ रहा है जिसे मैं आप के साथ बाँटना चाह रहा हूँ -देवी दुर्गा को कहीं तो बाघ और कहीं शेर पर आरूढ़ दिखाया गया है -सबको पता है है कि ये दोनों अलग अलग प्राणी हैं -सभी देवी देवताओं का अपना अलग अलग एक निश्चित वाहन है .इन्द्र का ऐरावत हाथी ,यमराज का भैंसा ,शिव का नंदी ,विष्णु का गरुण ,आदि आदि अरे हाँ पार्वती का व्याघ्र या पति के साथ वे नंदी को भी कृत्य कृत्य करती हैं .वैसे तो मां पार्वती के परिवार में कई वाहन हैं मगर वे चूहे को छोड़ सभी पर ,नंदी-वृषभ ,बाघ और मोर पर भ्रमण करती देखी गयीं हैं .क्या पार्वती का वाहन बाघ और माँ दुर्गा का वाहन शेर है -दुर्गा जी क्या सचमुच शेरावालिये हैं ! मामला पेंचीदा है तो आईये इस मामले की थोड़ी पड़ताल कर लें क्योंकि आज से नवरात्र की पूजा शुरू हो रही है और हमें अपनी अधिष्टात्री के स्वरुप ध्यान के लिए इस गुत्थी को सुलझाना ही होगा ।
किशोरावस्था में
नवरात्र और दशहरा एक उल्लास भरा त्योहार था। दादा जी नगर के एक बड़े मंदिर के पुजारी थे। दादा जी के साथ मैं मन्दिर पर ही रहता था। दादा जी की दिनचर्या सुबह चार बजे प्रारंभ होती थी। वे उठते मंदिर बुहारते, कुएँ से पानी लाते, स्नान करते, मंदिर की सुबह की पूजा श्रंगार होता। फिर बारह बजे तक दर्शनार्थी आते रहते। वे साढ़े बारह बजे मंदिर से फुरसत पाते। फिर स्नान कर दुर्गा सप्तशती का पाठ करते। नौ दिनों तक अपना भोजन स्वयं बनाते और एक समय खाते। हमारे लिए वे कोई पवित्र अनुष्ठान कर रहे होते। शाम को तीन बजे से फिर मंदिर खुल जाता। रात नौ बजे तक वे वहीं रहते। नवरात्र के नौ दिन वे मंदिर से बाहर भी नहीं जाते। मैं ने उन से पूछा आप का इतना कठोर सात्विक जीवन है। आखिर वे इतना कठोर अनुष्ठान क्यों करते है?
शारीरिक शुद्धि के लिए आयुर्वेद में प्रत्येक छह माह या दो प्रमुख मौसमों- गर्मी व सर्दी के बाद पंचकर्म कराने की सलाह दी जाती है। इसके लिए मार्च-अप्रैल व सितंबर-अक्टूबर के महीने बेहतर माने जाते हैं। शारीरिक शुद्धि का एक आसान स्वरूप हमें नवरात्र में देखने को मिलता है, जब लोग उपवास रखते हैं। यह महज एक संयोग नहीं है कि नवरात्र का उपवास ठीक उसी समय आता है, शारीरिक शुद्धि के लिए जिस समय की अनुशंसा आयुर्वेद भी करता है। नवरात्र का अर्थ है- नौ पवित्र रातें। चंद्र पंचांग के अनुसार ये नौ रातें चैत्र (मार्च-अप्रैल के मध्य) तथा आश्विन (सितंबर-अक्टूबर के मध्य) शुक्ल पक्ष की आरंभिक नौ रातें होती हैं। नवरात्र में शक्ति की देवी (मां दुर्गा) के नौ अलग-अलग स्वरूपों की आराधना की जाती है।
अपनी
नौकरी के सिलसिले में जब मैं मुम्बई में था तो नवरात्र के समय एक रोचक तथ्य देखने को मिला। नवरात्र के दिनों में महिलाएं हर रोज़ एक ही रंग के कपड़ों में दिखाई देतीं - एक दिन हरा, तो एक दिन पीला...नीला ..! तब तो मुझे इसकी विशेषता का पता नहीं था।
