गुरुवार, 8 सितंबर 2011

गम का समन्दर नहीं देखा......ब्लॉग4वार्ता.......ललित शर्मा


ललित शर्मा का नमस्कार, ब्लोगिंग को अभी तक खाए-पीये-अघाए लोगों का शगल ही समझा जाता रहा है. या फिर कई मित्र मजाक में निठल्लों की मजलिस भी कह देते हैं. लेकिन मैं इससे वास्ता नहीं रखता. ब्लोगिंग में सभी तबके ब्लॉगर हैं. जो भी ब्लॉगर लिख रहे हैं वे अपने आस-पास की जानकारी एवं अपने कार्यों को ब्लॉग पर डाल रहे हैं. कल एक मित्र ने मुझे एक ब्लॉग का लिंक दिया. जिसे पढ़कर लगा कि इस ब्लॉगर ने अपनी सारी सच्चाई ब्लॉग पर लिख दी. बंटी निहाल नामक यह ब्लॉगर छत्तीसगढ़ के रायपुर शहर में रहता है. बड़े लोगों को बसाने के लिए तेलीबांधा तालाब की बस्ती को तोडा गया,उसमे एक प्रभावित होने वाला यह भी है. अपनी बातें ईमानदारी के साथ ब्लॉग पर लिख रहा है. जीवन की दुश्वारियों से कम उम्र में ही पढाई छोड़ कर लड़ने वाला बंटी ईश्वर के प्रति पूर्ण आस्था रखता है. उसके ब्लॉग पर मुझे प्रेम गीत नहीं मिले, या उल-जलूल शब्दों की बाजीगरी दिखाई नहीं देती. सीधा सपाट लेखन मनोभावों को पदर्शित करता है.
बंटी अपने प्रोफाइल लिखता है...मैं एक छोटे परिवार से हूँ. मेरे पिता जी रिक्शा  चालक और माता घरो में जाकर काम करती है. मैंने १२वी तक पठाई की है और आर्थिक परेशानी के कारण बीच में ही पूरी नहीं कर पाया. अब भगवान की कृपा से हेल्लो रायपुर मांसिक पत्रिका में पेपर मेकिंग का कार्य कर रहा हूँ. साथ ही साथ सामाजिक कार्य भी करते रहता हूँ. बस्ती में रहने के कारण बहुत से परेशानी को देख चूका हूँ. बस यही सोचता हूँ की भगवान की कृपा से सभी के समस्या को दूर कर सकूँ. और क्या कहूँ. शुरू से ही कुछ करने का सोचता रहा पर आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने के कारण नहीं कर सका. बस कुछ ही सालों से लिखने की अपनी बचपन की इच्छा को अब पूरी करने की कोशिश कर रहा हूँ. ................. इस तरह नेट ने ब्लॉग के रूप में उसकी अभिव्यक्ति को मुखर किया. जिससे लेखन की इच्छा पूरी हुई.

