ललित शर्मा का नमस्कार, सुनिए सुबह की चाय के साथ दीपक बाबा की बकबक, अर्चना चावजी के स्वर में. हँसते रहो पर कुछ खास है आपके लिए.ये है असल सोशल नेटवर्किंग ......१० सितम्बर विश्व आत्महत्या निषेध दिवस पर १० सितम्बर विश्व आत्महत्या निषेध दिवस के रूप में मनाया जाता है. इस अवसर पर कुछ शेर ..* *सिर्फ अपने वास्ते हो बंदगी अच्छी नहीं जो हमें अंधा करे वो रौशनी अच्छी नहीं* * हर मुसीबत से करेंगे हर घड़ी हम सामना...एक चुटकी नमक - * * समयसे दफ़्तर पहुँचने के इरादेमें शांति की सुबहें काफ़ीहड़बड़ी से गुज़रती हैं।हड़बड़ी की उस अपवित्र नदीमें रोज़-रोज़उतरने से बचने का नया तरीक़ाशांति ने...११ सितम्बर के बहाने ... -न्यू यॉर्क अग्निशमन दस्ता 11 सितम्बर के आतंकवादी आक्रमण की दशाब्दी निकट है। इसी दिन 2001 में हम धारणा, धर्म और विचारधारा के नाम पर निर्दोष हत्याओं के एक दान...
बरसात, भूकंप , विष्फोट और मेट्रो ट्रेन पिछले 4 सितंबर से लगातार बारिश हो रही है . 7 सितंबर की शाम दिल्ली पहुंचा तो वहां मौसम सूखा थ...मरणोपरांत - जीते जी जो मिल जाए वही सब कुछ है , मरने के बाद जो मिला तो क्या ख़ाक मिला। अनेक विद्वानों और कलाकारों को उनके मरने के बाद उनके योगदान के लिए सम्मानित किया जा...एक विचार - *बाद मेरे मरने के....* एक अर्से बाद कल मेरे मुलाकात एक दोस्त से हुई। उसका शरीर कमज़ोर पड़ गया था। हाल पूछने पर उसने कहा,"बस... मौत का इंतेज़ार कर रहा हू...श्याम बेनेगल की चार फिल्में - इच्छा दब ही नहीं, शायद मर भी गई थी। एनसीपीए के फिल्म सेंटर की सदस्यता कानवीनीकरण तो करवा लिया था, पर देखने जाने की इच्छा नहीं होतीथी। प्रभात चित्र मंडल क...
हिडिम्बा - 1 - हमारा कॉलेज एक ऐसे नगर के उद्घाटनी क्षेत्र में था जिसे बम्बई और दिल्ली जैसे महानगरों की तुलना में देहात कहा जा सकता था। आज भी ऐसी ही स्थिति है। समय प्रवाह ...सिगरेट, सिनेमा, सहगल और शराब - 7 - (पिछली पोस्ट से जारी) एक पुराने गीत से नयी मुलाक़ात ये कहकर उन्होंने अपने एक मुलाज़िम को आवाज़ दी तो हुक़्क़ा आ गया। उन्होंने कहा, ‘सज्जाद हुसैन उस्ताद अल... ख़ुदाया … - अंतहीन दोपहर के नम और ऊंघे छोर पर... गुलाबी चोंच, जर्द लिबास वाली गोल्डेन ओरियल की प्रतीक्षा में अपलक,सड़क पार... निहारते हुए, उमसाए जंगलनुमा झुरमुट मे...तरणताल में ध्यानस्थ -तैरना एक स्वस्थ और समुचित व्यायाम है, शरीर के सभी अंगों के लिये। यदि विकल्प हो और समय कम हो तो नियमित आधे घंटे तैरना ही पर्याप्त है शरीर के लिये। पानी में...
सरकारी नपुंसकता त्यागो और गुर्दे का दम-ख़म दिखाओ - क्षमा सहित, उन लोगों से जिन्हें हमारी भाषा इस बार खराब लगे, बुरी लगे। अब बहुत हो गया शालीनता से कहते सुनते, यह भी पता है कि इस आलेख का कोई असर हमारी सरका..."..और वो सयानी हो गई" -बात करते करते, अब वो नहीं लपेटती, कोना चुन्नी का, अपनी उँगलियों में | ना ही कुरेदती है, मिटटी ज़मीं की, पैर के अंगूठे से | आँख भी नहीं मीचती अब, कमर...कुछ तकनीकी अज्ञान और कुछ मन की भटकन .... -कल की पोस्ट करते वक्त कुछ तकनीकी अज्ञान और कुछ मन की भटकन .... सब मिल कर गडमड हो गया.... अपने एक परिचित मित्र के मित्रों की दास्ताँ ने मन बेचैन कर दिया.....करत-करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान... -"नमस्ते अम्मां जी" " कौन? अरे कमला! आओ-आओ" खुद को समेटती हुई कमला, सुधा जी की बग़ल से होती हुई सामने आई और पूरे श्रद्धाभाव से उनकी चरण-वंदना की. " आज इस तरफ...
लेखक भाषा का आदिवासी है - *(१५ फरवरी 2011 को यह वक्तव्य मैंने लिखा था. तकनीकी असुविधाओं के बावजूद इसे आज अपने गाँव में लगा रहा हूँ. साहित्य अकादमी पुरस्कार का यह औपचारिक 'स्वीक... नीतीश जी का बिहार - *घर जाते हुए लगा कि बिहार बदल रहा है. **पटना आने के पहले सुना था कि गांधी सेतु पर मरम्मत चल रहा है और इस कारण से मुजफ्फरपुर जाने वाली सड़क पर जाम लगा करत...पश्मीना बालों में उलझी समय की गर्मी - उत्तरों से भरे इस दौर में अपर्णा भटनागर की कविताओं की प्रश्नाकुलता बेचैन कर देती है. अगर उनमें सुन्दर की सम्भावना है तो समय की खराशें भी हैं, न मे स्तेनो जनपदे, न कर्दयो, न मद्यपो - रेलवे स्टेशन पर ८ से १२ साल के बच्चों का एक समूह घूम रहा था. सभी ने गंदे कपडे पहन रखे थे और उनके हाथ में रुमाल के साइज का एक कपडा था. जिसे वे थोड़ी-थोड़ी ...