नौ दिन देवी को अर्घ्य चढाया
कन्या के पग पखार माथे तिलक लगाया
धार्मिक ग्रंथों में कन्या को देवी माना है
मातृशक्ति की आराधना के पर्व नवरात्रि में कन्याओं को भगवती का शुद्धत्तम रूप मानने और पूजने का चलन है। इसे उत्साह और उमंग से पूरा भी किया जाता है, लेकिन व्यवहार में कन्याओं के प्रति कुछ अलग ही नजरिया है। नवरात्र प्रारंभ हो गए हैं। आज दूसरा दिन है। इन दिनों देवियों की पूजा की जाती है। खासतौर पर शक्तिरूपिणी दुर्गा की। शक्ति के विभिन्न रूपों की आराधना करते हुए दुर्गा सप्तशती का जो स्तोत्र इन दिनों पढ़ा जाता है, उसमें प्रकृति में विद्यमान सभी तत्वों का स्मरण किया जाता है। उन तत्वों में भगवती को देवी और शक्ति के रूप में आराधा जाता है। शक्ति का मूल स्वरूप स्त्री ही है।
नवरात्र चल रहा पुण्यभूमि भारत में.
नारी शक्ति की अराधना उत्कर्ष पर है. एक ऐसे देश में जहाँ शाम ढलने के बाद बाहर निकलने में महिलाओं को डर लगता है.भारत विडंबनाओं और विरोधाभासों का देश है, इसकी सबसे अच्छी मिसाल नवरात्र में देखने को मिलती है जब लोग हाथ जोड़कर माता की प्रतिमा को प्रणाम करते हैं और हाथ खुलते ही पूजा पंडाल की भीड़ का फ़ायदा उठाने में व्यस्त हो जाते हैं.भारत का कमाल हमेशा से यही रहा है कि संदर्भ, आदर्श, दर्शन, विचार, संस्कार सब भुला दो लेकिन प्रतीकों को कभी मत भुलाओ.
गुप्त नवरात्र और तांत्रिक साधनाएं ग्रहण काल, होली, दीपावली, संक्रांति, महाशिवरात्रि आदि पर्व मंत्र-तंत्र और यंत्र साधना सिद्धि के लिए उपयुक्त बताए गए हैं, लेकिन इनमें सबसे उपयुक्त पर्व "गुप्त नवरात्र" है। तांत्रिक सिद्धियां गुप्त नवरात्र में ही सिद्ध की जाती हैं।साल में चार नवरात्र होते हैं। इनमें दो मुख्य नवरात्र- चैत्र शुक्ल और अश्विनी शुक्ल में आते हैं और दो गुप्त नवरात्र आषाढ़ शुक्ल और माघ शुक्ल में होते हैं। इनका क्रम इस तरह होता है- पहला मुख्य नवरात्र चैत्र शुक्ल में, फिर गुप्त नवरात्र। दूसरा मुख्य नवरात्र अश्विनी शुक्ल में फिर गुप्त नवरात्र। वैज्ञानिक दृष्टि से देखें, तो चारों नवरात्रों का संबंध ऋतु परिवर्तन से है। आषाढ़ शुक्ल, 23 जून मंगलवार को गुप्त नवरात्र प्रारंभ हो रहे हैं। मंत्र शास्त्र के अनुसार वेद मंत्रों को ब्राहा ने शक्ति प्रदान की। तांत्रिक प्रयोग को भगवान शिव ने शक्ति संपन्न बनाया है। इसी प्रकार कलियुग में शिव अवतार श्रीशाबर नाथजी ने शाबर मंत्रों को शक्ति प्रदान की। शाबर मंत्र बेजोड़ शब्दों का एक समूह होता है, जो सुनने में अर्थहीन सा प्रतीत होता है। कोई भी मंत्र-तंत्र-यंत्र को सिद्ध करने के लिए गोपनीयता की आवश्यकता होती है।