स्लम में रहने वालों की कठिनाइयों का वर्णन करते हुए लिखता है.. ........रायपुर हमारी बस्ती जलविहार कालोनी की याद आ गईं। तालाब किनारे और नीचली बस्ती होने के कारण। थोड़े से बरसात होने पर ही बस्ती भरने लग जाती थी। हमारा घर आगे होने के कारण बच जाता था। लेकिन कच्चा, खपरे का घर होने के कारण हमें भी परेशानी होती थी। दिन मे तो चल जाता था। परन्तु आधी रात जब हम गहरी नींद पर होते थे। अचानक बरसात होने पर घर पर पानी टपकने से नींद खुल जाती थी। धीरे-धीरे हम सभी को इसकी आदत हो चुकी थी। फिर जब कभी आधी रात को बरसात होती तो हम उठकर तुरंत पानी टपकने वाली जगह पर कहीं बाल्टी, तो कहीं मग, तो कहीं गंजी रख देते थे और एक तरफ बैठकर बस भगवान से यही प्रार्थना करते की यह बरसात कब रूकेगीं। थोड़े ही देर पर देखते ही देखते पानी अधिक होने से घरों में भरना चालु हो जाता था और दौड़भाग की आवाज आनी शुरू हो जाती थी। पानी भरते ही हमारे बस्ती के नौजवानसाथियों के साथ मिलकर मैं सभी डुबे हुए घरों से सामान निकालना, कभी टीवी तो कभी पलंग तो कभी किसी बच्चें को तो कभी किसी बुजुर्ग को निकाल कर सुरक्षित स्थान पर पहुंचाने का काम करते। हमें मजा भी आता था, तो गुस्सा भी। (कभी भगवान को कोसते तो कभी प्रार्थना करते) धीरे-धीरे सभी की आदत बन चुकी थी। अब कोई किसी से शिकायत नहीं करता और ना ही भगवान को कोसता। मानसून मौसम के शुरू होते ही सभी अपने-अपने सामानों को सुरक्षित स्थान पर पहले ही रख लेते थे। ........... आज भी रायपुर की निचली बस्तियों की यही हालत बनी हुयी है
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बंटी बरसात के बहाने होने वाली राजनीति के बारे में लिखता है ............एक नेता तो बकायदा पानी भरने पर लोंगो के लिए बिरयानी पैकेट तक बटंवाता है और न्युज पेपर में अपना फोटो बिरयानी बाटते हुए छपवाता था। जिन्हें समस्या रहती थी वे लोग गुस्से से वोट ना देने की बात करते थे। परन्तु जैसे ही चुनाव आते वही लोग दौड़-दौड़ कर नेताओ के रैली में भाग लिया करते थे। मगर उनकी आड़ में जो नेता के चापलुस लोग (मानो उनकी लॉटरी निकल पड़ी हो) फायदा उठाते थे। नेता, मंत्री सभी जानते थे कि कुछ लोगो को खरीद लेने से ही चुनाव जीता जा सकता है। यहां की जनता तो वेवकुफ हैं। नेता, मंत्री सोचें भी तो क्यों ना सोचें, सच ही तो हैं। यहां की जनता भेड़, बकरी की तरह ही है। जो किसी के भी कहने पर कहीं भी चल पड़ते हैं और वोट दे देते हैं। उन्हें अपने वोट की कीमत ही नही मालुम बस बिरयानी और दारू पर बिक जाते हैं। बहुत से जागरूक लोग है परन्तु मानो उन्हें भी सांप सुंघ गया। बस तमाशा देखते रहते हैं।

ब्लॉग पर लगायी पोस्ट के हिसाब से बंटी के सहयोग की भावना ओत-प्रोत है, बस्ती के लोगों की सहायता करना उसे सुकून देता है............ जब वह एक विधवा के लिए सहायता मांगने के लिए महापौर के पास जाता है तो महापौर से मिले जवाब को अक्षरश: लिखता है.............महापौर से मिला।
महापौर ने कहा - आप लोगों को इतनी सुविधा दिया जा रहा हैं परन्तु रोज-रोज कोई ना कोई नई-नई समस्या लेकर आ जाते हो ?
मैंने कहा - मैडम, समस्या आती हैं, तभी तो आपके पास आते हैं, समस्या नहीं रहेगी तो आपके पास क्या करने आऐंगें।
महापौर ने कहा - घर तो दिया गया हैं, अब नौकरी भी देंगे क्या ? सिटी बस लगाया गया हैं, काम करने आ सकती हैं रायपुर।
मैंने कहा - मैडम, रायपुर 13 कि.मी. अपने बीमार पुत्र को छोड़कर नही आ सकती हैं।
महापौर ने कहा - पहले कैसे करती थी ?
मैंने कहा - जल विहार में रहती थी तो आस पास के घरो में काम करती थी अब यहां से रायपुर कैसे जा सकती हैं।
महापौर ने कहा - हाऊसिंग बोर्ड में भी लोग आने लगे हैं वहां पर काम कर सकती हैं। (पास बैठे उनके कुछ लोगों ने भी हामी भर कर, कह रहे थे, हाँ वहीं लोग आने लगे हैं।)
(मैंने थोड़ा आवेश में आकर कहा) - आप लोग यहां रहते हैं। आप लोगों को नही मालूम अभी वहां अधूरा निर्माण है। वह तो मैडम कि कृपा से हम सभी वहां मजबूरी में रह रहे हैं।  
महापौर (थोड़े गुस्से से ) कहा -  ठीक हैं, देखेंगें।
मैंने मैडम को - शुक्रिया कहते हुए बाहर आ गया।
बाहर आकर मैं मन ही मन उन्हें कोसता रहा की किसी गरीब की मजबूरी बड़े ओहदें पर आने के बाद किसी को नही दिखता। बस चुनाव के समय अपना हमदर्द बनकर झूठ का आवरण ओढे रहते हैं। 
बंटी विधवा के लिए काम मागने हेतु मंत्री के पास जाता है...... जहाँ उसे मंत्री से सकारात्मक जवाब मिलता है.. और विधवा को काम मिल जाता है..........वह कहता है कि.......माता जी ने मेरे पास आकर, मेरे सिर पर हाथ रखकर रोते, आर्शिवाद देते हुये बोली - बेटा हमने 2 माह पहले से इतने लोगों को, हमारे मोहल्ले के कई सज्जनों को हमारी समस्या बताई और सहायता के लिए कहा परन्तु किसी ने भी हमारी मदद नही की किन्तु बेटा तू अपना कीमती समय निकालकर, हमारा काम करवा दिया। भगवान तुझे बहुत खुशियां दें और भविष्य में हमेशा आगे बढ़ते रहो, तुम्हारी सारी मनोकामनांए पूर्ण हो।

मेरे भी आंखो में खुशी के आंसू आने लगें। मैंने कहा - माता जी, यह तो भगवान की कृपा हैं। मैं तो एक माध्यम हूं, करने वाला तो वह ऊपर वाला भगवान ही हैं।
मेरे आफिस का टाइम होने के कारण मैं वहां से निकल पड़ा। रास्ते भर सोचता रहा और मन में अजीब सी खुशी महसूस हो रही थी। बस भगवान को धन्यवाद देते हुए। सोच रहा था कि, मेरी मेहनत रंग लाई। रास्ते का समय ऐसे बिता की कब मेरा आफिस आ गया पता ही नही चला

ब्लॉग4वार्ता को देते हैं विराम...........मिलते हैं एक ब्रेक के बाद राम राम

9 टिप्पणियाँ:

ब्लोगिंग में सभी तबके ब्लॉगर हैं. जो भी ब्लॉगर लिख रहे हैं वे अपने आस-पास की जानकारी एवं अपने कार्यों को ब्लॉग पर डाल रहे हैं.

ब्लॉगर्स को निठ्ठले कहना व्यक्ति की मानसिकता का परिचायक है ,

ब्लोगिंग में बंटी जैसे लोग ईमानदार लेखन का परिचय देंगे ! उनको हार्दिक शुभकामनायें ....

अच्‍छी वार्ता .. चिट्ठा जगत बंद होने के बाद बंटी निहाल जैसे ब्‍लोगरों को ढूंढ पाने में बहुत कठिनाई हो गयी है .. बंटी निहाल जैसे सभी नए ब्‍लोगर अपने लेखन से चिट्ठाजगत को समृद्ध करते हुए खुद भी अपनी पहचान बना सकेंगे .. मेरी शुभकामनाएं उनके साथ हैं !!

लगा कि बंटीगिरी जरूरी है, ब्‍लागिंग थोड़ी कम भी हो तो चलेगा.

बंटी के ब्लॉग के बारे में जानना अच्छा लगा !

बंटी का परिचय देकर आपने ईमानदार लेखन को प्रोत्साहित किया है...हार्दिक शुभकामनायें ....

एक सार्थक चर्चा के लिए आप बधाई के पात्र हैं.अभी अभी बंटी के ब्लॉग से आ रही हूँ.

आज की वार्ता सही अर्थों में सार्थक रही ... आभार बंटी से परिचय के लिए .

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