कुछ गाने मन को छु लेता है -*कहे आप को कैसा लगा * *मै जितनी बार सुनती हूँ लगता है कम * *इतना अच्छा लगा *मध्यकालीन भारत - धार्मिक सहनशीलता का काल (दो) आलवार और नयनार संत -लिंक मध्यकालीन भारत - धार्मिक सहनशीलता का काल (एक) मध्यकालीन भारत - धार्मिक सहनशीलता का काल (दो) *आलवार और नयनार संत*** छठी सदी के उत्तरार्द्ध से लेकर द...सैंडल को सैंडल ही रहने दो दीवानो ... - सैंडलों की उड़ान का हवाई किस्सा भरपूर उमड़ रहा है। विरोधियों के तो पेट में घुमड़ रहा है। यह वही घुमड़ है, जिससे मरोड़ उठते हैं। जिसके सैंडल है, उनके सामन...बाबा रामदेव की ट्रेनिंग -नुक्कड़ में एक सज्जन पता पूछते पहुंचे, पूछा - "भाई वो मुफ़्त में सलाह देने वाले फ़ोकटचंद लेखक दवे जी कहां मिलेंगे"। हम तक वे पहुंचे तो मालूम पड़ा कि बाबा रामद...कवि को कुछ कहने दो ना.....!!क्या धमाके करने वाले किसी भी कोख से जन्म नहीं लेते !!?? - *कुछ धमाके होते हैं और * *उन धमाकों के साथ * *कुछ जिंदगियां तमाम....* *उन धमाकों में है सन्देश * *किसी तरह की कायरता का * *एक अमानुषिक बर्बरता का * *जिसे धमा...
जब से तुमको पाया मैंने --पदिये वर्षा सिंग जी की ग़ज़ल........हे गणेश..इतना वरदान ही हमें देना हे विघ्नहर्ता* एक बार फिर गणेसोत्सव आया और अब जाने को है गणेसोत्सव के साथ मेरे मन में मेरे नगर की बहुत सी यादें जुडी है ....पत्थरों का शहरयह पत्थरों का शहर हैबेजान बुत सा खड़ा इसके सीने मेंभरा गुबारों का ज़हर है।यह पत्थरों का शहर है।।यहाँ पलती है ज़िन्दगी नासूर सी।समृद्धि और संयुक्त परिवार की संपत्ति में अधिकारों का दस्तावेज - रोट अनुष्ठान'रोट', यह शब्द रोटी का पुल्लिंग है। यह विवाद का विषय हो सकता है कि रोटी पहले अस्तित्व में आई अथवा रोट। दोनों आटे से बनाए जाने वाले खाद्य पदार्थ हैं।चलती क़लम को रोक लिया 2अपने मन की हलचल को अपने ही ब्लॉग़ के मन से बाँट लेने से बढ़ कर और कोई बात नहीं... आतंक के दो मसीहाओं का द्वंद्वआतंक के दो मसीहाओं का द्वंद्व डॉ. वेदप्रताप वैदिक 11 सितंबर एक तारीख है लेकिन यह दुनिया में वैसे ही प्रसिद्ध हो गई है,
चलिए आज भी भारतीय टीम को शुभकामनाएं दे देते हैं !!9 सितंबर को भारत और इंगलैंड के मध्य तीसरा एकदिवसीय मैच भारतीय समयानुसार साढे छह बजे होने की घोषणा थी। इस मैच के बारे में मैने फेसबुक , ओरकुट , बज्ज और गूगल टॉक पर लिखा था ....हलचल में आज नही किसी से पंगा..सुप्रभात!! प्यारे दोस्तों ये सच है कि हर घर में आता रहता है तूफ़ान Jकल सुबह जब मेरी कोहनी से टकराकर अलमारी थरथराई वो बोले लगता है भूकम्प आ गया है, मैने कहा श्रीमान ये भूकम्प तो बीस साल से आपकी ज़िंदगी में...जीने की कलावह एक पंथ दो काज करता है कल के लिए आज मरता है डरते-डरते हँसता हँसते-हँसते रोता है पाने की कोशिश में खुद को भी खोता है मार्निंग वॉक के समय तोड़ लाता है ...आने वाला समय बेशक हिंदी ब्लॉगिंग का ही है ।ब्लॉगिंग को आन्दोलन का स्वरुप देने के लिए जागरण जंक्शन ने सबसे पहले अपना स्पेस दिया और अब नवभारत टाइम्स ने इसे एक बड़ा प्लेटफॉर्म देकर यह सिद्ध कर दिया कि आने वाला समय बेशक हिंदी ब्लॉगिंग का ही है । इसके...
3 टिप्पणियाँ:
ललित भाई, बडे श्रम से सजाई है ये चर्चा।
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क्यों डराती है पुलिस ?
घर जाने को सूर्पनखा जी, माँग रहा हूँ भिक्षा।
लंबी वार्ता , बधाई .
मेरी रचना को वार्ता में शामिल करने के लिए आपको हार्दिक धन्यवाद! सबको सहेजने का आपका प्रयास हार्दिक बधाई योग्य है। बहुत ही प्रभावशाली और सार्थक वार्ता रही आज की ।
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