आश्विन शुक्ल दशमी को मनाया जाने वाला उत्सव, जिसे विजय-दशमी या दशहरा के नाम से जाना जाता है, लोकमानस में रावण-वध से संबद्ध है। यही संबंध पौराणिक साहित्य में भी प्राय: सर्वत्र ही उल्लिखित है। मोटे तौर पर, कहानी यह है कि राम-रावण युद्ध में राम की पराजय हो रही थी, जिसका कारण यह था कि रावण ने शक्तिपूजा के द्वारा कालिका को प्रसन्न करके अपने पक्ष में कर रखा था और जब राम ने इसे जान कर शक्तिपूजा की तो देवी ने प्रकट होकर उन्हें विजय का वरदान दिया, जिसके बाद वे रावण का वध कर सकने में समर्थ हुए। राम की यह आराधना ही आश्विन-नवरात्र के दुर्गा-पूजन के नाम से प्रख्यात है।
अक्टूबर का महीना
त्यौहारों व उल्लास का समय है। चारों तरफ आस्था- पूजा संबंधी आयोजन हो रहे हैं और पूरा समाज भक्तिभाव में डूबा हुआ है। न केवल मंदिरों में बाजारों और मोहल्लों में भी स्थान-स्थान पर नवरात्रों के उपलक्ष्य में दुर्गा, लक्ष्मी व सरस्वती की आराधना से वातावरण चौबीसों घंटे गूंजता है। समाज का लगभग हर व्यक्ति, कुछ कम कुछ ज्यादा इन कार्यक्रमों में हिस्सा लेता है। सामाजिक उल्लास व सार्वजनिक सहभागिता का ऐसा उदाहरण और कहीं मिलता नहीं है। बच्चे, किशोर, युवा, वृद्ध, स्त्री, पुरूष, मजदूर, किसान, व्यापारी, व्यवसायी सभी इन सामाजिक व धार्मिक कार्यों में स्वयं प्रेरणा से जुड़े हैं। इन कार्यक्रमों के आयोजन के लिए और लोगों की सहभागिता के लिए कोई बहुत बड़े विज्ञापन अभियान नहीं चलते, छोटे या बड़े समूह इनका आयोजन करते है और स्वयं ही व्यक्ति और परिवार दर्शन -पूजन के लिए आगे आते हैं। कहीं भी न तो सरकारी हस्तक्षेप है और ना ही प्रशासन का सहयोग। उत्तर से दक्षिण, पूर्व से पश्चिम सभी महानगरों, नगरों और गांवों में धार्मिक अनुष्ठानों की गूंज है।
तन मन धन सब अर्पित करूँ, चरणों मे तेरी ||
हो सबकी इच्छा पूरी ,करूँ हाथ जोड़ ये विनती |
माँ जगजननी कृपा करो, आया मै शरण तेरी ||
आस्था और भक्ति के नाम पर हम पूजा - पाठ करके हवन , यज्ञ की भस्म ,फूल - मालाएं तथा अन्य देवी - देवताओं की मूर्तियां व फोटो आदि सामग्री जो कि यहां - वहां नहीं फेंक सकते उसे नदी व गंगा - यमुना मे डालकर अपनी आस्था की इतिश्री कर लेते हैं । जबकि हमारा यह नासमझी भरा कदम पर्यावरण के साथ - साथ नदियों के पानी को भी जहरीला बना रहा है । सिर्फ यही नहीं पर्यावरण व नदियों के साथ अत्याचार की पराकाष्ठा उस समय और बढ़ जाती है
बहुत दिनों बाद इस वर्ष नवरात्र में गांव का कार्यक्रम बन गया है , 8 अक्तूबर को ही वापस लौटना हो पाएगा , तबतक के लिए विदा लेती हूं .. आप सबों को नवरात्र की बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं !!